शायद ही कोई ऐसा सुधि पाठक होगा जिसे कुलदीप सिंह सेंगर नामक उत्तर प्रदेश के विधायक के कुकृत्य के बारे में जानकारी न हो। इस विधायक का नाम तब सुर्खियों में आया था जब पिछले वर्ष विधायक के जिले उन्नाव की ही एक 19 वर्षीय युवती ने मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के लखनऊ निवास के बाहर आत्मदाह की कोशिश की थी। इस युवती का दोष इतना था कि वह अपने साथ हुए विधायक के जोर-जुल्म के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना चाहती थी। उसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी। उलटे उसके पिता को ही पुलिस ने फर्जी मामलों में फंसाकर उसे जेल में ठूंस दिया था और इतनी बेरहमी से पिटाई की थी कि कुछ दिनों बाद उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया था। संयोग से विधायक सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी का था और अपनी हुकूमत की अकड़ में था।
सेंगर उस समय जिस तरह कानून को धता बताते हुए युवती पर ही उलटे लांछन लगाने के प्रयास कर रहा था उसे भी संभवतः लोग नहीं भूले होंगे परन्तु तब न्यायपालिका हरकत में आई थी और सेंगर को गिरफ्तार कर लिया गया था। मुख्यमन्त्री योगी ने आश्वासन दिया था कि न्याय होगा और मामले की जांच सीबीआई को दे दी गई थी परन्तु कल जिस तरह युवती की मौसी व चाची की एक कथित सड़क दुर्घटना में मौत हुई है और युवती का वकील व वह स्वयं अस्पताल में मौत से जूझ रहे हैं उसने सड़क से लेकर संसद तक कोहराम मचा दिया है। इस सड़क दुर्घटना को साजिश बताया जा रहा है और विपक्षी दलों के सभी नेता इसकी सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे हैं।
बेशक यह एक राज्य का मामला है जिसका सम्बन्ध मूल रूप से कानून-व्यवस्था से जुड़ा हुआ है परन्तु पूरे मामले की जड़ में एक युवती है जिसके साथ विधायक के घर पर ही सामूहिक बलात्कार किये जाने का बर्बर कृत्य जुड़ा हुआ है। अतः आज राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के नेता श्री राम गोपाल यादव का यह कहना पूरी तरह जायज है कि कुछ मसले एेसे होते हैं जिन्हें संसद के भीतर नियम-कायदे तोड़कर भी उठाया जाना जरूरी होता है क्योंकि संसद तब किसी भी सूरत में चुप नहीं बैठ सकती जब सड़कों पर कोहराम मचा हो। जिस तरह बलात्कार के इस मामले से जुड़े अपराधियों का ताकतवर समूह कानून को अपने हिसाब से घुमाने के प्रयास में शुरू से ही लगा हुआ है उसे देखते हुए शंकाओं का पैदा होना लाजिमी है क्योंकि लड़ाई एक कमजोर युवती की है।
यह समझना आवश्यक है कि इस बलात्कार कांड के कितने आयाम हैं और उनकी कानूनी स्थिति क्या है। आरोप है कि युवती के साथ 2017 में विधायक ने उन्नाव में अपने घर बुलाकर बलात्कार किया। युवती को नौकरी दिलाने के बहाने सेंगर ने अपने घर बुलाया था। उसे विधायक के घर एक शशि सिंह नाम का व्यक्ति लेकर गया था। युवती ने जब इसकी शिकायत अपने परिवार वालों से की तो उसके पिता ने अदालत में विधायक के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। इस पर विधायक के भाई जयदीप सिंह उर्फ अतुल सिंह ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर उसकी पिटाई की।
अदालत में मामला विगत वर्ष की पहली तिमाही में आया और अप्रैल महीने में युवती के पिता को इसकी सजा देने का फैसला विधायक की शह पर उसके भाई व अन्य निकट के लोगों ने कर लिया था। उसे अवैध हथियार रखने व मारपीट के मामले में पुलिस से जेल में जलवा दिया गया। वहां उसकी जमकर पिटाई की गई और अधमरा होने पर उसे अस्पताल भेजा गया जहां उसकी मृत्यु हो गई। जब इस मामले को लेकर शोर मचा तो स्थानीय पुलिस ने तीन अलग-अलग मुकदमे दर्ज किये और राज्य सरकार ने पूरे मामले को सीबीआई के सुपुर्द कर दिया।
विगत वर्ष जुलाई महीने में ही सीबीआई ने इन तीनों मामलों में चार्जशीट दायर की। बलात्कार मामले में विधायक सेंगर व शशि सिंह को अभियुक्त बनाया गया जबकि युवती के पिता की मृत्यु के मामले में सेंगर के भाई के साथ चार अन्य लोगों को अभियुक्त बनाया गया। तीसरा मामला युवती के पिता की हत्या की साजिश रचने और उसे अवैध हथियार रखने के जुर्म में फंसाने का जाल बुनने का था जिसमें विधायक सेंगर के साथ 9 अन्य लोगों को अभियुक्त बनाया गया। इनमें तीन पुलिसकर्मियों के नाम भी शामिल हैं। दरअसल बलात्कार कांड में युवती की वह मौसी व चाची गवाह थीं जिनकी सड़क दुर्घटना में मौत हो चुकी है। यह दुर्घटना तब हुई जब युवती अपने उस चाचा से मिलने रायबरेली जेल जा रही थी जो एक अपराध के सिलसिले में 10 वर्ष की सजा काट रहा है।
उसकी जेल भी उन्नाव से रायबरेली पिछले साल ही बदली गई है। कुल मिलाकर इस जघन्य कृत्य के सिरे एक-दूसरे से जिस तरह तोड़-मोड़ खाते हुए मिल रहे हैं उसका विश्लेषण कोई अपराध विज्ञानी ही कर सकता है परन्तु इतना तो सामान्य नागरिक भी समझ सकता है कि मुकदमे के चश्मदीद गवाहों और मुवक्किल व वकील तक को दूसरे जहां में भेजने की तरतीबें भिड़ाई जा रही हैं। जेल में बन्द राजनीतिज्ञों के कारनामों से भी यह देश अपरिचित नहीं है। राजनीति को साफ-सुथरा बनाने की जिम्मेदारी किसी एक विशेष राजनैतिक दल की नहीं हो सकती बल्कि सभी सियासी जमातों को इस काम को मिलकर करना होगा।
इसमें दलगत राजनीति का भी सवाल नहीं है क्योंकि एक 19 वर्षीय युवती के साथ जिस प्रकार अन्याय हुआ है उसका सम्बन्ध सम्पूर्ण नारी जाति से है और न्याय कहता है कि उसे पूरा तोलना ही होगा परन्तु इसके लिए आतताई की हर उस फितरत को पहचान कर ही कानून को पहले से सावधान होना होगा जिससे न्याय पूरी निष्पक्षता के साथ हो सके। सवाल यह भी दीगर है कि जब युवती को न्यायपालिका के निर्देशों के अनुसार सुरक्षा प्रदान की गई है तो दुर्घटना वाले दिन यह कहां गायब हो गई थी।
युवती की सुरक्षा के लिए तीन महिला पुलिसकर्मी व एक सशस्त्र सिपाही दिये गये हैं। इनमें से कोई भी दुर्घटना के समय उसके साथ नहीं थे। यह भी सन्देहास्पद है कि एक ट्रक ने बड़े आराम से युवती व उसके वकील व मौसी, चाची की कार को इस अन्दाज से टक्कर मारी कि किसी के बचने की कोई संभावना ही नहीं रहती। इन सवालों का जवाब तो मिलना ही चाहिए। अपराध विज्ञान का एक नियम यह भी है कि हर हादसा दुर्घटना नहीं होता!