हमारे देश में हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई सब बराबर हैं। संविधान ने यह व्यवस्था तय की है, लेकिन सब जानते हैं कि लोकतंत्र में जब वोटतंत्र अपनी जगह बनाता है तो फिर जाति-पाति की सियासत जोर मारती है। इस मामले में मोदी सरकार सुशासन को समझती है तभी वह हर धर्म को एक ही नजरिये से देखती है और सबका सम्मान करती है। पिछले दिनों हज यात्रा पर मिलने वाली सब्सिडी को मोदी सरकार ने खत्म कर दिया तो इससे आम मुसलमान बहुत खुश हैं, क्योंकि वे जानते थे कि इस सब्सिडी की आड़ में टूर आपरेटर बड़ा खेल खेल रहे थे। लोग इस फैसले से खुश भी हैं और सबसे बड़ी बात है कि मुस्लिम भी खुश हैं कि उनके नाम पर सरकारी मदद की आड़ में कोई और घपला करे यह उन्हें पसंद नहीं।
अहम बात यह है कि कभी भी हिन्दू यात्रियों को किसी धर्मयात्रा पर, किसी सब्सिडी की यहां व्यवस्था नहीं है तो फिर किसी एक धर्म के साथ ऐसी व्यवस्था क्यों की जाए? हज का मतलब है मुंबई से मक्का तक का हवाई सफर एक खेल जिसकी आड़ में हज यात्रियों को लूटा जाता था, पर सरकार ने यह काम बंद कर दिया। इस पर अंगुलियां उठ रही थीं। सरकार ने ऐसा करके सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को लागू किया है, जो 2012 में लिखा गया था, जिसमें इस सब्सिडी को खत्म करने की सिफारिश की गई थी। सरकार ने यह भी कहा है कि मदद की यह रकम, जो सात सौ करोड़ रुपए तक जा पहुंची थी, अब उन मुस्लिम भाई-बहनों पर खर्च की जाएगी, जिन्हें सचमुच इसकी जरूरत है। धर्मनिरपेक्ष सरकारें वे होती हैं, जो सबको समान दृष्टि से देखे। वैसे भी देश का नाम जब हिन्दुस्तान है तो यहां रहने वाले लोग भले ही किसी भी धर्म के क्यों न हों, परंतु वे राष्ट के मामले में पहले हिन्दुस्तानी हैं, फिर किसी मजहब से जुड़ते हैं। अब मोदी सरकार सचमुच हर धर्म का सम्मान कर रही है। पिछले दिनों मुस्लिम महिलाओं पर होने वाली तीन तलाक और हलाला जैसी रूढि़वादी परंपराओं को कानूनन खत्म करके सरकार महिलाओं को भी बराबरी का दर्जा दे रही है। बात धार्मिक स्वतंत्रता की है। इस देश में किसी को भी कोई भी धर्म अपनाने की छूट है। ये सब नागरिकों के जातिगत निजी मामले हैं। असली सरकार वह होती है, जो हर धर्म का सम्मान करती है और जब कभी अलग-अलग धर्मों के लोग किसी धार्मिक यात्रा पर निकलते हैं तो उनके लिए रास्ते के लिए अच्छी व्यवस्था की जाती है।
अमरनाथ यात्रा के लिए सरकार टैक्स और अन्य व्यवस्था के साथ-साथ सुरक्षा उपलब्ध कराती है। मानसरोवर की यात्रा भी कठिन है, जिसे सुगम बनाने का काम जारी है। विभिन्न गुरुद्वारों की यात्रा के दौरान इसका जरूरी नियम और कायदा तय करना सरकार का फर्ज है। सरकारी व्यवस्था हर मामले में जरूरी है। हज को लेकर सरकार ने एक बढिय़ा काम यह किया है कि अब वह समुद्री मार्ग जो 1995 से बंद है, उसे फिर से शुरू किया जाए। सरकार सउदी अरब से मंजूरी ले चुकी है। यह समुद्री मार्ग खुलने से खर्च भी कम आएगा और इस तरह देश में अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने की सरकार की पहल को भी बल मिलेगा। अंग्रेजों ने कभी अपनी हुकूमत के दौरान सउदी अरब में हज के लिए जाने वाले मुसलमानों को मुंबई और कोलकाता में पानी के जहाजों की व्यवस्था की थी। इन जहाजों के जरिए खर्चा कम करने के लिए अंग्रेज सरकार खुद पैसे खर्च किया करती थी, परंतु 1954 से सरकार ने हज कानून बनाकर जो काम किया वह उस परिस्थिति में ठीक रहा होगा, पर अब बदलती दुनिया में मोदी सरकार इसे सही दिशा में ले आई है। ताज्जुब की बात यह है कि अनेक मुस्लिम संगठन हज की मदद के नाम पर हवाई यात्रा जो टूर आपरेटर तय करते थे, उसे खत्म करने की मांग कर रहे थे।
अब सरकार ने सब कुछ सैट कर दिया है। सरकारी व्यवस्था सही दिशा में है तो सब कुछ सामान्य हो जाना चाहिए। हालांकि राजनीतिक तौर पर इस हज सब्सिडी के मामले में हो-हल्ला करने वालों की कमी नहीं है लेकिन लोग जानते हैं कि सरकार का फैसला सही दिशा में है। किसी एक खास वर्ग को धर्म की आड़ में सरकारी मदद से छेड़छाड़ की इजाजत नहीं दी जा सकती।हिन्दू और मुसलमान के चक्कर में इस देश में सियासत चलती रही है और भ्रम भी फैलाये जाते हैं, लेकिन भाजपा राष्ट्रधर्म का सम्मान करती है और हर नागरिक को बराबर समझती है, क्योंकि इस देश में हर कोई अपनी धार्मिक यात्रा अपने पैसे के दम पर करता है और इस काम के लिए उसे किसी की भीख या मदद की जरूरत नहीं। सच बात तो यह है कि हिन्दू, सिख, मुसलमान या ईसाई अपनी हर धार्मिक यात्रा के दौरान गरीबों को अन्न और भोजन का दान भी देते हैं। यही सच्ची इंसानियत है, यही सच्ची राष्ट्रीयता है, जो हिन्दुस्तान की पहचान है। इस दृष्टिकोण से हज यात्रा पर सब्सिडी खत्म करने के फैसले का देशभर में स्वागत किया जा रहा है। 2017 में हज पॉलिसी का ड्राप्ट सरकार ने तैयार किया था और मुस्लिमों को मजबूत करने की दिशा में सरकार बढ़ चली है।