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घाटी की बदल रही फिजा

अफ्रीकन, मध्यपूर्व और यूरोपीय देशों के राजनयिकों के प्रतिनिधिमंडल के जम्मू-कश्मीर दौरे से भारत ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया कि भारत ही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है

अफ्रीकन, मध्यपूर्व और यूरोपीय देशों के राजनयिकों के प्रतिनिधिमंडल के जम्मू-कश्मीर दौरे से भारत ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया कि भारत ही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और उसकी संसदीय प्रणाली कितनी सफल और मजबूत है। भारत ने अपने इस कदम से यह भी साफ कर दिया है कि यहां शासन में कितनी पारदर्शिता है। भारत चीन की तरह एक बंद समाज या व्यवस्था वाला देश नहीं है, बल्कि यहां खुली व्यवस्था है। हर कोई खुली हवा में सांस ले सकता है। यहां हर किसी से समान व्यवहार किया जाता है, क्योंकि हमारा संविधान समानता पर आधारित है और हमारी इस पर पूर्ण आस्था और ​विश्वास है। कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद जम्मू-कश्मीर में विदेशी राजनयिकों का पहला दौरा है और 5 अगस्त, 2019 को संविधान के 370 अनुच्छेद निरस्त किए जाने के बाद विदेशी राजनयिकों की जम्मू-कश्मीर की यह चौथी यात्रा है। विदेशी राजनयिकों ने अक्तूबर 2019, जनवरी 2020 और फरवरी 2020 में राज्य का दौरा किया था। सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर राजनयिकों की जम्मू-कश्मीर में आने की वजह क्या है और इसके क्या निहितार्थ हैं?
दरअसल अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान भारत को बदनाम करने के षड्यंत्र रच रहा है। उसकी हालत खिसियानी ​बिल्ली खम्भा नोचे जैसी हो गई है। वह बार-बार कश्मीर का राग अलाप रहा है कि वहां अल्पसंख्यकों का दमन और शोषण किया जा रहा है, जम्मू-कश्मीर की आजादी खतरे में है। पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर लगातार अल्पसंख्यकों के शोषण और दमन का मुद्दा उठाता है, जबकि भारत लगातार कहता आ रहा है ​कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। इस पर किसी काे भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 
विदेशी राजनयिकों ने जिला विकास परिषदों के नवनिर्वाचित सदस्यों से बातचीत की। कुछ प्रमुख नागरिकों और प्रशासनिक सचिवों के साथ बैठक भी की। प्रतिनिधिमंडल को पंचायती राज की जानकारी दी गई। उन्हें कश्मीर के गांवों की बदल रही तस्वीर के संबंध में जानकारी दी गई। प्रतिनिधिमंडल हजरत बल मस्जिद भी गया और डल झील का दौरा भी किया। जिला विकास परिषदों  और पंचायत चुनाव शांतिपूर्ण और ​निष्पक्ष ढंग से हुए और इस दाैरान एक भी गोली नहीं चली। लोगों ने जमकर मतदान भी किया। इससे साफ है कि कश्मीरी अवाम की लोकतंत्र में आस्था है। स्थानीय लोगों से बातचीत करने के बाद बोलविया के राजनयिक ने मीडिया से कहा कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र मजबूत हुआ है। यह प्रभावशाली रहा और यहां के लोग केन्द्र सरकार द्वारा लिए गए राजनीतिक फैसलों से खुश हैं।
विदेशी राजनयिकों को जम्मू-कश्मीर में विकास परियोजनाओं की जानकारी दी गई। उन्हें पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ के प्रयासों और लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन के बारे में जानकारी दी गई। कुल मिलाकर यह अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे कुप्रचार से निपटने के लिए एक कूटनीतिक कवायद है। विपक्ष भले ही आरोप लगा रहा है कि केन्द्र सरकार कश्मीर मसले का अन्तर्राष्ट्रीयकरण कर रही है लेकिन पाकिस्तान के दुष्प्रचार को बेनकाब करने के लिए भी ऐसे कूटनीतिक प्रयास होने चाहिए ताकि विदेशी सच जान सकें।
विदेशी राजनयिकों के दौरे से पाकिस्तान को मिर्ची लगी है। पाकिस्तान की ओर से कहा गया है कि भारत दुनिया को भ्रमित करने के लिए ऐसे कदम उठा रहा है। अलगाववादी ताकतों ने भी कश्मीर बंद का आह्वान किया और आतंकी ताकतों ने डल झल के नजदीक फायरिंग कर गड़बड़ी करने की कोशिश की लेकिन वे अपने मंसूबाें में कामयाब नहीं हो पाए।
जम्मू-कश्मीर में फिजां बदलने लगी है। आतंकवाद और कश्मीरी पीड़ितों  के पलायन की वजह से बंद श्रीनगर के हब्बाकदल में 31 वर्ष बाद शीतलनाथ मंदिर काे बसंत पंचमी के मौके पर खोला गया। मंदिर में भक्तों ने पूजा-अर्चना की। मंदिर के पट खोलने के लिए स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी सहायता की। मंदिर के पास रहने वाले हिन्दू तो पलायन कर चुके हैं, इसलिए ज्यादातर मुस्लिम समुदाय ने ही सहयोग दिया। उन्होंने ही मंदिर में सफाई की और पूजा का सामाना लाकर ​दिया। कश्मीर में बदलते हालात का सबूत और क्या होगा कि मुस्लिमों ने मंदिर खोलने के लिए सहयोग देकर धर्मनिरपेक्षता की मिसाल पेश की है। आम लोग विकास चाहते हैं, सद्भावना चाहते हैं, युवा रोजगार चाहते हैं लेकिन चिंता तो उन्हें हो रही है जिनकी राजनीतिक दुकानें उजड़ चुकी हैं। हुर्रियत के नागों का काफी विश निकला जा चुका है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद राज्य में आतंकवादी हिंसा के मामलोें में कमी आई है और पत्थरबाज अब कहीं दिखाई नहीं दे रहे। यद्यपि पाक समर्थित आतंकवादी पुलवामा जैसी घटनाओं को दोहराने का प्रयास कर रहे हैं। सुरक्षा बलों की गोलियां राष्ट्र विरोधी तत्वों के लिए हैं। आम लोगों के लिए सेना जबरदस्त अभियान चला रही है। दूरदराज के इलाकों में सेना मैडिकल कैम्प लगाती है, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बच्चों को शिक्षित भी करती है। सुरक्षा बलों के व्यवहार से हर कोई खुश है। अलगाववाद का सुर अलाप रहे लोगों के लिए अंतिम विकल्प राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होना ही है। 370 की बहाली अब होने वाली नहीं, गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का संकेत दे दिया है। बेहतर यही होगा कि राज्य की मुख्यधारा के राजनीतिक दल लोकतंत्र को मजबूत बनाने का काम करें ताकि राज्य में शांति स्थापना हो सके। शांति स्थापना से विकास अपनी गति पकड़ेगा। पर्यटन बढ़ेगा तो राज्य का अर्थतंत्र मजबूत होगा।

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