जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने और उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिए जाते वक्त पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, नेशनल कांफ्रैंस के संरक्षक फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला समेत कई नेताओं को नजरबंद किया गया था। इन नेताओं पर पीएसए यानि जन सुरक्षा कानून लगाया गया था। समय बीतने के साथ धीरे-धीरे फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला समेत कुछ नेताओं से पीएसए हटा लिया गया और उनकी रिहाई हो गई। अब जम्मू-कश्मीर सरकार ने आईएएस से राजनेता बने शाह फसल और पीडीपी के दो नेताओं सरताज मदनी और पीर मंसूर पर लगा पीएसए हटाकर इनकी रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया गया है। अन्य कई नेताओं को पहले ही रिहा किया जा चुका है। अब केवल पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, सागा एसबी और हिलाल लोन ही नजरबंद हैं।
जम्मू-कश्मीर में स्थितियां सामान्य बनाने के लिए राजनीतिक गतिविधियों को शुरू किया जाना बहुत जरूरी है। राज्य के विकास के लिए जो भूमिका लोकप्रिय निर्वाचित सरकारें निभा सकती हैं वह भूमिका राज्यपाल शासन नहीं निभा सकता। निर्वाचित सरकारों का जनता से सीधा संवाद होता है और वह जनता की इच्छाओं के अनुरूप कार्य करती हैं।
देर-सवेर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाने हैं। इसके लिए राज्य में परिसीमन का काम भी शुरू किया जा चुका है। परिसीमन से विधानसभा की सीटों में बदलाव आएगा। केन्द्र शासित राज्य बनाया गया लद्दाख बौद्ध बहुल क्षेत्र है और जब यह जम्मू-कश्मीर राज्य में था तो जम्मू-कश्मीर के नक्शे में 58 फीसदी भूभाग इसका था। कश्मीर घाटी का क्षेत्रफल सिर्फ 16 प्रतिशत है और यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। सम्पूर्ण राज्य की राजनीति पर अब तक 16 फीसदी क्षेत्र के राजनीतिज्ञों का कब्जा रहा है। कश्मीर घाटी के दस जिले हैं जिनमें से चार जिले ऐसे हैं जहां आतंकवादी और अलगाववादी अब भी सक्रिय हैं। ये जिले हैं शोपियां , पुलवामा, कुलगांव और अनंतनाग लेकिन सम्पूर्ण भारत में यह भ्रम फैला हुआ है कि पूरा जम्मू-कश्मीर आतंकवाद की चपेट में है। जम्मू-कश्मीर राज्य में 26 प्रतिशत भूभाग जम्मू क्षेत्र का है, यहां पर कोई आतंकवाद नहीं। अब क्योंकि लद्दाख को नया केन्द्र शासित प्रदेश बनाया जा चुका है, इसलिए विधानसभा सीटों का परिसीमन जरूरी हो गया है। ज्यादा जनसंख्या वाले क्षेत्र से ज्यादा विधानसभा सीटें होनी चाहिएं लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
जम्मू क्षेत्र में हमेशा भेदभाव होता रहा और राज्य की सियासत पर दो परिवारों अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार का ही कब्जा रहा। राज्य के विकास के लिए स्थानीय िनकाय, पंचायत चुनाव भी जरूरी होते हैं क्योंकि लोकतंत्र में हर क्षेत्र से जनता के प्रतिनिधि शामिल हों। नई परिस्थितियों में यह जरूरी है कि प्रशासन सभी राजनीतिक दलाें से संवाद स्थापित करे। इसलिए अब समय आ गया है कि पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और अन्य नेताओं को भी नजरबंदी से रिहा कर दिया जाए। प्रशासन इन सभी राजनीतिक दलों से शपथ पत्र ले सकता है कि उन्हें भारत के संविधान में अपनी आस्था रखनी होगी और उन्हें संविधान से इतर कोई गतिविधि नहीं करनी होगी। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिज्ञों का जनता से संवाद स्थापित होगा तभी स्थितियां सामान्य होंगी क्योंकि अब आतंकवाद हांफ रहा है, सुरक्षा बल लगातार आतंकवादियों को ढेर कर रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब घाटी के चार जिले भी आतंकवाद से मुक्त हो जाएंगे। एक कहावत है अगर इच्छाएं अश्व होतीं तो हर भिक्षुक शहसवार हो जाता है। इच्छाएं सचमुच इच्छाएं हैं अश्व नहीं, परन्तु हमारा पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान फिर भी शहसवार बना हुआ है। उसके पास उन्माद नामक एक खतरनाक नस्ल का घोड़ा है, जिसकी सवारी वह आज भी कर रहा है। पाकिस्तान की साजिश रुकी नहीं है, वह लगातार आतंकवाद को पोषित करता आ रहा है लेकिन उसे लगातार हार का सामना करना पड़ता है। जहां तक हुर्रियत का सवाल है, वह अपने अस्तित्व को खुद ढूंढ रही है। बची-खुची अलगाववादी शक्तियों को कमजोर करने का एक ही रास्ता है, वह है राजनीतिक गतिविधियों को शुरू करना। इस प्रक्रिया में कश्मीर में राष्ट्रवादी शक्तियां सामने आएंगी और लोग उनसे जुड़ेंगे और कश्मीर में चुनावों का माहौल बनेगा। जनता किसे चुनती है, किसे सत्ता में बैठाती है, यह फैसला उसी को करना है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com