पहली बार आजाद भारत में ऐसा हो रहा है कि 543 सीटों पर खड़े होने वाले ज्यादातर उम्मीदवार जीत रहे हैं। यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि चुनावी पंडितों, सट्टेबाजों और पंटरों के दावे चैलेंज दे रहे हैं कि उनके बताए हुए कैंडिडेट्स जीत रहे हैं। अगर यह बात सही है तो फिर एक हजार से ज्यादा लोग जीतकर लोकसभा पहुंचने वाले हैं। भाजपा के उत्साही लोग 400 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं जबकि कांग्रेस के उत्साही लोग 2014 की मोदी लहर को ध्वस्त करते हुए अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर का नाम हमारे नेता लोग ही बदल चुके हैं। जिस तरह से हालात चल रहे हैं वे इसका नाम अपने आचरण से अब लोकतंत्र का बाजार रख चुके हैं।
आज लोकसभा चुनावों का छठा फेस खत्म होने जा रहा है और इसके बाद अंतिम चरण का मतदान जब 19 तारीख को होगा तो वही सवाल फिर से उभरेगा कि आखिरकार कौन जीतेगा। आज कुल 59 सीटों पर वोटिंग खत्म हो जाएगी और इस तरह 484 सीटों पर प्रत्याशियों का भाग्य देश के ताकतवर वोटर ईवीएम में सील कर देंगे। हमारा मानना है कि इतनी सीटों पर वोटिंग का मतलब है कि लोकतंत्र के ब्लैकबोर्ड पर वोटर अपनी इबारत तो लिख ही देंगे और साथ ही 19 तारीख को यह एग्जिट पोल वाले लोग प्रत्याशियों और उनकी पार्टियों के दिलों की धड़कनों को 23 मई तक बढ़ा देंगे। हार-जीत को लेकर सवाल तो उठते ही रहेंगे क्योंकि हर सवाल लहर की तरह है जो चढ़ती है और उतरती है। इन्हीं सवालों के बीच अहम सवाल यह है कि आखिरकार जीतेगा कौन? प्रधानमंत्री मोदी दूसरी बार अपनी लहर से अकेले दम पर भाजपा की सरकार बना देंगे? कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी क्या कांग्रेस को वो सफलता दिलवा देंगे जिसका कांग्रेस सिपहसालारों को इंतजार है।
सपा-बसपा गठबंधन यूपी में अकेले 45 सीटें ले जाएगा और भाजपा को 25 पर समेट देगा तो वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में अपना करिश्मा दिखा कर कांग्रेस को बुलंदी पर ले जाएंगी इत्यादि सवाल हर तरफ उठ रहे हैं। उधर राजनीतिक पंडित दावा कर रहे हैं कि इस बार 2014 की तरह मोदी लहर चल रही है तो वहीं इन्हीं राजनीतिक विश्लेषकों का एक दूसरा ग्रुप दावा कर रहा है कि इस बार कांग्रेस भाजपा सरकार को एक बड़ा झटका देने जा रही है। सट्टेबाज कभी भाव घटाते हैं तो कभी चढ़ा रहे हैं, कभी भाजपा की सरकार तो कभी कांग्रेस की सरकार बना रहे हैं। कहने का मतलब यह है कि इतनी कयासबाजियां पहले कभी नहीं लगी जितनी इस बार लग रही हैं और हमारा मानना है कि पूरे देश में लोकसभाई चुनावों का परिणाम जब 23 तारीख को निकलेगा तो विजेता तो 543 ही निकलेंगे लेकिन अगर दावों में कोई दम है तो आज की तारीख में कम से कम एक हजार विजेता अपने आप को लोकसभा में पहुंचा हुआ मान रहे हैं।
अलग-अलग मुद्दे हैं, अलग-अलग कहानी है लेकिन हकीकत यह है कि ट्वेंटी-20 मैच के आखिरी ओवर में क्या गेंदबाज विकेट उखाड़ देगा या बल्लेबाज छक्के उड़ा देगा तब तक हमें इस लोकतंत्र के परिणाम से पहले अनिश्चितता और अस्थिरता के पालने में झूलते ही रहना होगा। 23 तारीख को जब विजयश्री होगी तो भारतीय लोकतंत्र के नाम होगी लेकिन यह सच है कि कायदे-कानून और मर्यादाओं की जितनी धज्जियां राजनीति में उड़ाई गईं उससे सवाल पैदा होता है कि भारतीय लोकतंत्र की पवित्रता का किसी को ख्याल क्यों नहीं है? जो देश सारी दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर कहलाता हो उस भारत में जो लोग दुनिया छोड़कर चले गए उन लोगों की शहादत पर सवाल उठाए जा रहे हों और केवल राजनीतिक तराजू पर नफा-नुकसान ही तोला जा रहा हो तो उन लोगों को केवल देशभक्ति ही दिखाई देगी या फिर भूखे किसान ही दिखाई देंगे। यह बात हम नहीं सोशल मीडिया पर लोग एक-दूसरे से शेयर करके पूछ रहे हैं।
कितना काला धन विदेश से वापस आया। बैंकों से हजारों करोड़ के लोन लेकर फरार हुए कितने भगौड़े वापस आए उनसे मिलने वाला धन किस भारतीय के खाते में पहुंचाया गया, ये जुमले अगर हमें सुनने को मिल रहे हैं तो इन्हीं चुनावों में ऐसा हुआ जो लोकतंत्र की मर्यादा पर भी सवाल उठा रहा है और ये सब बातें देश का वह वोटर कर रहा है जो आज व्हाट्सएप और ट्वीटर से अपनी भावनाएं एक-दूसरे से शेयर कर रहा है। अकेले पश्चिम बंगाल में हिन्दुत्व चलेगा या बारास्ता यूपी या पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता का सामना करेगा इत्यादि सवालों को लेकर भी सोशल मीडिया पर लोग सक्रिय रहे। कहीं सांप पकड़ने की बात चली तो जवाब में भारत को माउस वाले देश की बात कह कर दिया गया।
सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि चुनाव सुधार व मुद्दों से 2019 का चुनाव दूर ही रहा। हालोंकि वोटिंग बढ़ाने के लिए इसे लोकतंत्र महापर्व का नाम दिया गया। एक बात बड़ी खास है कि पहली बार इन चुनावों में पर्सनल हमलों को लेकर जिस तरह से बड़े स्तर पर नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ परत-दर-परत उधेड़ी है वह पहले कभी नहीं हुआ और लोकतंत्र की पवित्रता को बनाए रखने की उम्मीद को लेकर हम यही कहेंगे कि भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए। सारा चुनाव प्रचार जमीनी हकीकत में भले ही रैलियों और रोड शो की शक्ल लेता रहा हो लेकिन सच यह है कि सब कुछ सोशल मीडिया पर निर्भर है और किस पर भरोसा करोगे? सोशल मीडिया पर अगर 5000 लोग एक्टिव हैं तो 2500 लोग मोदी लहर की बात करते हैं और 2500 लोग कांग्रेस की वापसी की बात करते हैं।
इतना ही नहीं बड़े-बड़े नेता और अभिनेता दावे कर रहे हैं कि 23 तारीख को देख लेंगे। वोटर भी उसी दिन देख लेगा, लोकतंत्र भी उसी दिन देख लेगा और हम भी देख लेंगे कि एक उंगली में कितनी ताकत है? इसी सोशल मीडिया पर बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार और किसान की लाचारी की बातें भी खूब हुई हैं और ऐसे में यह सवाल भी है कि इस बार 2014 की लहर चलेगी या फिर कांग्रेस की वापसी होगी। हम भी जवाब नहीं दे पा रहे। बस 23 तारीख को ही देख लेंगे कि क्या हुआ और क्या होगा और इसके बाद नई सरकार का रूप कैसा होगा और वह आगे कैसे चलेगी, यह रास्ता लोकतंत्र के मुसाफिर देखेंगे और मंजिल भी मिल पाएगी या नहीं, सब देखेंगे।