भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन अमेरिका का लोकतंत्र काफी मजबूत है। अमेरिका में राष्ट्रपति प्रणाली होने के बावजूद वहां राष्ट्रपति तक जनता की आलोचना के दायरे में आते हैं। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को महाभियोग की प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है। भारत के राजनीतिज्ञ अपनी आलोचना से भयभीत हो जाते हैं। ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को दबाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग कर अपने विदेशी समकक्ष से मदद हासिल करने की कोशिश की।
निचले सदन हाउस आफ रिप्रेजेंटेिटव की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया था तो उन्होंने आरोप लगाया था कि ट्रंप ने अपने डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी जो बाडडेन को नुक्सान पहुंचाने के लिए विदेशी ताकतों का इस्तेमाल कर अपने पद की शपथ का उल्लंघन किया। ट्रंप के कार्यकाल में हुई कार्रवाइयां राष्ट्रपति के उनके पद की शपथ के प्रति बेइमानी, हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का उल्लंघन और चुनाव की अखंडता के साथ विश्वासघात को दर्शाती है। महाभियोग की जड़ में एक फोन कॉल है।
दरअसल ट्रंप ने अपने यूक्रेनी समकक्ष व्लादिमीर जेलेंस्की से बात की और उन पर जो बाइडन और उनके बेटे के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू करने का दबाव डाला। इतना ही नहीं उन्होंने यूक्रेन को सैन्य मदद हटाने की धमकी भी दी। बाइडन के आगामी राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप के खिलाफ डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार होने की सम्भावना जताई जा रही है। यद्यपि ट्रंप ने आरोपों का खंडन किया लेकिन यह स्वीकार किया कि उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के बारे में यूक्रेन के राष्ट्रपति से चर्चा जरूर की थी।
इससे पहले बिल क्लिंटन को भी सैक्स स्कैंडल के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा था लेकिन वह बरी हो गए थे। इसके अलावा प्रेसिडेंट एंड्रयू जानसन को भी महाभियोग का सामना करना पड़ा था। ट्रंप पर एक नहीं कई गम्भीर आरोप लगे हैं। ट्रंप पर यह भी आरोप है कि वह आफिस में काम करने के साथ-साथ विदेशी राज्यों के साथ अपना बिजनेस कर रहे हैं। इससे पहले 2016 में हुए चुनाव को प्रभावित करने के लिए रूस के साथ ट्रंप की मिलीभगत के आरोपों के बाद उन पर महाभियोग चलाने की बात हुई थी।
राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दो महिलाओं के साथ अंतरंग संबंधों को गुप्त रखने के लिए भारी रकम देने का आरोप लगा था। अमेरिका के संविधान में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और न्यायाधीशों को पद से तभी हटाया जा सकता है जब उन पर राजद्रोह, घूस या अन्य किसी भी प्रकार के करप्शन का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए। महाभियोग कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं है और न ही आरोपी को जेल भेजा जाता है। महाभियोग सिद्ध होने पर व्यक्ति को ही पद से हटाया जा सकता है और यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह कोई पद ग्रहण करने का अधिकारी नहीं रहेगा।
डोनाल्ड ट्रंप ने महाभियोग मामले में कोई सहयोग करने से इंकार कर दिया है और विपक्षी डेमोक्रेट्स को पागल और देशद्रोही करार देकर राजनीतिक रंग देने की कोशिश की है। ट्रंप बड़े ही नाटकीय अंदाज में अमेरिकी सेना की सीरिया से वापिसी को मानव सभ्यता के लिए एक महान दिन करार दे रहे हैं। आगामी अमेरिकी चुनाव के लिए केवल 12 माह शेष हैं और ट्रंप लगातार खुद को एक विद्रोही और वाशिंगटन के संभ्रांताें का शिकार बताते रहे हैं। वह ऐसा जानबूझ कर बनाई गई रणनीति के तहत कर रहे हैं। वह लगातार खुद काे पीड़ित बता रहे हैं।
रणनीतिकारों का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं, संस्मरणों से जुड़ी अपील काफी प्रभावशाली है। ट्रंप जनता की भावनाओं को लेकर संतुलन साधने का प्रयास कर रहे हैं। ट्रंप बड़ी चतुराई से जनता के बीच विषय को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। ब्रांड स्ट्रेटजी एक्सपर्ट प्रोफैसर स्टेफन हर्ष का कहना है कि ट्रंप एक ऐसे नायक हैं जो तालाब में कूद गया और डूबते हुए बच्चे को बचा लाया तो लोग उस व्यक्ति के बारे में सकारात्मक सोचने लगते हैं। ट्रंप लोगों की सोच को अपने प्रति सकारात्मक करने में लगे हुए हैं।
विरोध करने वाले ट्रंप को जिद्दी, सिरफिरा, सनकी, अनाप-शनाप बोलने वाला करार दे रहे हैं और कह रहे हैं कि पैसों का भरपूर उपयोग करके ट्रंप ने अमेरिका की जनता को पूरी तरह भ्रमित कर दिया, इतना ही नहीं ट्रंप का विरोध करने वाले यह भी मानते हैं कि अमेरिका के लोगों ने असभ्य व्यक्ति को राष्ट्रपति पद के लायक मान लिया। अमेरिका के इतिहास में अभी तक किसी राष्ट्रपति को महाभियोग के जरिये हटाया नहीं गया। इसे सीनेट में पास कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है और सीनेट में रिपब्लिकन का भारी बहुमत है।
देखना होगा ट्रंप अगले राष्ट्रपति चुनावों में जनता का कितना समर्थन हासिल करते हैं क्योंकि वह लगातार संरक्षणवादी नीतियां अपना रहे हैं। मुद्दों को बदलने में तो वह माहिर हैं ही। महाभियोग की प्रक्रिया से यह स्पष्ट है कि अमेरिका के लोकतंत्र में कानून से ऊपर कोई नहीं।