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बेमौसमी वर्षा का कहर

भारत में मानसून की वर्षा हमेशा ही किसानों और सरकारों को प्रभावित करती है। हर वर्ष ऐसा होता है कि वर्षा ऋतु के निकट आते-आते इस बात का आंकलन लगाया जाता है कि वर्षा किस प्रकार होगी

भारत में मानसून की वर्षा हमेशा ही किसानों और सरकारों को प्रभावित करती है। हर वर्ष ऐसा होता है कि वर्षा ऋतु के निकट आते-आते इस बात का आंकलन लगाया जाता है कि वर्षा किस प्रकार होगी। हर बार शंकाएं जताई जाती हैं कि वर्षा औसत से कम होगी या औसत से ज्यादा। कभी अलनीनो का खतरा सामने आता है तो कभी कुछ और। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले लगभग दो वर्षों से मौसम विभाग का आंकलन बहुत बेहतर हो गया है। मौसम विभाग अपने काम में उच्च स्तरीय तकनीक और सुपर कम्प्यूटर का उपयोग करता है, फिर भी कभी-कभी ऐसा होता है कि मौसम का मिजाज एकदम से बदल जाता है और पूर्व के अनुमान धरे के धरे रह जाते हैं। दरअसल ग्लोबल वार्मिंग से मौसम का चक्र बदल गया है। जिससे बार-बार किसान प्रभावित होता है। वर्षा का पैटर्न भी बदल चुका है।  कभी मानसून की वर्षा हफ्ते-हफ्ते भर होती थी अब कुछ घंटों की बारिश में ही जलथल हो जाता है। यह भारत का सौभाग्य है कि भारत के पास कृषि योग्य भूमि बहुत अधिक है। एशिया की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 40 प्रतिशत भारत में है इसलिए खेती पर भारत में पानी की खपत भी अधिक होती है। मानसून के मौसम में इस बार सूखे के हालात रहे। जबकि सितम्बर-अक्तूबर में बेमौसम बरसात का सिलसिला शुरू हो गया। बेमौसम की वर्षा ने किसानों के चेहरे पर एक बार फिर निराशा ला दी। मानसून की बेमौसमी बारिश के चलते चावल, उड़द, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, कपास की फसलों को भारी नुक्सान हुआ है। सब्जियां भी काफी हद तक सड़ गई हैं। खाद्य जिन्सों की महंगाई से लोग पहले ही परेशान हैं और इन दिनों उनकी दिक्कत ओर बढ़ गई है। 
मौसम विभाग ने यह सम्भावना जताई थी कि 8 अक्तूबर को मानसून की वापसी हो जाएगी। इसके विपरीत दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में बारिश का दौर जारी रहा। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मौसम के कहर से अरबों रुपए की फसल बर्बाद हुई है। नुक्सान भरपाई के​ लिए ​िकसान सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। मौसम चक्र में बदलाव से चिंताएं बढ़ गई हैं। ऐसे में रबी सीजन की बुवाई में विलम्ब होगा। आलू, चना, मटर, मसूर, सरसों की बुवाई तो पिछड़ गई है। साथ ही गेहूं की बुवाई में भी कमी हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में इस साल औसत से कम बारिश हुई। जून-जुलाई में सूखे की मार पड़ी। धान की रोपनी नहीं हो पाई। जिन किसानों के पास अपने पम्प आैर सिंचाई सुविधाएं थी उन्होंने  धान की रोपाई तो कर दी लेकिन अब उन्हें कुदरत की मार झेलनी पड़ रही है। उत्तर और मध्य भारत में ज्यादातर धान की फसल तैयार थी। खेतों में पानी भरने से फसल बैठ गई। हालत यह है कि अब फसल की कटाई नहीं हो रही, इससे न केवल उपज घटेगी बल्कि क्वालिटी भी खराब होगी। इन्हीं दिनों किसान रबी सीजन की तैयारी शुरू करता है। रबी सीजन में विलम्ब होने पर बाजार में उपज देरी से आएगी।
दूसरी तरफ सरकार की चिंता भी बढ़ गई है क्योंकि सरकारी गोदामों में गेहूं और चावल का स्टाक गिरकर पांच साल के निचले स्तर पर आ गया है। वहीं खुदरा अनाज की कीमत 105 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। भारतीय खाद्य निगम के आंकड़े कहते हैं कि एक अक्तूबर को सार्वजनिक गोदामों में गेहूं और चावल का स्टाॅक कुल 511.4 लाख टन था, जबकि पिछले साल यह 816 लाख टन था। 2017 के बाद से अब तक गेहूं और चावल का स्टॉक सबसे निचले स्तर पर है। 1 अक्तूबर को गेहूं का स्टॉक (227.5 लाख टन) न केवल छह साल के निचले स्तर पर था, बल्कि बफर स्टॉक (205.2 लाख टन) से थोड़ा सा अधिक था। हालांकि चावल का स्टॉक आवश्यक स्तर पर लगभग 2.8 गुना अधिक था। चार साल पहले की तुलना में एफसीआई के गोदामों में कम अनाज उपलब्ध है।
भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में गिरावट चिंता का विषय है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली गेहूं और आटे के लिए वार्षिक खुदरा मुद्रास्फीति सितम्बर में अब तक के उच्चतम स्तर 17.41 प्रतिशत पर पहुंच गई है। कीमतों में कमी की सम्भावनाएं भी अभी सीमित हैं। हर वर्ष गेहूं की फसल 15 मार्च के बाद ही बाजारों में आती है। क्योंकि किसानों ने अभी खेतों की बुवाई नहीं की है, इसलिए अगली फसल में विलम्ब हो सकता है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सूखा और बाढ़ प्रभावित ​किसानों को राहत देने के निर्देश जारी किए हैं लेकिन ​किसानों का मानना है कि अगर राहत देर से मिली तो इस मदद का कोई फायदा नहीं होगा। बारिश के कारण लाखों हैक्टेयर भूमि पानी में डूबी हुई है। राज्य सरकारें बाढ़ में डूबे लोगों की राहत पहुंचाने, खाद्य सामग्री पहुंचाने के काम में लगी हुई हैं। उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी के दौरान केन्द्र ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत आने वाले लगभग 80 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज मुफ्त दिया। हाल ही में केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की अवधि को तीन माह और बढ़ाने का सराहनीय निर्णय लिया। किसी भी देश की इतनी बड़ी आबादी को मुफ्त अनाज वितरण करना आसान काम नहीं था, लेकिन मोदी सरकार ने यह काम बखूबी कर दिखाया। यद्यपि इससे राजकोष पर भी काफी दबाव पड़ा। लगभग सभी सैक्टरों को आत्मनिर्भर भारत के तहत पैकेज दिए गए जिससे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटी। अब केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को बहुत ही सतर्कता से काम लेना होगा।
भाेजन का अधिकार वैधानिक अधिकार है। इसलिए गरीबों को मुफ्त अनाज दिया जाना भी जरूरी है। अब केन्द्र सरकार को यह देखना होगा कि उसके बफर स्टॉक में कोई कमी न आए और राज्य सरकारें किसानों को जल्द से जल्द राहत दें ताकि अगली फसल ज्यादा प्रभावित न हो। कठिन वित्तीय चुनौतियों के बीच केन्द्र को ​किसान हितों के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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