बैंकों को घाटे से उबारने के लिए - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

बैंकों को घाटे से उबारने के लिए

NULL

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और इसके पांच सहयोगी बैंकों के विलय की प्रक्रिया केन्द्र सरकार की उम्मीदों से भी बढ़कर बेहतर रही है। अब देश के बड़े बैंकों के विलय की गाड़ी आगे बढ़ेगी। मजबूत बैंकों में अगर छोटे या मंझोले स्तर के बेहतर संभावनाओं वाले बैंकों का विलय किया जाए तो यह ज्यादा बेहतर परिणाम दे सकते हैं। बैंकों के विलय की योजना पर अटल बिहारी वाजपेयी शासन के दौरान भी विचार किया गया था। वाजपेेयी सरकार के निर्देश पर भारतीय बैंक संघ ने वर्ष 2003-04 में एक प्रस्ताव तैयार किया था लेकिन यूनियनों के भारी विरोध को देखते हुए सरकार आगे नहीं बढ़ सकी थी। उसके बाद यूपीए-2 शासन के दौरान पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने तत्कालीन वित्त सचिव अशोक चावला की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने 6 बैंकों में सभी अन्य सरकारी बैंकों के विलय का खाका तैयार किया था। तब पहली बार एसबीआई में इसके दो सहयोगी बैंकों का विलय किया गया था लेकिन बात फिर लटक गई।

अब वित्त मंत्री अरुण जेतली इस योजना को लेकर काफी सक्रिय हैं। बैंकों में गैर-निष्पादित परिसम्प​त्ति (एनपीए) का बढ़ता स्तर गम्भीर चिन्ता का विषय है। यह न तो अर्थव्यवस्था के हित में है और न ही बैंकों के। ताजा आंकड़ों के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही के अंत तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 7.34 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया। इसका बड़ा हिस्सा कारपोरेट क्षेत्र का है, जिन्होंने बैंकों के बकाये का भुगतान नहीं किया। इस मामले में निजी क्षेत्र के बैंकों की स्थिति अपेक्षाकृत काफी बेहतर है। इस अवधि में निजी बैंकों का एनपीए 1.03 लाख करोड़ रुपए ही रहा। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि 30 सितम्बर 2017 तक सार्वजनिक बैंकों का समग्र एनपीए 7,33,974 करोड़ रुपए तथा निजी बैंकों का 1,02,808 करोड़ रुपए रहा। शिक्षा ऋण भी बैंकों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। इसमें काफी धन फंस गया है। जिन्होंने शिक्षा ऋण लिया है वे ऋण वापस करने में रुचि नहीं लेते जिसके कारण शिक्षा ऋण के प्रति बैंकों की रुचि लगभग समाप्त हो गई है। यह सत्य है कि सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति में भी बैंकों को सरकार की घोषणाओं आैर नीतियों के अनुरूप कार्य करना पड़ता है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसे मद में दिए गए धन की वापसी में बैंकों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। जहां तक कारपोरेट क्षेत्र के बढ़ते एनपीए का प्रश्न है, इसके लिए बैंक का प्रबन्धन जिम्मेदार माना जाएगा। इसमें बैंकों की भूमिका संदिग्ध है।

घाटे में चलने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक शाखाओं को बन्द करने का सुझाव वित्त मंत्रालय ने दिया है। मंत्रालय ने बैंकों को आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए तर्कसंगत व्यवस्था करने की मंशा भी जताई है। बैंकों के बढ़ते घाटे को देखते हुए यह आवश्यक भी है। विदेशों में खुली अनेक बैंक की शाखाओं को सीमित करके एक ही बैंक के माध्यम से उपभोक्ताओं को सेवा प्रदान करने की मंत्रालय ने सलाह दी है। मंत्रालय ने साफ किया है कि विदेशों में कई बैंकों के रहने का लाभ नहीं है। अधिकतम व्यापार देने वाले बैंकों पर ध्यान देने के लिए नुक्सान में चल रही बैंक की शाखाओं को बन्द कर देना चाहिए अथवा उसे बेच देना चाहिए। पंजाब नेशनल बैंक ब्रिटेन में अपनी अंतर्राष्ट्रीय हिस्सेदारी को बेचने के ​प्रयास में है अाैर इसके लिए सभी संभावनाओं पर विचार भी कर रहा है। परामर्श में बड़ी बचत के साथ ही छोटी-छोटी बचत वाली योजनाओं पर भी ध्यान देने की बात कही गई है। भारतीय स्टेट बैंक अनेक छोटे बैंकों को समाप्त कर अपने में विलय करने के साथ इसकी शुरूआत पहले ही कर चुका है।

पंजाब नेशनल बैंक ने भी इस आेर कदम बढ़ाया है। घाटे वाली बैंक शाखाओं काे बन्द करने के साथ ही विशाल बैंकों की शृंखला को सीमित करने से बैंकों को अपने घाटे को कम करने अथवा समाप्त करने में सहूलियत होगी। वित्तीय वर्ष में बैंक की बढ़ी घाटे की रकम से केन्द्र सरकार भी चिन्तित है। उपभोक्ता बैंकों में जमा किए अपने धन को लेकर आशंकित हैं। सरकार को उपभोक्ताओं को धन को लेकर बार-बार आश्वस्त करना पड़ा है। बैंकों की सीमित संख्या से बैंक में नियुक्त कर्मचारियों को भी नियंत्रित किया जा सकेगा और एक बड़ी रकम बचाई जा सकेगी। देश के बैंकिंग सैक्टर को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने जरूरी हैं। अब बैंकों को खुद इस दिशा में पहल करनी होगी। इससे बैंकों की संख्या भी घटेगी और सरकार भी मानती है कि देश में 10-12 से ज्यादा सरकारी बैंकों की जरूरत नहीं है। इससे तकनीकी तालमेल बिठाने में कोई दिक्कत भी नहीं आएगी आैर साथ ही उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा भी की जा सकेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 + 4 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।