कोरोना संक्रमण की विभीषिका के दौर में आज जिस स्थिति से देश गुजर रहा है उसकी कल्पना भारत के संवैधानिक ढांचे के भीतर इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि हमारे दूरदर्शी संविधान निर्माताओं ने भारत को ऐसा राज्यों का संघ (यूनियन आफ इंडिया) बनाया जिसमें राज्यों के सत्वाधिकारों का संरक्षक केन्द्र सरकार को बनाया गया। संविधान में यह काम इतनी बारीकी और शास्त्रीय कशीदाकारी से किया गया कि कोई भी राज्य किसी भी सूरत में कैसी भी विषम परिस्थिति में स्वयं को अकेला खड़ा न पाये और भारतीय संघ की सरकार का सुरक्षात्मक छाता खुल जाये परन्तु इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि राज्य आपस में इस तरह मिलजुल कर रहें जिस तरह एक ही फलदार ‘वृक्ष’ पर विभिन्न आकार के ‘फल’ रहते हैं। हमारे पुरखे हमें जो यह व्यवस्था सौंप कर गये थे उसका मन्तव्य यही था कि हर हालत में भारत की एकता और संप्रभुता बनी रहे किन्तु कोरोना संकट के दौरान जिस तरह पहले आक्सीजन युद्ध चला और अब वैक्सीन युद्ध शुरू हुआ है उससे कुछ गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पहला और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि देश की 139 करोड़ की आबादी को देखते हुए क्या हमारे पास पर्याप्त मात्रा में कोरोना वैक्सीन है? दूसरा सवाल इन वैक्सीनों के वितरण का है।
फिलहाल देश में ये वैक्सीन केवल दो कम्पनियां ही बना रही हैं। इनकी कुल अधिकतम मासिक क्षमता आठ करोड़ के लगभग है। हमने 18 से 45 वर्ष तक के लोगों के लिए विगत 1 मई से वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम शुरू किया है और इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकारों को दी है। इसके साथ यह भी तय किया है कि कुल स्थापित वैक्सीन क्षमता में से इन्हें केवल आधा ही मिलेगा और उसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी भी होगी। वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों को यह छूट होगी कि वे इन्हें अपनी तय की गई कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध करायें। 18 से 45 वर्ष तक के लोगों की भारत में कुल संख्या साठ करोड़ के करीब आंकी जा रही है। इस प्रकार इन साठ करोड़ लोगों के लिए हर महीने केवल चार करोड़ वैक्सीनें ही उपलब्ध होंगी। इस हिसाब से भारत की युवा आबादी को यदि दो बार वैक्सीन लगाई जाए तो यह कार्यक्रम कम से कम ढाई साल तक चलेगा जबकि देश में कोरोना संक्रमण की लहर इस तरह कहर बरपा रही है कि पूरे देश में हर मिनट में कम से कम दो आदमी मर रहे हैं क्योंकि 24 घंटे के भीतर चार हजार के करीब आदमी यह लोक छोड़ देते हैं। श्मशानों और कब्रिस्तानों के आगे मृतकों की लाइनें लगी हुई हैं। हद यह हो गई है कि अन्तिम संस्कार के लिए जगह कम पड़ जाने की वजह से उत्तर प्रदेश व बिहार के लोग अब लाशों को सीधे गंगा में बहा रहे हैं। यह किसी भी सभ्य समाज की कल्पना से परे की बात हो सकती है। लोग अपने परिजनों का अन्तिम संस्कार इस तरह करने को मजबूर हो जायें। अतः सबसे पहले हमें कोरोना वैक्सीन का उत्पादन इस तरह बढ़ाने की जरूरत है जिससे कम से कम समय में हम अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगा सकें। कुछ दिनों पहले ही मैंने लिखा था कि कोरोना वैक्सीन उत्पादक दोनों कम्पनियों के वैक्सीन बनाने के पेटेंट फार्मूले को भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत अन्य फार्मा कम्पनियों को दिया जाये और उन्हें वैक्सीन उत्पादन की इजाजत दी जाये। यह इसलिए बहुत जरूरी है क्योंकि कोरोना के संक्रमण से भारत की जनता को बचाने का एकमात्र उपाय केवल वैक्सीन ही है। अभी तक पूरी दुनिया में जितने भी चिकित्सीय शोध हुए हैं उनमें यही पाया गया है कि वैक्सीन से ही लोगों में कोरोना से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता पैदा की जा सकती है। भारत में कोरोना वैक्सीन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए यह स्वाभाविक ही है कि हर राज्य में इसकी भारी कमी होगी और वैक्सीन लगाने वाले केन्द्रों पर युवाओं की भारी भीड़ होगी जिससे पूरे देश में अराजकता का माहौल बनने की संभावनाएं खड़ी हो सकती हैं। अतः यह बेवजह नहीं है कि विभिन्न राज्य सरकारें 18 से 45 वर्ष तक की आयु के लोगों को वैक्सीन लगाने में स्वयं को असमर्थ पा रही हैं और पहले से उपलब्ध वैक्सीन कोटे से ही काम चला रही हैं जिसकी वजह से वैक्सीन केन्द्रों पर लोगों की भारी भीड़ लग रही है और इससे कोरोना संक्रमण के और अधिक फैलने की संभावना बन रही है। बेशक हम फिलहाल राष्ट्रीय स्तर कोरोना मरीजों की संख्या थोड़ी घट जाने (चार लाख से सवा तीन लाख के ऊपर) से राहत की सांस ले सकते हैं मगर कोरोना की आंख-मिचौली को नजरअन्दाज नहीं कर सकते हैं क्योंकि भारत में ही इसका एक नया उत्परिवर्तन (म्यूटेंट) पैदा हो चुका है जो वैज्ञानिकों के अनुसार बहुत तेजी से फैलने की क्षमता रखता है और जिसकी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत का ध्यान दिलाया है।
जाहिर है कि हमें इस कोरोना भयावहता की तरफ इस प्रकार ध्यान देना होगा कि हम अपनी पुरानी नीतियों की समीक्षा करते हुए चलें और प्रत्येक व्यक्ति को जल्दी से जल्दी वैक्सीन लगायें लेकिन देश में कोरोना को लेकर जो राजनीतिक नुक्तीचीनी का माहौल बना हुआ है उससे युवा पीढ़ी में यह आशंका पैदा हो रही है कि सरकारों के पास इस समस्या का कोई हल नहीं है और वे एक-दूसरे पर छींटाकशी करने में ही मशगूल हैं। अतः बहुत स्वाभाविक है कि लोग इस समस्या के हल के लिए भी देश के सर्वोच्च न्यायालय की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखें क्योंकि आक्सीजन का झगड़ा भी उसके हस्तेक्षप के बाद समाप्त हुआ। सौभाग्य से वैक्सीन समस्या भी देश की सबसे बड़ी अदालत के संज्ञान में है और वह इस पर विचार कर रही है। इसके साथ ही संवैधानिक प्रश्न यह है कि अनुच्छेद 21 के अनुसार कोरोना वैक्सीन प्राप्त करना हर भारतीय नागरिक का अधिकार बन चुका है और लोकतन्त्र की खासियत यह होती है कि इसमें कोई भी सुविधा कृपा से नहीं बल्कि कानूनी हक के तौर पर मिलती है। भारत की संसद का इतिहास एेसे ही अधिकारों के विवरण से भरा पड़ा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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