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मानसिक दबाव में जवान

अमृतसर में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के मुख्यालय में ड्यूटी से नाराज एक जवान ने मैस में अंधाधुंध फायरिंग कर अपने चार साथी जवानों की जान ले ली और बाद में खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इस दर्दनाक हादसे को अंजाम देने वाला कर्नाटक निवासी कांस्टेबल सत्तेप्पा अपने कुछ साथियों से भी नाराज बताया गया है। पंजाब सीमा पर जवानों से ली जाने वाली लंबी ड्यूटी को लेकर आवाजें पहले भी बुलंद हो चुकी हैं। अमृतसर से लोकसभा सांसद गुरजीत सिंह ओझला ने इस संबंध में गृह मंत्रालय को पत्र भी लिखा था और लोकसभा में भी यह मुद्दा उठाया ​था। उन्होंने सीमा पर जवानों की ड्यूटी को रिव्यू करने और इस विषय पर ध्यान देने की बात भी की थी। कांस्टेबल सत्तेप्पा अपनी ज्यादा ड्यूटी से इस कद्र परेशान था कि उसकी अपने एक अधिकारी से बहस भी हुई थी। यह घटना विचलित कर देने वाली है। अर्धसैन्य बलों में ऐसी घटनाएं होती रहीं हैं जिनके पीछे के कारण जो भी रहे हों लेकिन यह इस बात की ओर संकेत करते हैं कि बलों में ड्यूटी  लेकर परि​स्थितियां अच्छी नहीं हैं।

सुरक्षा बलों के ज्यादातर जवान बुरी तरह से अवसाद ग्रस्त और मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं इसलिए इनके भीतर कहीं न कहीं गहरा असंतोष पनप रहा है। कारण चाहे पारिवारिक हो, व्यक्तिगत हो या विभागीय साथी जवानों पर हमले करना उनकी हत्याएं करना और फिर आत्महत्या कर लेना नई घटना नहीं है। पहले भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों या फिर दुर्गम क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं होती रही हैं। बाद में यह पता चलता है कि हत्या का आरोपी जवान अवसाद से पीडि़त था। हमारी सेना और  अर्धसैन्य बलों में सैनिकों की आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। यह एक ऐसी स्थिति है जो 2 दशक पहले तक नहीं थी। देश के प्रबुद्ध वर्ग ने घातक विचारधाराओं के दुष्प्रभाव में देशभक्ति को उपक्षेणीय मान लिया है। अगर कोई सेना में या अर्धसैन्य बलों में जवान है तो उससे केवल देशभक्ति की अपेक्षा की जाती है। उनसे केवल शहादत की अपेक्षा की जाती है, भले ही उनकी ड्यूटी कितनी भी जोखिमपूर्ण क्यों न हो।

भारत-पाक सीमा पर गोलीबारी आतंकवादी गतिवि​धियों के कारण हमारे जवानों को अपनी जानें लगातार गंवानी पड़ रही हैं। इनमें सबसे अधिक जवान सीमा सुरक्षा बल के शहीद हुए हैं। अपने साथी जवानों की शहादत देखकर अन्य जवानों का विचलित होना स्वाभाविक है। ध्यान देता  आत्महत्या और  साथियों को निशाना बनाने के अलावा बड़ी संख्या में जवान नौकरी भी छोड़ रहे हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान हजारों जवानों ने अर्धसैन्य बलों से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण किया है। इसका मतलब साफ है कि  जवान अपनी नौकरी की सेवा शर्तों को लेकर बहुत संतुष्ट नहीं हैं। अक्सर यही दलील दी जाती है कि जवानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति का मूल कारण पारिवारिक तनाव है न कि नौकरी के दौरान उपजने वाला मानसिक दबाव लेकिन सच यह भी है कि नौकरी की कठिन सेवा शर्तें इसकी बड़ी वजह हैं। बीएसएफ हो या सीआरपीएफ या फिर कोई अन्य बल। जवानों को स्थायी रूप से नियुक्ति नहीं मिल पाती। उनका जीवन खानाबदोशों की तरह हो गया है। जवानों को उपद्रव ग्रस्त क्षेत्रों से लेकर दुर्गम क्षेत्रों में भेजा जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

सरकार को यह समझना होगा कि जवान भी समाज का हिस्सा हैं और  उन्हें भी मानवीय संवेदनाएं प्रभावित करती हैं। परिवार के साथ रहने की इच्छा किसे नहीं होती। उन्हें भी छुट्टियां चाहिए ताकि वह पारिवारिक एवं सामाजिक समारोहों में हिस्सा ले सकें। अगर काम करने की स्थितियां सहज होंगी तो उनमें असंतोष रहेगा। जवानों को समय पर छुट्टी न मिलना भी जवानों की आत्महत्या का एक कारण है। अगर उन्हें समय-समय पर छुट्टियां मिलती रहें तो वह अवसाद में जाने से बचेंगे। जवानों को हाड़ कंपा देने वाली कड़ाके की ठंड और  जून-जुलाई की तपती दोपहरी में ड्यूटी देनी पड़ती है। लंबी दूरी तक पैदल भी चलना पड़ता है। विषम परिस्थितियो  में कई बार बिना भोजन और पानी के कई-कई घंटे रहना पड़ता है। सीमा सुरक्षा बल ने जवानों द्वारा आत्महत्या करने के विभिन्न कारणों का विश्लेषण करने और इनमें कमी लाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार की थी। इसके साथ ही एक कल्याण अनुपात मूल्यांकन परीक्षण भी शुरू किया था जिससे ​​स्थिति में काफी सुधार देखा गया है।

जवानों में व्याप्त मानसिक तनाव दूर करने के लिए मेल-मिलाप के कई कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान हत्या और आत्महत्या की प्रवृत्ति में काफी कमी देखी गई है। सेना और अर्धसैन्य बलों में मनोवैज्ञानिक सलाहकारों की मदद ली जा रही है। पाठकों को याद होगा कि सीमा सुरक्षा बल के एक जवान ने खराब खाने को लेकर सोशल मीडिया का सहारा लिया था वहीं सीआरपीएफ के एक जवान ने एक वीडियो में अर्धसैनिक बल के जवानों को सेना के बराबर वेतन और अन्य सेवाएं देने की मांग की थी। अच्छी बात यह है कि अब जवानों को बेहतर कपड़े अच्छा भोजन, शादीशुदा जवानों को आवास और यात्रा जैसी कई सुविधाएं दी जा रही हैं। अधिकारियों को बलों में ऐसा वातावरण निर्मित करना होगा जिससे जवान आत्महत्या जैसे कदम न उठाएं और न ही अवसादग्रस्त होकर सा​थियो  की हत्याएं करें। सीमाओं की रक्षा करते वक्त शहादत दे देना गौरवपूर्ण होता है। जवानों के परिवार आंसू बहाकर और दर्द झेलकर भी शहादत पर गर्व करते हैं लेकिन जवानों का अपने ही साथी की गो​लियों से मारे जाना अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। उन परिवारों की पीड़ा का अनुमान लगाना कठिन है जिनके बच्चे ऐसे हादसों में मारे जाते हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा

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