युगदृष्टा नेहरू का नया भारत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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युगदृष्टा नेहरू का नया भारत

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आज भारत माता के उस महान सपूत पं. जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिवस है जिसने अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुए भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में इस देश को विकास और विचारों की ऊंचाइयों तक पहुंचाने के साथ ही समूचे भारत की एकता को इस तरह मजबूत किया कि इसमें रहने वाले हर सम्प्रदाय से लेकर समुदाय का आत्म सम्मान और गौरव भारतीयता में अपना अक्स देख सके। यह नेहरू का ही साहस था कि उन्होंने अंग्रेजों द्वारा लुटे–पिटे भारत के गरीब और मुफलिस व अनपढ़ कहे जाने वाले लोगों के लिए संसदीय प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली का चुनाव सबसे आगे बढ़-चढ़ कर किया था और इस देश पर राज करने वाले अंग्रेजों को चुनौती दी थी कि अपने दो सौ वर्ष के लगभग के शासन के दौरान इस देश के लोगों का स्वाभिमान व आर्थिक शक्ति व सामाजिक समरसता को छिन्न–भिन्न करने की उनकी सोची-समझी रणनीति से यह देश उन्हें ही अधिकार सम्पन्न बना कर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा प्राप्त करके दिखाएगा।

यही वजह थी कि मजहब के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हो जाने के बावजूद पं. नेहरू ने घोषणा की थी कि इस नव स्वतन्त्र देश के मन्दिर–मस्जिद, आधुनिक कल-कारखाने और औद्योगीकरण का विस्तार होगा व वैज्ञानिक विचारों से ओत–प्रोत नागरिक होंगे। अंग्रेजों की शिक्षा पद्धति से उबारते हुए भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में उन्होंने भारत में आधुनिक व वैज्ञानिक शिक्षा मन्दिरों की नींव इस प्रकार डाली कि गरीब व्यक्ति की मेधावी सन्तान भी उच्च शिक्षा प्राप्त करके समूचे समाज में नवचेतना का संचार कर सके। यही वजह है कि आज भी भारत के सरकारी इंजीनियरिंग व मैडिकल कालेजों में बहुत कम फीस पर विद्यार्थी पढ़ते हैं परन्तु इन शिक्षण संस्थानों (आईआईटी आदि) से निकले विद्यार्थियों का रुतबा विदेशों तक में खास माना जाता है। नेहरू ने भारत के हर उस अंग को मजबूत किया जिसे अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत में बहुत कमजोर कर डाला था। इसकी असली वजह यह थी कि पं. नेहरू मानते थे कि भारत कभी भी गरीब या कमजोर अथवा प्रतिभाहीन देश नहीं रहा।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि जब 1927 में साम्राज्यवाद के खिलाफ बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस का सम्मेलन हुआ तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें इसमें भाग लेने भेजा गया। वहां 10 फरवरी 1927 को नेहरू जी ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्यवादी शासन की जो तस्वीर रखी वह भारत के राजनीतिक इतिहास का एेसा प्रामाणिक दस्तावेज है जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए न केवल मजबूर किया बल्कि स्वयं को आततायी भी स्वीकार किया (आजादी के साठ वर्ष बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा 1919 में हुए जलियांवाला कांड के लिए माफी मांगना इसी तथ्य का प्रमाण है ) अतः दूरदृष्टा पं. नेहरू के व्यक्तित्व का आकलन जो लोग राजनीति की संकीर्ण चौसर के तहत अपनी मनपसन्द गोटियां बिछा कर करने की कोशिश करते हैं वे मूलतः भारतीय राष्ट्रवाद का ही विरोध करते हैं। पं. नेहरू ने अपने वक्तव्य में जो कहा उसे आज की युवा पीढ़ी को सुनना चाहिए और उसके बाद फैसला करना चाहिए कि पं. नेहरू की रगों में बहने वाले खून का हर कतरा किस कदर भारत के उत्थान के लिए बेचैन था। मैं इसे बहुत संक्षिप्त में लिख रहा हूं।

उन्होंने कहा ‘‘मैं आपको यहां भारत के शोषण का पूरा इतिहास नहीं बता सकता हूं कि इस देश के साथ किस प्रकार अन्यायपूर्ण व्यवहार किया गया और दबाया व कुचला गया और इसकी लूट की गई। मैं केवल एक या दो ही एेसे उदाहरण दूंगा जिन पर इस अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस में हमें विचार करना चाहिए। आपने अमृतसर (जलियांवाला कांड) के बारे में सुना होगा। इसके साथ अन्य हत्याकांडों व इधर–उधर होने वाले जुल्मों के बारे में सुना होगा मगर यह मत सोचिये कि अमृतसर कांड की वजह से एेसे अत्याचारों की गूंज हुई है। बेशक यह अंग्रेजों के भारत में आने के बाद का सबसे बर्बर और जघन्य कांड है। आप सभी जानते हैं कि भारत में अंग्रेजों ने एक राज्य से दूसरे राज्य को लड़ाकर अपनी सत्ता जमाई। अपने पूरे शासन के दौरान उन्होंने बांटो और राज करो की नीति का अनुसरण किया परन्तु अंग्रेजों का शुरू का शासन पूरी तरह आदिम तर्ज का रहा है जिसमें लूट–खसोट की खुली आजादी थी। इस तथ्य को वे ​ि​ब्रटिश इतिसकार भी स्वीकार करते हैं जिन्हें पूरी तरह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता। आपको शायद 1857 की उस घटना के बारे में भी पता होगा जिसे सिपाही विद्रोह का नाम दिया गया।

अगर इस लड़ाई में भाग्य हमारा साथ देता तो भारतीय इसे स्वतन्त्रता युद्ध के रूप में ही देखते। 1857 के युद्ध की तुलना में अमृतसर कांड का वजन कम है मगर इस प्रकार की घटनाओं का सिलसिला तभी से जारी है। आज भी एेसी घटना यहां–वहां हो रही हैं। भारत में बिना किसी अपराध के असंख्य लोगों को जेलों में डाला जा रहा है। इनमें से कुछ तो एेसे हैं जिनका घर ही जेल बन चुका है और कुछ विदेशों में चले गए हैं जहां से उनका वापस आना दूभर हो गया है मगर इन सनसनीखेज कत्लोगारत और फांसी पर लटकाने की कार्रवाइयों से भी ऊपर अंग्रेजों ने भारत का जो वास्तविक शोषण किया है वह बहुत ज्यादा गंभीर है और प्रणालीगत है जिसमें इसके कामगारों, मजदूरों और किसानों पर अत्याचारों की बौछार है जिसकी वजह से आज का भारत एेसा बना है। हम केवल प्राचीन इतिहास में ही नहीं पढ़ते हैं बल्कि ताजा इतिहास में ही भारत की धनाढ्यता और अमीरी के बारे में पढ़ते हैं। भारत की अमीरी से आकर्षित होकर ही दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से लोग यहां आए।

मगर जब हम आज का भारत देखते हैं तो इसका चेहरा भयंकर गरीबी से झुलसा हुआ है। अंग्रेजों ने हमारे उद्योग–धन्धों को तहस-नहस कर दिया, हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति को नष्ट कर दिया और हमारी सृजनात्मक क्षमता को मिटाने का प्रबंध किया और साथ ही हमें शस्त्रविहीन कर डाला और हममें फूट डालने की सोची–समझी रणनीति लागू की। हमें शस्त्रविहीन करने के बाद वे कहते हैं कि हम अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं।’’ अतः 1927 में ही भारत के विश्व धनी राष्ट्र बनने की संभावनाओं को देखने वाले युगदृष्टा नेहरू ने जब 1947 में भारत के प्रधानमन्त्री की बागडोर संभाली तो उनका संयम सीमित नहीं था इसीलिए उन्होंने भारत के आधारभूत ढांचे से लेकर वित्तीय संरचना की एेसी रूपरेखा तैयार की जिससे इस देश के गरीब आदमी का सीधे उत्थान हो सके और भारत के लोग धर्म और मजहब की तंग दीवारों को तोड़ कर सकल रूप से राष्ट्रीय विकास में योगदान दे सकें।

इस कार्य में उन्होंने सरकार की भूमिका को इस प्रकार सर्वोप​िर बनाया कि आजादी के कुछ साल बाद ही परमाणु ऊर्जा के विकास की आधारशिला भी रख डाली। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि भारत आज जिस वृक्ष की डाली पर लगे फलों को देख रहा है वह पं. नेहरू ने ही लगाया था परन्तु यह सारा काम उन्होंने लोकतन्त्र की उस मर्यादा के भीतर किया जिसे आम आदमी का शासन कहा जाता है। यह नेहरू का ही प्रभाव था कि उनकी एकमात्र पुत्री इन्दिरा गांधी ने बाद में उन्हीं की विरासत को आगे बढ़ा कर भारत को परमाणु शक्ति से लैस किया और एेलान किया कि मजहब के आधार पर बना पाकिस्तान एक नहीं रह सकता क्योंकि पं. नेहरू ने 1935 में ही कह दिया था कि एक ही संस्कृति को मानने वाले राज्य के दो टुकड़े लोगों का मजहब अलग होने की वजह से नहीं किए जा सकते।

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