चंडीगढ़ : हरियाणा में जननायक जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की तमाम संभावनाएं खत्म हो गई है। दिल्ली में जिस तरह यह गठबंधन पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कारण सिरे नहीं चढ़ सका। उसी तरह हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गठबंधन की राह में रोड़ा बने रहे। जिसके चलते जननायक जनता पार्टी ने आज अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी है और अब आम आदमी पार्टी भी अपनी सूची जारी करने की तैयारी में है।
आम आदमी पार्टी अंतिम समय तक इस प्रयास में रही की तीनों राजनीतिक दल एक मंच पर आ जाएं और भाजपा को सत्ता से बाहर किया जाए। इस महागठबंधन के प्रति जननायक जनता पार्टी भी साफ्ट रही लेकिन कांग्रेस अड़ियल रूख पर रही। जिसके चलते हरियाणा में महागठबंधन की बात सिरे नहीं चढ़ सकी। दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक की 18 सीटों पर महागठबंधन की मुहिम दिल्ली के मुख्यमंत्री व आप सुप्रीमो अरङ्क्षवद केजरीवाल ने शुरू की थी। केजरीवाल ने इस महागठबंधन की जिद के चलते कांग्रेस के साथ दिल्ली में भी समझौता नहीं किया।
उनका तर्क था कि अगर हरियाणा में आप, कांग्रेस और जेजेपी मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो राज्य की 10, दिल्ली की 7 और एक चंडीगढ़ की सीट पर फतेह हासिल की जा सकती है। दिल्ली से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सोनीपत सीट की वजह से महागठबंधन सिरे नहीं चढ़ा। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसी भी कीमत पर सोनीपत सीट जेजेपी को देने के लिए राजी नहीं हुये। वहीं जेजेपी दो अन्य सीटों के साथ सोनीपत भी चाहती थी। कांग्रेस हाईकमान भी महागठबंधन के पक्ष में तो था, लेकिन हुड्डा की दलीलों और विरोध के बाद सोनीपत छोडऩे को राजी नहीं हुआ।
बुधवार को पूरा दिन महागठबंधन को सिरे चढ़ाने की कोशिश चली। बृहस्पतिवार को भी इस संदर्भ में कांग्रेस, आप और जेजेपी नेताओं के बीच बातचीत हुई। जब बात बनती नजऱ नहीं आई तो आप और जेजेपी ने हरियाणा में अपने उम्मीदवार घोषित करने का फैसला लिया। सूत्रों के अनुसार अगर सोनीपत सीट जेजेपी के हिस्से में आती तो भविष्य में इसका सबसे अधिक राजनीतिक नुकसान हुड्डा को ही होता।
पिछले तीन दिनों से छिड़ी महागठबंधन की मुहिम ने हरियाणा में भाजपाइयों की स्थिति खराब की हुई थी।
भाजपा नेताओं को इस बात का अच्छे से अनुमान था कि तीनों दलों के मिलने के बाद राज्य में समीकरण पूरी तरह से बदल जाने थे। भाजपा के थिंक-टैंक महागठबंधन की स्थिति में अंदरखाने अपनी चुनावी रणनीति बदलने में भी जुट गये थे। माना जा रहा है कि बातचीत विफल होने के बाद भाजपाइयों ने राहत की सांस ली है।
(राजेश जैन)