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अर्द्धसै​न्य बलों में ट्रांसजेंडर!

ट्रांसजेंडरों को लेकर कई बार हमारी सोच इतनी छोटी हो जाती है कि हम उन्हें इंसान मानने से ही इंकार कर देते हैं। हम उनसे सामाजिक रूप से भेदभाव करते हैं।

ट्रांसजेंडरों को लेकर कई बार हमारी सोच इतनी छोटी हो जाती है कि हम उन्हें इंसान मानने से ही इंकार कर देते हैं। हम उनसे सामाजिक रूप से भेदभाव करते हैं। इंसान ही एक इंसान के प्रति नृशंसता, क्रूरता, गाली-गलौज करता है। सब कुछ सहने के बावजूद वे हमारे बीच मुस्कराते हुए दिखाई देते हैं।
किन्नरों के दिल में कितना कुछ चलता है, उसके बावजूद वे हमें दुआएं ही देते रहते हैं। इंसान को यह जरूर सोचना चाहिए कि अगर किसी में कोई प्राकृतिक दोष निकल आया हो और आपके माता-पिता, समाज आपको बाल्यावस्था में ही छोड़ दें तो उसके साथ क्या बीतेगी। हो सकता है उसका दृष्टिकोण समाज के प्रति नकारात्मक हो जाए। अक्सर एेसा होता भी है लेकिन समय के साथ ऐसे प्रयास किए गए कि ट्रांसजेंडर समुदाय में समाज के प्रति नकारात्मकता नहीं फैले। वह भी समाज में सम्मानपूर्वक जिन्दगी जिएं।
पुराणों और महाभारत की कथाओं और आख्यानों में किन्नरों की चर्चा है। उन्हें देवताओं का गायक और भक्त माना जाता है। ऐसा वर्णन है कि किन्नर यक्षों और गंधर्वों की तरह नृत्य और गान में प्रवीण होते थे। महाभारत में शिखंडी एक किन्नर चरित्र है। रामायण में भी इनका उल्लेख है। किन्नरों को भी सामाजिक जीवन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आजादी से जीने का अधिकार मिले, इसके लिए सरकारें निरंतर कदम उठाती रहती हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में 2016 में ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल को मंजूरी मिली। हमारे देश में किन्नरों काे सामाजिक कलंक के तौर पर देखा जाता है। इसके लिए काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। यह विधेयक इस दिशा में एक प्रयास था। इस विधेयक पर संसद की मुहर भी लग गई। इसके जरिये किन्नरों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशों की गईं।
अब काफी किन्नर अपने आपको समाज का अंग मान रहे हैं, उन्हें महसूस होने लगा है कि जिस समाज में वे रहते हैं उसके लिए उन्हें भी बड़ा योगदान देना है। अप्रैल 2014 में भारत की शीर्ष न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी थी। इस फैसले की बदौलत हर किन्नर का जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें एक-दूसरे के साथ शादी करने और तलाक देने का अधिकार भी मिल गया।
आज ट्रांसजेंडर शिक्षक भी हैं, ​किन्नर कालेज प्रिं​सीपल भी हैं, किन्नर वकील भी हैं और धर्मगुरु भी। वैसे तो देश में साधुओं के 13 अखाड़े हैं लेकिन अब किन्नरों ने अपना एक अलग अखाड़ा बना लिया है, जिसकी महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हैं। आम तौर पर किन्नरों की छवि लूटपाट करने और नशा करने वालों के तौर पर है लेकिन भारत में किन्नर मेकअप आर्टिस, वीडियो एडीटर और वीडियो ग्राफर भी हैं।
किन्नर वह सब कुछ करने में सक्षम हैं जो आम इंसान कर सकता है। उसके भीतर भी राष्ट्र सेवा का जज्बा है। गृह मंत्रालय ने अर्द्धसैन्य बलों को संदेश भरकर उनसे ट्रांसजेंडरों की भर्ती के मामले में राय पूछी है। अर्द्ध सैन्य बलों से यह भी पूछा गया है कि उनकी किस-किस रैंक में भर्ती हो सकती है और इसके​ लिए क्या जरूरी संशोधन किए जा सकते हैं। यह अपने आप में बड़ी बात है कि गृह मंत्रालय ने केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल में ट्रांसजेंडरों की भर्ती की इच्छा व्यक्त की है।
गृह मंत्रालय के अंडर सचिव मुत्थुकुमार द्वारा हस्ताक्षरित इस पत्र में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर की भर्ती सामान्य कैडर के तौर पर की जाएगी। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें कम्बैट भूमिका दी जा सकती है, सीमाओं पर उनकी ड्यूटी लगाई जा सकती है आैर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उनकी ड्यूटी लगाई जा सकती है। यह अपने आप में एक प्रगतिशील कदम है। जब बलों में महिलाओं को लड़ाकू की भूमिका दे दी गई है तो ट्रांसजेंडरों के भी बराबर के अधिकार हैं।
अनेक ट्रांसजेंडर सरकारी कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं तो सुरक्षा बलों में उनकी भर्ती करके उन्हें इस क्षेत्र में भी समानता का अधिकार दिया जा सकता है। अभी उनकी भर्ती में समय लग सकता है। देखना यह है कि नौकरशाही कितना तेजी से काम करती है। इसके लिए भर्ती के नियम तय किए जाएंगे। फिर इस संबंध में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी की जरूरत पड़ेगी।
अगर अर्द्ध सैन्य बलों में ट्रांसजेंडरों की भर्ती होनी शुरू हो जाएगी तो इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रांसजेंडरों के प्रति समाज का नजरिया बदलने में समय नहीं लगेगा। उन्हें समाज में और अपने ही परिवारों में प्रतिष्ठा हासिल होगी।  वास्तव में किन्नर देश के ​िनर्माण में योगदान दे सकते हैं और एक उत्पादक शक्ति बन सकते हैं। अनेक किन्नर गारमेंट की फैक्ट्रियां चलाते हैं। कोरोना काल में हमने किन्नर समूहों को गरीबों को  भोजन, दवाइयां, सैनीटाइजर्स बांटते देखा है।
हजारों किन्नर अपराध के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। 1871 में तो अंग्रेजों ने इन्हें जरायम पेशा जनजा​ित की श्रेणी में डाल दिया था। भारत स्वतंत्र हुआ तो नया संविधान बना। 1951 में किन्नरों को इस श्रेणी से निकाल दिया था। देश में किन्नरों की संख्या 5 लाख के करीब है। अगर सरकार चाहे तो विभिन्न सेवाओं में इनके श्रम का इस्तेमाल कर सकती है। थाइलैंड में तो एक एयरलाइन में किन्नरों को यात्रियों की सेवा के लिए अवसर दिया जा रहा है। किन्नरों को एयर होस्टेस के रूप में भी नौकरी दी गई है।
किन्नरों को सामाजिक, आ​िर्थक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने के लिए नई सोच के साथ काम करना बहुत जरूरी है। केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी किन्नरों के मुद्दे पर गम्भीरता से काम करना होगा क्योंकि सामाजिक उपेक्षा के शिकार किन्नर आमतौर पर जुझारू होते हैं और अपनी जीविका के लिए कठिन मेहनत करते हैं।


-आदित्य नारायण चोपड़ा

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