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वैश्विक शक्तियों का अखाड़ा बना वेनेजुएला

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वेनेजुएला का संकट अब वैश्विक संकट बन चुका है। उसकी आर्थिक हालत तो पहले से ही कमजोर चल रही थी लेकिन सरकारी नीतियों के चलते महंगाई इतनी बढ़ गई कि लोगों का जीना दूभर हो गया। परिणामस्वरूप आक्रोशित जनता सड़कों पर आ गई। दूसरी तरफ वेनेजुएला में चल रहे सत्ता संघर्ष ने देश को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया कि यह अब अमेरिका, रूस और चीन का अखाड़ा बन चुका है। वेनेजुएला दक्षिण अमेरिका का ऐसा देश है जिसके पास सऊदी अरब से भी ज्यादा तेल है। उसके पास सोना भी है और प्राकृतिक गैस भी। तेल के बूते पर अगाध सम्पन्नता देख चुके देश में लोगों के भूखे मरने की नौबत आ चुकी है। वेनेजुएला में हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनावों में पहले से ही सत्ताधारी निकोलस मादुरो चुनाव जीत गए, लेकिन उन पर चुनावों में हेराफेरी का आरोप लगा। चुनाव में उनके सामने जुआन गोइदो थे जो संसद में विपक्ष के नेता बने। चुनाव नतीजों के बाद मादुरो का कहना है कि अगला चुनाव होने तक उन्हें अंतरिम राष्ट्रपति बनने का संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने खुद को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया है।

एक तरफ मादुरो पर गद्दी छोड़ने के लिए दबाव बढ़ रहा है, वहीं अमेरिका भी इस राजनीतिक घमासान में कूद पड़ा। डोनाल्ड ट्रंप कह रहे हैं कि मादुरो सरकार अवैध है और वह गोइदो को अंतरिम राष्ट्रपति स्वीकार करते हैं। अमेरिका वेनेजुएला की सेना को भी गोइदो का समर्थन करने के लिए उकसा रहा है। मादुरो ने अमेरिका से सभी सम्बन्ध तोड़ने की घोषणा करते हुए अमेरिकी राजदूत को 72 घण्टों के भीतर देश छोड़ने को कहा। अमेरिका के गोइदो को अंतरिम राष्ट्रपति स्वीकार कर लेने के बाद दक्षिण अमेरिका के 7 देशों ने भी उन्हें मान्यता दे दी। दूसरी ओर रूस, चीन, तुर्की, ईरान, मैक्सिको, बोल्विया और क्यूबा मादुरो का समर्थन कर रहे हैं। वैश्विक शक्तियां आमने-सामने आ चुकी हैं। अहम सवाल यह है कि वेनेजुएला की हालत ऐसी क्यों हुई? वैसे तो मानव सभ्यता के इतिहास में सबने नए देश बनते भी देखे और कुछ को मिटते भी देखा और दुनिया में शक्तिशाली सोवियत संघ को विखंडित होते भी देखा है।

1998 में ह्यूगो शावेज ने राष्ट्रपति पद सम्भाला था तो उन्होंने कई बदलाव किए। प्राइवेट उद्योगों का सरकारीकरण कर दिया। तेल कम्प​िनयों का भी सरकारीकरण कर दिया। तेल कम्पनियों से धन लेकर जरूरतमंदों के लिए भारी-भरकम खर्च करते रहे। जनता के लिए भारी-भरकम धन खर्च कर वह मसीहा तो बन गए लेकिन देश कर्जदार होता गया। शावेज ने जहां भी धन की कमी देखी वहीं कर्ज ले ​लिया। शावेज की समस्या यह थी कि वे बहुत ज्यादा साम्यवादी थे। उनका मानना था कि ‘‘यहां का अभिजात्य वर्ग पैसे वेनेजुएला में कमाता है लेकिन रहता मियामी में है। मियामी लैटिन अमेरिका की राजधानी है।’’ शावेज की गरीबी हटाने और समानता लाने से जुड़ी सामाजिक योजनाओं का स्वरूप ऐसा था कि देश की स्थिति बिगड़ती गई।

2013 में शावेज ने मादुरो को अपना उत्तराधिकारी चुना, जिन्हें विरासत में मिला कर्ज के बोझ तले दबा देश। तेल की कीमतें गिर रही थीं, जिससे आय घट गई और गरीबी बढ़ी। महंगाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लोगों को खाने के लाले पड़ गए। लाखों लोग दूसरे देशों में पलायन करने लगे। हालात ऐसे हो गए कि सरकारी दफ्तर भी सप्ताह में दो दिन ही खोले जाते रहे। महंगाई का आलम यह हो गया कि एक किलो मीट के लिए 3 लाख वोलिवर तक दे रहे हैं। जिनके पास पैसे नहीं वह लूटमार और हिंसा कर रहे हैं। हिंसक प्रदर्शनों में लोग मारे जा रहे हैं। यूरोपीय यूनियन हो या अमेरिका, उन्हें वेनेजुएला की तेल कम्पनियों का सरकारीकरण रास नहीं आ रहा था। अमेरिका की नजरें वहां की तेल सम्पदा पर लगी हुई हैं।

वेनेजुएला ने चीन और रूस से काफी कर्ज ले रखा है। पूरे लैटिन अमेरिका में चीन ने जितना पैसा निवेश किया हुआ है, उसका आधा वेनेजुएला में लगा हुआ है। चीन उससे काफी नरम व्यवहार कर रहा है। वह बार-बार पैसे देने की मियाद बढ़ाता रहता है और ब्याज दरें भी कम कर देता है। रूस भी उसकी मदद कर रहा है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने वेनेजुएला को गेहूं के निर्यात और वहां के तेल और खनन क्षेत्रों को 6 अरब डॉलर के अनुबंध पर सहमति जताई थी। पिछले महीने ही मादुरो ने मास्को में पुतिन के साथ बैठक की थी आैर इस बैठक के बाद रूस ने परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता वाले अपने दो बम्बर विमान वेनेजुएला की राजधानी कराकस भेज दिए थे। यह विमान वहां की सेना के लिए अभ्यास के लिए भेजे गए लेकिन इसका मकसद पश्चिम में रूसी सेना की ताकत का प्रदर्शन करना था।

डोनाल्ड ट्रंप वेनेजुएला पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि अमेरिका के लिए सैन्य विकल्प खुले हैं जबकि चीन आैर रूस अमेरिकी हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं। अमेरिकी हस्तक्षेप ने इराक, अफगानिस्तान और लीबिया जैसे देशों को बर्बाद करके रख दिया है। अब उसका अगला निशाना वेनेजुएला है। तेल सम्पन्न देशों पर कब्जा करना अमेरिका की रणनीति रही है। भारत भी वेनेजुएला से तेल खरीदता है आैर वह भारत के लिए बड़ा दवा बाजार भी है। सवाल एक राष्ट्र की सम्प्रभुता का भी है। देखना होगा कि वैश्विक शक्तियों का टकराव क्या मोड़ लेता है, फिलहाल एक और देश गर्त के कगार पर खड़ा है।

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