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बच्चों को वैक्सीन का सुरक्षा कवच

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शनिवार रात पौने दस बजे राष्ट्र के नाम सम्बोधित करने की जानकारी मिली तो कई तरह के कयास लगाए जाने लगे थे कि कहीं प्रधानमंत्री लॉकडाउन जैसी पाबंदियां घोषित नहीं कर देंगे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शनिवार रात पौने दस बजे राष्ट्र के नाम सम्बोधित करने की जानकारी मिली तो कई तरह के कयास लगाए जाने लगे थे कि कहीं प्रधानमंत्री लॉकडाउन जैसी पाबंदियां घोषित नहीं कर देंगे। देशवासी और मीडिया जगत टीवी चैनलों पर नजरें लगाए बैठ गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत सहज ढंग से 15 से 18 वर्ष तक के बच्चों का वैक्सीनेशन नए वर्ष में तीन जनवरी को शुरू करने, गम्भीर रूप से बीमारियों से ग्रस्त 60 वर्ष से अधिक नागरिकों को डाक्टरों की सलाह पर और  हैल्थ वर्कर्स को दस जनवरी को बूस्टर डोज देने का ऐलान कर ​दिया । यह तीनों ऐलान देशवासियों को बड़ी राहत देने वाले हैं। सरकार के इस फैसले का सत्ता पक्ष ने तो स्वागत किया ही है बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं ने भी इसकी तारीफ की है। इससे कोरोना महामारी को पराजित करने में काफी मदद मिलेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि हम जल्द कोरोना महामारी पर काबू पा लेंगे। बच्चों का वैक्सीनेशन अभिभावकों के लिए भी बहुत राहत भरा है। वैैसे क्यूबा दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने  अपने घरेलू टीकों के साथ कोविड 19 के खिलाफ  02 साल से 11 वर्ष की उम्र के बच्चों का सामूहिक टीकाकरण शुरू किया था। वहां डाक्टर और नर्सों ने बच्चों को सहज महसूस कराने के ​लिए कार्टून-कोम्टर्स की पोशाक पहनी थी। अब तो दुनिया के कई देशों ने बच्चों का वैक्सीनेशन शुरू कर दिया  है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, स्पेन, डेनमार्क, नार्वे, चीन और चिली आदि देशों ने बच्चों का वैक्सीनेशन शुरू कर दिया है।
केन्द्र सरकार के अनुमान के मुताबिक भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चों का आंकड़ा 43-44 करोड़ के लगभग है। 15 से 18 वर्ष की उम्र के बच्चों का आंकड़ा 8 करोड़ है। अगर सभी को वैक्सीन की दो डोज लगती है तो कुल 88 करोड़ वैक्सीन की डोज की जरूरत होगी। अभी तो बच्चों के लिए भारत बायोटेक की कौवेक्सीन को मंजूरी दी गई है। 15 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों का टीकाकरण शुरू करने से साफ है कि बच्चों में भी चरणबद्ध तरीके से वैक्सीनेशन किया जाएगा। भारत में 6-7 करोड़ बच्चे ऐसे  हैं जिन्हें डायबटीज, किडनी, हार्ट या अन्य बीमारियां हैं। ऐसे बच्चों के मुकाबले गम्भीर इन्फैक्शन का खतरा 3-7 गुना ज्यादा होता है। सरकार को ऐसे  बच्चों को प्राथमिकता देनी होगी।
यद्यपि कोरोना महामारी की दूसरी लहर मंद पड़ते ही लगभग सभी राज्यों में स्कूल खोले जा रहे हैं। लेकिन ओमीक्रॉन के खतरे के बाद छोटी कक्षाओं के लिए स्कूल बंद करने पड़े। स्कूली शिक्षा की निरंतरता नहीं बन पाई। अभिभावक अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। अभिभावकों का कहना था कि  जब तक बच्चों का वैक्सीनेशन नहीं हो जाता तब तक स्कूल खोले ही नहीं जाने चाहिएं थे। लेकिन यह भी सच है कि स्कूलों को अनिश्चितकालीन बंद नहीं ​किया जा सकता। जब तक ज्यादातर किशोरों और  बच्चों का टीकाकरण नहीं हो जाता तब तक आबादी के स्तर पर कोविड 19 से पूर्व सुरक्षा प्राप्त करना सम्भव नहीं है। बच्चों के टीके को मंजूरी अन्य मानक टीकों की तरह ही सुरक्षित और  प्रभावी पाए जाने पर ही दी गई है, इसलिए अभिभावकों को टीके के प्रति कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। हालांकि टीकाकरण से हिचक और बच्चों के ​लिए  कोविड 19 के जोखिमों के बारे में गलत विश्वास जैसे कारक इसे चुनौतीपूर्ण लक्ष्य बना सकते हैं।
हालांकि बच्चों को कोरोना वायरस का खतरा काफी कम दिखाई दिया  है। 15 से 18 वर्ष तक की आयु के बच्चों में इम्युनिटी काफी है लेकिन बच्चों में भले ही संक्रमण के गम्भीर लक्षण न दिखें लेकिन वे वायरस के संवाहक के रूप में अहम भूमिका​ निभा सकते हैं। ओमीक्रॉन को लेकर अभी अध्ययन जारी है, लेकिन ओमीक्रॉन के पहले केस की सूचना देने वाले दक्षिण अफ्रीका में पांच साल तक के बच्चे बड़ी संख्या में अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं। ऐसे में 15 से 18 साल तक के बच्चों को वैक्सीन लगाने के मामले में अभिभावकों को कोई लापरवाही नहीं बतरनी चाहिए। अब तक दुनिया के 40 देशों में बच्चों को वैक्सीन लगाई जा रही है, हल्के लक्षणों को छोड़कर कहीं से भी गम्भीर साइड इफैक्ट देखने को नहीं मिला है।
हैल्थ वर्कर्स और 60 वर्ष की आयु से अधिक लोगों को बूस्टर डोज लगाने का फैसला भी स्वागत योग्य है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डीएनए आधारित टीका भी शुरू करने का ऐलान किया है। लाखों जिन्दगियां बचाने के लिए मोदी सरकार द्वारा की जा रही पहल सराहनीय है। इतनी बड़ी आबादी वाले देश में कोरोना वैक्सीनेशन अभियान को सफलतापूर्वक चलाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इस महाअभियान को चलाना सहज नहीं था। कोरोना वारियर्स, हैल्थ केयर और फ्रंट लाइन वर्करों ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में देश को सुरक्षित रखने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। वो आज भी कोरोना के मरीजों की सेवा में दिन-रात लगे हुए हैं। 
अब तो भारत बायोटेक के अलावा सीरस इंस्टीच्यूट, जायड्स कैडिला ने भी अलग-अलग उम्र वर्ग के बच्चों के लिए टीके तैयार कर लिए हैं। बच्चों के​ लिए टीके की उपलब्धता की कोई समस्या नहीं होगी। बच्चों को तो कोरोना से वैक्सीनेशन का सुरक्षा कवच मिल रहा है और बुजुर्गों को भी बूस्टर डोज मिल जाएगी। लेकिन राष्ट्र को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कही गई यह बात भूलनी नहीं चाहिए ‘‘पैनिक नहीं करें, सावधान और सतर्क रहें, मास्क पहने रखें और हाथों को थोड़ी देर बाद धोना याद रखें। कोरोना महामारी से लड़ाई का अब तक का अनुभव यही बताता है कि व्यक्तिगत स्तर पर सभी दिशा-निर्देशों का पालन कोरोना से मुकाबले का बहुत बड़ा हथियार है और दूसरा हथियार है वैक्सीनेशन।

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