सोनभद्र की पहाड़ियों में कुछ दिन पहले सोने का भंडार होने की खबरें आई थी तो प्रबुद्ध लोगों से लेकर आम लोगों की प्रतिक्रियाएं भी आ गई थी कि इस स्वर्णिम भंडार से देश की अर्थ व्यवस्था मजबूत हो जाएगी। संकरी गलियों से लेकर चौराहों तक इस बात की चर्चा थी कि भारत फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा लेकिन सोना पाये जाने की खबर गलत सूत्रों पर आधारित थी, इसलिये सारी उम्मीद निराशा में बदल गई। इस निराशा के बीच सोनभद्र के विली भारकुंडी खनन एरिया में अचानक खदान धंसने से मजदूर दब गये। खदान के मलबे को हटाने में 34 घंटे का समय लग गया और 5 मजदूरों के शव निकाले गये।
जिस जगह से सोना निकलता था, वहां से मजदूरों की लाशें क्यों मिल रही हैं। वर्ष 2012 में भी 27-28 फरवरी की रात को खदान धंसने से 11 मजदूरों को जान गंवानी पड़ी थी। इस वर्ष भी फरवरी माह ही मजदूरों के लिये काल बन गया है। हादसे के बाद सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि खदान के पट्टा धारक के खिलाफ मुकदमा दर्ज न हो इसके लिये भी जिला खनन अधिकारी पोस्टमार्टम हाउस पर मृतकों के परिजनों से सौदेबाजी करते दिखे। इस संबंध में एक वीडियो भी वायरल हुआ। वायरल वीडियो में जिला खनन अधिकारी को कहते सुना जा सकता है कि मुकदमे का कोई फायदा नहीं, पट्टा धारक पैसे दे देगा। सरकारी मदद मिलाकर कुल 17 लाख मिल जायेंगे हालांकि सामने वाला कह रहा है कि 25 लाख करवा दीजिये। जिला खनन अधिकारी शवों पर तोल-मोल कर रहे थे और खदान पट्टा धारक की पैरवी कर रहे थे लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घटना का संज्ञान लेने के बाद उनकी सारी पैरवी बेकार हो गई।
अब पट्टा धारक और विभागीय अधिकारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है। देशभर में अवैध खनन माफिया सक्रिय है और इस माफिया को प्रशासनिक अधिकारियों का पूरा संरक्षण मिलता है। मिट्टी, बालू, पत्थर, लौह अयस्क, कोयला और जिंक बाक्साईट तक का अवैध खनन हो रहा है। ऐसा केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं हो रहा बल्कि हर राज्य में हो रहा है। अवैध खनन माफियाओं को स्वर्ण खदानों की जरूरत ही क्या है। उनके लिए मिट्टी ही सोना उगल रही है, बालू के कण उनके लिए स्वर्ण कणों के समान हैं। उनके लिए मजदूर की लाश की कीमत 5 लाख तक हो सकती है।
सुरक्षा मानकों की अनदेखी और खनन विभाग के जिम्मेदारों की लापरवाही का खामियाजा जहां श्रमिकों को भुगतना पड़ रहा है वहीं सरकारी राजस्व की भी क्षति पहुंच रही है। कहा जा रहा है कि सोनभद्र की अधिकांश खदानों में सुरक्षा मानकों का जरा भी ख्याल नहीं रखा जा रहा। जो श्रमिक खदान में खनन के लिए उतरते हैं उन्हें पहले सुरक्षा किट (जिसमें वर्दी, हैलमेट, सेफ्टी बैल्ट, जैकेट और जूते शामिल हैं) दी जानी चाहिए। इसका अनुपालन भी खनन विभाग नहीं करवा रहा। खदान में श्रमिकों को उतारने से पहले सारे सुरक्षा मानक पूरे कर लिए जाने से ही श्रमिकों की जान बचाई जा सकती है। छोटे-छोटे हादसों में मजदूरों की जान चली जाती है लेकिन जिम्मेदार लोग पैसे से मामला दबा देते हैं। अवैध खनन केवल अधिकारियों की मिलीभगत से ही नहीं होता बल्कि यह सब राजनीतिक संरक्षण से होता है। हिस्सा ईमानदारी से बंटता है।
यह बात अब किसी से छिपी हुई नहीं है कि सोनभद्र से अवैध खनन का धंधा सिंडिकेट बनाकर किया जा रहा है। लगभग ढाई महीने पहले जब जांच की गई थी तो जांच में निर्धारित से ज्यादा क्षेत्र में पत्थर खनन पाया गया था। तब 18 खदान संचालकों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। कहा तो यह गया था कि सरकारी राजस्व को हुए नुक्सान की भरपाई खदान संचालकों से की जाएगी लेकिन क्या कार्रवाई हुई इस बारे में सब खामोश हैं।जिस देश में आदिवासियों की पहाड़ियां अवैध खनन से खाली कर दी जाएं। उनकी जल, जंगल और जमीन छीन ली जाए, जिस देश में अरावली की पहाड़ियां गायब हो जाएं और वहां पर आलीशान कालोनियां बना दी जाएं, जिस देश में लौह अयस्क का अवैध खनन हो तथा उसे सोने के भाव बेचा जाए और खदान संचालकों के निजी हैलीकाप्टर आ जाएं, उस देश में मजदूर की जान की कीमत क्या होगी? भयावह स्थितियों का आकलन लगाना कठिन नहीं है।
सोनभद्र में बेरोजगारी का आलम यह है कि दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए बालू खदानों में मजदूरी के लिए आदिवासियों की मंडी लगती है और मंडी में सिर्फ मजबूत कद काठी वालों को ही काम मिलता है। खदान संचालकों की सुरक्षा और उपकरणों की रखवाली के लिए ‘दिहाड़ी’ पर पुलिस कर्मी भी तैनात रहते हैं। मजदूरों की आर्थिक स्थिति कमजोर है और दबंग उनका शोषण कर रहे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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