क्या ‘बेनजीर’ होंगे बिलावल भुट्टो? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

क्या ‘बेनजीर’ होंगे बिलावल भुट्टो?

पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं बेनजीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पुत्र बिलावल भुट्टो पाकिस्तान के नए विदेश मंत्री बन गए हैं। बिलावल भुट्टो 2018 में पहली बार पाकिस्तान के सांसद चुने गए थे

पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं बेनजीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पुत्र बिलावल भुट्टो पाकिस्तान के नए विदेश मंत्री बन गए हैं। बिलावल भुट्टो 2018 में पहली बार पाकिस्तान के सांसद चुने गए थे मगर वो सरकार में पहली बार मंत्री पद सम्भाल रहे हैं। विदेश मंत्री का पद अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। पहले बिलावल भुट्टो को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था। कहा जा रहा था कि सत्तारूढ़ हुई पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) और बिलावल की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बीच कुछ पदों पर नियुक्ति को लेकर मतभेद थे और सम्भवतः उसे ही सुलझाने बिलावल भुट्टो नवाज शरीफ से मिलने लंदन गए थे।  अटकलों का बाजार गर्म रहा। सबसे बड़ा सवाल उठाया गया कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी एक-दूसरे की विरोधी रही हैं। ऐसे में दोनों ही पार्टियों में एक के अध्यक्ष दूसरे दल के अध्यक्ष के मातहत क्या काम कर पाएगा? इस सवाल का अंत ​बिलावल के विदेेश मंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही खत्म हो गया। नवाज शरीफ से मिलकर लंदन से लौटते ही उन्हें विदेश मंत्री बना दिया गया। विपक्ष का एक साथ आने का मकसद इमरान खान की सरकार को हटाना और चुनाव करवाना था। वक्त की जरूरत भी यही है कि समूचा विपक्ष एकजुट होकर काम करे। 
गठबंधन सरकारों में ऐसा होता रहा है कि धुर ​िवरोधी भी न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाकर सरकार चलाते हैं और विवादों और मतभेदों को दरकिनार कर देते रहे हैं। भारत में भी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए गठबंधन की सरकार में भी मतभेदों को दूर रखते हुए तमाम छोटे-बड़े विपक्षी दलों ने सत्ता में भागेदारी की थी। गठबंधन सरकारों में ऐसा तो होता ही है कि जिसकी ज्यादा सीटें हों उसके मंत्री ज्यादा होते हैं। ​बिलावल भुट्टो को विदेश मंत्री बनाने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि यद्यपि शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बन गए हैं लेकिन महत्वपूर्ण फैसले लंदन में बैठे नवाज शरीफ ही ले रहे हैं। गठबंधन सरकारों में महत्वपूर्ण मंत्रालय लेने की होड़ तो रहती ही है। 
सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने और बिलावल भुट्टो के विदेश मंत्री बनने से भारत से पाकिस्तान के रिश्तों पर क्या कोई असर होगा। यद्यपि कश्मीर को लेकर बोलना घरेलू राजनीति के चलते शहबाज शरीफ की राजनीतिक विवशता है लेकिन याद रखना होगा कि नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो के शासनकाल में भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य गति से आगे बढ़ रहे थे लेकिन परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध की साजिश रचकर बेहतर हो रहे रिश्तों पर पानी फेर दिया था। शहबाज शरीफ उन्हीं नवाज शरीफ के भाई हैं जिन की पोती की शादी में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री मोदी 2015 में अचानक लाहौर पहुंच गए थे। तब प्रधानमंत्री के साथ तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुुषमा स्वराज भी थीं। शहबाज शरीफ 2013 में भारत आए थे  और भारत में अपने पुरखों के गांव भी गए थे। शरीफ परिवार अनंतनाग का रहने वाला था जो बाद में व्यापार के सिलसिले में अमृतसर के जट्टी उमरा गांव में रहने लगा। बाद में परिवार अमृतसर से लाहौर जा पहुंचा। जहां तक बिलावल भुट्टो का सवाल है वे युवा हैं और उन्हें अभी काफी कुछ सीखना है। दस साल पहले 8 अप्रैल 2012 को वे अपने पिता आसिफ अली जरदारी के साथ भारत आए थे जो उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। तब भारत के लोगों और मीडिया ने बिलावल भुट्टो में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई थी। उस वक्त ​बिलावल ने ट्विटर पर लिखा था ‘‘मेरी मां ने एक बार कहा था कि हर पाकिस्तानी के दिल में कहीं न कहीं भारत बसता है और हर भारतीय के दिल में छोटा सा पाकिस्तान बसता है।
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बिलावल भुट्टो ने टिप्पणी की थी कि यह बड़े शर्म की बात है कि दोनों देशों में बड़ी संख्या में लोग गरीबी में रहते हैं और हम इतना पैसा परमाणु हथियारों पर खर्च करते हैं ताकि एक-दूसरे को तबाह कर सकें। यदि इस पैसे का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवाओं में लगाएं और गरीबी दूर करने का प्रयास करें तो काफी कुछ बदल जाएगा। फिलहाल बिलावल भुट्टो और शरीफ परिवार में वैसा ही समझौता हुआ है जैसा 2006 में बिलावल भुट्टो की मां बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ के बीच चार्टर ऑफ डैमोक्रेसी समझौता हुआ था। तब दोनों पार्टियों ने कुछ संविधानिक संशोधन राजनीतिक व्यवस्था में सैन्य हालात, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, जवाबदेही और आम चुनाव कराने पर सहमति बनाई थी।  भारत से संबंध सुधारने के लिए बिलावल भुट्टो और उनकी सरकार कैसे आगे बढ़ती है यह देखना भविष्य की बात है। देखना यह होगा कि क्या बिलावल भारत को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति में कोई बदलाव ला सकेंगे। हालांकि उनसे निर्णायक बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन नवाज शरीफ भी यह चाहेंगे कि भारत से रिश्तों पर जमी बर्फ पिघले और वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो। यह भी देखना होगा कि शहबाज शरीफ सरकार पाकिस्तान की सेना  को अपनी नीतियों से कितना अलग रख पाती है और उस पर कितना लगाम लगा कर रखती है। क्या बिलावल अपनी मां की तरह ‘बेनजीर’ व्यक्तित्व बन पाएंगे?
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twelve − two =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।