आखिर पुल टूटा क्यों? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

आखिर पुल टूटा क्यों?

मानसून के दिनों में बिहार और असम में हर साल बाढ़ से भयंकर तबाही होती है। इसके अलावा गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय राज्यों के महानगर भी चपेट में आ जाते हैं।

मानसून के दिनों में बिहार और असम में हर साल बाढ़ से भयंकर तबाही होती है। इसके अलावा गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय राज्यों के महानगर भी चपेट में आ जाते हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई का मंजर आप देख ही रहे हैं। भारी वर्षा से जनजीवन तो प्रभावित होता ही है, जान-माल का भयंकर नुक्सान भी होता है। बाढ़ की विभीषिका की वजह बिल्कुल साफ है परन्तु उसे दूर करने को लेकर कोई गम्भीरता नहीं दिखाई जाती। हर साल जल निकासी की बुनियादी खामियों को दूर करने की योजनाएं तैयार की जाती हैं, करोड़ों खर्च करने की बातें की जाती हैं, लेकिन हर बरसात में सब कुछ पानी में बह जाता है।
बिहार पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ कोरोना संक्रमण फैलता जा रहा है। संक्रमण के मामले में पटना टॉप पर है, दूसरी तरफ बिहार की नदियां उफान पर हैं। काफी आबादी बाढ़ की चपेट में है। बिहार में हर वर्ष बाढ़ क्यों आती है, इसका सीधा सा उत्तर दिया जाता है कि राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां ही ऐसी हैं। बिहार के सात जिले ऐसे हैं जो नेपाल से सटे हैं। पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपोल, अररिया और किशनगंज जिले नेपाल के बिल्कुल साथ हैं। नेपाल पहाड़ी इलाका है, जब बारिश होती है तो पहाड़ों से पानी नीचे आता है तो वह पानी ​बिहार में दाखिल होता है। बाढ़ केवल नेपाल से आने वाले पानी से ही नहीं आती और भी अन्य कारण हैं। ​बिहार की उत्तरी सीमा नेपाल से, पूर्वी सीमा बंगाल से, पश्चिमी सीमा उत्तर प्रदेश से और दक्षिणी सीमा झारखंड से लगती है। बिहार में गंगा उत्तर प्रदेश से आती है और बक्सर, छपरा, हाजीपुर, मुंगेर, भागलपुर होते हुए कटिहार जाती है और वहां से बंगाल चली जाती है। और भी नदियां हैं जो हर साल उफनती हैं। नेपाल में पिछले कई साल से खेती की जमीन के लिए जंगल काट दिए गए हैं। जंगल मिट्टी को अपनी जड़ों से पकड़ कर रखते थे, अब ऐसा नहीं होता। जंगल कटने से मिट्टी का कटाव बढ़ गया है। 
नेपाल में कोसी नदी पर बांध बना है। ये बांध भारत और नेपाल की सीमा पर है, जिसे 1956 में बनाया गया था। इस बांध को लेकर भारत-नेपाल में संधि है। संधि के तहत नेपाल में कोसी नदी में पानी ज्यादा हो जाता है तो नेपाल बांध के गेट खोल देता है ताकि बांध को नुक्सान न हो। हैरानी की बात तो यह है कि 1956 से अब तक ऐसा कोई उपाय नहीं किया गया कि बाढ़ के पानी को मैदानी क्षेत्रों में आने से रोका जाए। 1954 में बिहार में 160 किलोमीटर तटबंध था। तब 25 लाख हैक्टेयर जमीन बाढ़ प्रभावित थी। अब करीब 3700 किलोमीटर के लगभग तटबंध हैं लेकिन बाढ़ में प्रभावित क्षेत्र 70 लाख हैक्टेयर हो चुका है। जिस तरीके से बाढ़ में इजाफा हो रहा है, उस हिसाब से न तो तटबंध बने और न ही योजनाएं। हर साल तटबंध बह जाते हैं, इस बार भी गोपालगंज में 264 करोड़ की लागत से बना सत्तरघाट महासेतु का एक हिस्सा पानी के दबाव से टूट गया। इस महासेतु का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 16 जून को वीडियो कांफ्रैंसिंग के जरिये किया था। 
गोपालगंज को चम्पारण से और इसके साथ तिरहुत के कई जिलों से जोड़ने वाला यह अति महत्वाकांक्षी पुल था। पुल गिरा तो​  बिहार की सियासत भी गर्मा गई।​ विपक्षी दल राजद, कांग्रेस और नीतीश सरकार की सहयोगी पार्टी लोक जन शक्ति ने इसे भ्रष्टाचार का उदाहरण बताते हुए दोषी लोगों पर कार्रवाई की मांग की है। वहीं नीतीश सरकार इस मामले में यह कहकर बचाव कर रही है कि पुल को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा। कुछ दिन पहले एक ग्रामीण ने एक वीडियो जारी किया था जो घटना से कुछ दिन पूर्व  दिखा रहा है कि सही निर्माण न होने के कारण वहां सम्पर्क पथ पर बना पुल कैसे खतरे में है। अगर इलाके के अधिकारी और ठेकेदार समय पर सचेत रहते तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती। 
अगर करोड़ों की लागत से बना पुल टूटा तो जाहिर है कि उसका निर्माण मानदंडों के अनुरूप नहीं हुआ। अगर ऐसे ही पुल टूटते रहे तो पहाड़ी इलाकों में बनाए गए पुल भी रोज टूट जाते। दरअसल बाढ़ राजनीतिज्ञों के लिए हर वर्ष आने वाला उत्सव है। हवाई दौरे कर बाढ़ का जायजा लिया जाता है, बाढ़ राहत के नाम पर लोगों की सहायता की घोषणाएं की जाती हैं। केन्द्र से ज्यादा धन की मांग की जाती है। बिहार में चुनावी वर्ष है तो यह सब कुछ जोर-शोर से होगा लेकिन पुल टूटते ही इसलिए हैं क्योंकि निर्माण कार्यों में व्यापक रूप से भ्रष्टाचार फैला हुआ है। सुशासन बाबू की सरकार को कम से कम पुल निर्माण की जांच तो करानी ही चाहिए। फ्लड फाइटिंग के नाम पर अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं होता। भ्रष्ट नेता और ​अधिकारी बाढ़ को दुधारू गाय समझते हैं। राज्य में जितने पुल और बांध टूटे हैं, उन सबकी जांच तो कराई जानी चाहिए। कोरोना काल में बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत काफी खस्ता है। बिहार की बाढ़ से नीतीश कुमार की छवि को धक्का लग सकता है। बाढ़ को लेकर केन्द्रीय मंत्री गि​रिराज सिंह ने भी सवाल खड़े किए हैं।
नीतीश कुमार 14 साल से शासन कर रहे हैं तो उनकी सरकार ने ढालू भूमि पर पौधारोपण, नदी तटबंधों का निर्माण, जल निकासी का प्रबंध, जलाशयों का निर्माण, नदियों की प्रवाह क्षमता बढ़ाने की ​दिशा में काम क्यों नहीं किया। बाढ़ रोकने के ​लिए वैकल्पिक उपायों को क्यों नहीं तलाशा गया। बंगलादेश भी बाढ़ से प्रभावित होता आया है लेकिन उसने छोटी सिंचाई योजनाओं के जरिये बाढ़ की समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण किया है। नदियों के अतिरिक्त पानी को नहरों से दूसरी जगहों तक पहुंचाने, नदियों के अपस्ट्रीम में जलाशय बनाने की योजनाएं बनाई जा सकती थीं।
जहां तक असम का सवाल है, राज्य के 28 जिले बाढ़ की चपेट में हैं। अब तक 75 लोगों और दर्जनों मवेशियों की मौत हो चुकी है। 40 लाख लोग प्रभावित हैं। लाखों हैक्टेयर कृषि भूमि पर खेती बर्बाद हो चुकी है। प्रकृति के क्रोध का कुछ पता नहीं क्या कर बैठे। जब तक बाढ़ रोकने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत नहीं किया जाएगा, हर साल लोग मरते रहेंगे। जहां तक शहरों में आ रही बाढ़ का सवाल है उसके लिए अनियोजित विकास और मानव खुद जिम्मेदार है। बढ़ती आबादी के कारण अधिकांश शहरों का जल निकासी प्रबंधन जर्जर हो चुका है। मुम्बई  और चेन्नई इसके उदाहरण हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

13 − eight =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।