कश्मीर में हत्याएं कब रूकेंगी ? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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कश्मीर में हत्याएं कब रूकेंगी ?

कश्मीर घाटी में जिस तरह यहां रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दुओं को निशाना बनाकर हत्याएं की जा रही हैं उससे आतंकवादियों की घृणित योजना का अन्दाजा लगाया जा सकता है।

कश्मीर घाटी में जिस तरह यहां रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दुओं को निशाना बनाकर हत्याएं की जा रही हैं उससे आतंकवादियों की घृणित योजना का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि घाटी में अब बहुत कम वे कश्मीरी पंडित परिवार ही बचे हैं जो 1990 में घाटी में अपने वर्ग के लोगों के हुए सामूहिक निष्कासन के बावजूद अपने मूल स्थानों में ही रहे थे। पुलवामा जिले के अचन गांव में जहां 1990 में साठ पंडित परिवार रहते थे वहां अब केवल एक ही परिवार रह रहा था और आतंकवादियों ने कल इस परिवार के संजय शर्मा की हत्या भी उस समय कर डाली जब वह अपनी पत्नी के साथ बाजार से दवा लेने गये थे। संजय शर्मा जम्मू-कश्मीर बैंक में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे। विगत अक्टूबर 2021 से घाटी में यह पांचवीं ऐसी हत्या है जो कश्मीरी पंडित परिवार के किसी व्यक्ति की गई है। सवाल बहुत बड़ा है कि आतंकवादी कश्मीरी पंडितों या हिन्दुओं को निशाने पर रखकर ही उनकी हत्याएं चुन-चुन कर क्यों कर रहे हैं ? और इसकी मार्फत वे कौन सा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं ? जाहिर है कि 5 अगस्त 2019 से जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिकों का रुतबा भारतीय संविधान के अनुसार शेष भारत के अन्य राज्यों के नागरिकों के बराबर कर दिये जाने के बाद आतंकवादियों से यह सहन नहीं हो पा रहा है कि घाटी में जितने भी औऱ जो भी बचे हुए हिन्दू या कश्मीरी पंडित हैं वे अपने मुस्लिम भाइयों के साथ हिल-मिल कर रह सकें और कश्मीरी संस्कृति को बुलन्द रख सकें। इससे यह भी साफ है कि इन आतंकवादियों को कश्मीरी मुसलमानों पर भी भरोसा नहीं है इसलिए वे घाटी में साम्प्रदायिकता की आग को जिन्दा रख कर अल्पसंख्यक समाज में भय व अविश्वास का माहौल पैदा करना चाहते हैं।
वे चाहते हैं कि इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप कश्मीरी मुसलमानों के प्रति नफरत का माहौल बने और राज्य की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाये क्योंकि घाटी में आने वाले पर्यटकों में 90 प्रतिशत से अधिक हिन्दू ही होते हैं। कश्मीर में जो भी पर्यटक आते हैं वे यहां होने वाली अपनी मेहमाननवाजी की बहुत खुशनुमा यादें लेकर वापस लौटते हैं और कश्मीर की दिलकश संस्कृति के अफसाने उनकी जुबां पर रहते हैं। जरा सोचिये तीन महीने पहले ही संजय शर्मा के घर के पास एक पुलिस पोस्ट बना कर उन्हें सुरक्षा सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई थी मगर इसके बावजूद उनकी हत्या बाजार में घर से केवल 100 फुट की दूरी पर कर दी गई। मगर इस बार ‘अचन’ गांव में एक उल्लेखनीय काम यह हुआ है कि हत्या के खिलाफ गांव के मुसलमानों ने ही प्रदर्शन किया है और अपराधियों को कड़े से कड़ा दंड देने की मांग की है। इन मुस्लिम नागरिकों का कहना है कि ये लोग कौन हैं जो न जाने कहां से आते हैं और हत्या करके गायब हो जाते हैं ? प्रशासन के लिए भी यह सवाल बहुत बड़ा है क्योंकि पाकिस्तान परस्त तत्वों पर पिछले तीन साल में लगभग काबू पा लिया गया है और अलगाववादी तत्व अलग-थलग कर दिये गये हैं।
राज्य में धारा 370 को पुनः लागू करने के बारे में भी कहीं कोई आवाज नहीं उठ रही है और सभी मुस्लिम नागरिकों ने भी इस हकीकत को समझ लिया है कि उनका दूरगामी हित भारत के संविधान के तहत मिले सभी नागरिक अधिकार प्राप्त करने से ही सधेगा। वैसे भी कश्मीर के सभी नागरिक शुरू से ही खुद को हिन्दुस्तानी मानते हैं और उनकी पाकिस्तान के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रही है। बल्कि वास्तविकता तो यह है कि 1947 में पाकिस्तान बनने का पुरजोर विरोध कश्मीरी जनता ने ही किया था और जब इस वर्ष पूरे देश में जमकर साम्प्रदायिक दंगे हो रहे थे तो अकेले जम्मू-कश्मीर में ही पूर्णतः शान्ति व सौहार्द का माहौल था जिसे देखकर महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘जब देश में चारों तरफ अंधेरा मंडरा रहा है तो जम्मू-कश्मीर से एक उम्मीद की किरण चमकती हुई दिखाई पड़ रही है।’ मगर पाकिस्तान से कश्मीरी संस्कृति की खुश्बू कभी बर्दाश्त नहीं हुई और इसके मजहबी तास्सुब के जेहादियों ने 1990 में वह अमानुषिक कार्य किया जिसकी पीड़ा पूरा कश्मीर अभी तक झेल रहा है।
इन लोगों से आज भी बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है कि घाटी में अपनी जमीन के दीवाने जो पंडित उस वर्ष के अत्याचार से भी नहीं घबराये थे वे कैसे अब तक कश्मीर में रह रहे हैं?  इसका जवाब कश्मीर के मुसलमान ही दे सकते हैं जिसकी शुरुआत संजय शर्मा के गांव अचन से हुई लगती है। यदि समाज यह ठान ले कि उसके ताने-बाने को कोई भी ताकत नहीं तोड़ सकती है तो आततायी वहीं ढेर हो जाते हैं। अतः कश्मीर के हर गांव में जहां भी कश्मीरी पंडित रहते हैं, वहां सामाजिक स्तर पर मुसलमान नागरिक उनकी सुरक्षा की तैयारी स्वयं करें। कश्मीर में जब मुसलमान धार्मिक स्थलों की यात्रा करने में हिन्दू यात्रियों की पूरी मदद करते हैं और उनकी सुरक्षा तक का ख्याल रखते हैं तो कोई वजह नहीं है कि किसी भी गांव में किसी हिन्दू को कोई आतंकवादी अपना निशाना बना सके। प्रशासन का भी कर्त्तव्य बनता है कि वह समाज के एेसे कामों को न केवल समर्थन दे बल्कि उन्हें हर तरह से सशक्त बनाये।

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