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हम हिन्द के वासी ‘हिन्दोस्तानी’

आज 15 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस है। यह 75वां स्वतन्त्रता दिवस अर्थात आजादी का अमृत महोत्सव भी है। यह दिन आत्म विश्लेषण करने का भी दिन है।

आज 15 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस है। यह 75वां स्वतन्त्रता दिवस अर्थात आजादी का अमृत महोत्सव भी है। यह दिन आत्म विश्लेषण करने का भी दिन है। हमें यह विचार करना ही होगा कि हमने पिछले 75 वर्षों के दौरान एक देश के रूप में कितना और कैसा सफर किया है। अब से 74 वर्ष पूर्व हम भारत को एक नया व आत्मनिर्भर देश बनाने जो चले थे उसमें हमें कितनी सफलता प्राप्त हुई है? इसके साथ ही यह विचार भी करना होगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमने जो ‘हम हिन्दोस्तानी’ की कसम खाई थी, उस पर हम कहां तक खरे उतर सके हैं। पूरे देश को याद रखना चाहिए कि जब 15 अगस्त, 1947 की अर्ध रात्रि को भारत ने अपने आजाद मुल्क होने की घोषणा की थी तो आजादी की मशाल को शोले में तब्दील करने वाले महात्मा गांधी नई दिल्ली में न होकर बंगाल के साम्प्रदायिक दंगों में जलते इलाकों की धूल छान रहे थे और हिन्दू-मुसलमानों को आपस में प्रेम व भाईचारे के साथ रहने की सीख दे रहे थे। भारत की पूर्वी सीमा पर तब एक अकेले व्यक्ति की सेना (सिंगल मैन आर्मी) साम्प्रदायिक दंगों की वीभत्स व अमानवीय आग को काबू करने मंे सफल रही थी जबकि पश्चिमी सीमा पंजाब के इलाके में सेना की हजारों कम्पनियां भी हिंसा को रोकने में असमर्थ हो रही थीं। अतः आजकल जो लोग गांधी के अहिंसक विचारों का मखौल बनाने की कोशिश करते हैं उन्हें इसका एहसास होना चाहिए कि गांधी के अहिंसक विचार हिंसा के विरुद्ध कितने बड़े अस्त्र थे। अतः प्रधानमन्त्री ने 14 अगस्त को ट्वीट करके जो विचार भारत के बंटवारे के सन्दर्भ में रखा उसका मन्तव्य आज के सन्दर्भों में यही है कि हम भारतवासी आपसी सहिष्णुता और प्रेम व सद्भाव से ही भारत को मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं। 
हमें यह याद रखना चाहिए कि मजहब के नाम पर 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान के बनने की घोषणा बेशक हो गई हो मगर भारत का 90 प्रतिशत संविधान बाबा साहेब अम्बेडकर की अगुवाई में बंटवारे के बाद ही लिखा गया और इसमें भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया। कितने नादान हैं वे लोग जो कहते हैं कि संविधान के आमुख पर धर्म निरपेक्ष नहीं लिखा था । उन्हें मालूम होना चाहिए कि संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में स्वतन्त्र भारत के हर नागरिक को निजी तौर पर धार्मिक आजादी देकर घोषणा की गई थी कि हर धर्म के अनुयायी के बराबर के अधिकार होंगे। गांधी ने ही हमें संसदीय लोकतन्त्र प्रणाली दी और आने वाली पीढि़यों पर यह भार डाला कि वे इस प्रणाली की शुचिता और पवित्रता को कायम रखते हुए अपने से नई पीढि़यों के आगे एेसे उदाहरण प्रस्तुत करें जिससे भारत में लोकतन्त्र का रूपान्तरण इसके लोगों के लगातार सशक्त होने में हो सके। मगर हाल ही में समाप्त संसद  वर्षाकालीन सत्र की दशा देख कर हर भारतवासी सकते में हैं और संसद स्वयं रो रही है कि किस प्रकार उच्च सदन के भीतर कुछ सांसदों की पिटाई तक की गई। पूरा देश राज्यसभा की वह पूरी सीसीटीवी फुटेज देखना चाहता है जिसमें मार्शलों और महिला सांसदों के बीच हाथापाई हुई। 
लोकन्त्र का ध्येय मन्त्र ‘लोकवाद’ होता है जो मानवता वाद का ही लघु भाष्य होता है। यह लोकवाद लोककल्याण में सरकारों की जवाबदेही तय करता है और सुनिश्चित करता है कि राजनीति में कार्य करने वाले हर कार्यकर्ता से लेकर नेता का जीवन केवल जनहित को ही समर्पित रहे। मगर आज के भारत को हमने हिन्दू और मुसलमान में बांटने की जो प्रतिस्पर्धा चलाई है उससे हमारे संविधान निर्माताओं की स्वर्ग में बैठी आत्माएं भी हतप्रभ होंगी कि बंटवारे के बावजूद उन्होंने जो संविधान इस देश को दिया उसमें हर नागरिक को पहले हिन्दोस्तानी लिख कर तय किया था कि आने वाली पीढियां पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए एेसे भविष्य का निर्माण करेंगी जिसमें केन्द्र में केवल इंसानियत रहेगी। 
जरा हौसला तो देखिये हमारे संविधान निर्माताओं का कि उन्होंने अंग्रेजों द्वारा बुरी तरह लूटे गये और साजिश करके इसे दो देशों मे बांटे जाने के बावजूद हमारे हाथ में एेसा हिन्दोस्तान दिया जिसमें हर गरीब से गरीब नागरिक को भी ऊंचे से ऊंचे पद तक पहुंचने की खुली छूट दी गई। मगर हम आज उसी प्रणाली को तार-तार करने पर आमादा दिखाई पड़ रहे हैं। यह आजादी हमने सदियों की गुलामी सहने के बाद पाई है और तब पाई है जबकि दो सौ साल तक अंग्रेजों ने हमारी भारतीय अस्मिता को जम कर पैरों तले रौंदा। याद कीजिये यह वही हिन्दोस्तान है जिसमें 1936 से पहले  मुस्लिम लीग के सिर उठाने तक हिन्दू-मुसलमान में कोई आपसी सामाजिक भेदभाव नहीं था। अंग्रेजों ने ही इसे पैदा किया और पाकिस्तान बनवाया। अधिसंख्य भारतीय बच्चे मदरसों में ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते थे।  
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद भी प्रारम्भिक शिक्षा ‘मदरसे’ से लेकर निकले थे। पचास के दशक तक यह भारत ही था जिसमें हिन्दू ‘मौलवी’ भी हुआ करते थे। यह भारत ही है जिसमें हिन्दू कव्वाल हजरत मुहम्मद साहब की शान में ‘नात’ गाया करते थे और मुस्लिम मिरासी व कव्वाल हिन्दू दर्शन की बारीकियां लोक लहरियों में सुनाया करते थे।  आज तक यह परंपरा चली आ रही है। इसी वजह से अकबर इलाहाबादी ने यह शेर लिखा था। 
‘‘रखी है शेख ने दाढ़ी सफेद सन्त की सी 
मगर वह बात कहां मौलवी ‘मदन’ की सी।’’
  भारत की विरासत 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का नायक वह मौलवी अजीमुल्ला खान भी है जिसने सबसे पहले नारा दिया था  ‘मादरे वतन भारत की जय” । नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का वह मुस्लिम साथी भी है जिसने ‘जय हिन्द’ का नारा दिया था। हम सभी भारतवासी आज प्रण करें कि हम सबसे पहले हिन्दोस्तानी हैं और हिन्द की रूह इंसानियत की  बुलन्दी ही हमारा मजहब है।

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