बहादुरगढ़ : हार पर मंथन के लिए हुई भाजपा की मीटिंगों में जहां कार्यकर्ताओं ने अपनी ही पार्टी के संगठन और प्रशासनिक अधिकारियों को हार का जिम्मेवार ठहराया है वहीं बुद्धीजीवी जाट लैंड में बीजेपी की कार का मुख्य कारण लोकसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा की हार का दर्द बता रहे हैं। जाट लैंड में बीजेपी का पूरी तरह से सफाया हुआ है और बीस दिन के नेतृत्व के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा कांग्रेस को जीरों से तीस पर पहुंचा गए क्योंकि जाटों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा की हार का इतना ज्यादा दर्द था कि बीजेपी समर्थन जाटों ने भी जाट लैंड में कांग्रेस को वोट दे कर अपने गुस्से को बाहर निकाला।
हाट जाट लैंड सोनीपत, रोहतक व झज्जर की 14 सीटों में से भाजपा को केवल राई और गनौर की मिली जबकि अन्य 12 पर हुड्डा का ही जादू चला। जाटों में बीजेपी के विरोध का कोई एक ही कारण नहीं बल्कि कई अन्य कारण भी रहे हैं। जाट लैंड से बाहर भी जाटों का दर्द बीजेपी की हार और कांग्रेस के 31 पर पहुंचने का कारण बना जिस कारण चारों प्रमुख जाट विधायकों अभिमन्यु, ओमप्रकाश धनखड, प्रेम लता और बीजेपी अध्यक्ष सुभाष बराला को हार का मुंह देखना पडा। हरियाणा जाट बाहुल प्रदेश है और प्रदेश का जाट यहां अपनी चौधर मानता है।
जाटों ने तो यहां तक कहना शुरु कर दिया था कि अगर हरियाणा में जाट विधायक मंत्री और मुख्यमंत्री नहीं बनेगा तो क्या बंगाल बिहार में जाट विधायक व मुख्यमंत्री बनेगा। बीजेपी नेताओं का अंहकार भी उन्हेेें लेकर बैठ गया क्योंकि बीजेपी के मंत्री से लेकर संतरी और विधायकों तक इनता ज्यादा अहंकार और घमंड हो गया था जैसे सत्ता की रजिस्ट्री उनके नाम हो गई हो। चुनाव के दौरान हरियाणा में थोक में वाहनों के चालान काटे गए,बच्चों के दूर- दूर कर दिए गए, टिकट वितरण में भी ठीक से मंथन नहीं किया गया।
जाटलैंड चौधर और अकड निकालने में तो पहले से ही माहिर है। जाट लैंड में हमेशा चौधर ही मुख्य मुद्दा होता है मगर बीजेपी के बार बार 75 पार का नारा भी बीजेपी को लेकर बैठ गया। मतदाताअें के मन में संदेह पैदा हो गया कि बीजेपी में बिना चुनाव जीते ही इस तरह का धमंड जिसे तोडा नहीं गया तो उनका अंहकार ओर ज्यादा बढेगा जिस कारण खासकर जाट युवा बीजेपी के विरोध में उतर गया जबकि बुजुर्ग जाट वोटर तो पहले भी देवीलाल और हुड्डा परिवार से बाहर नहीं निकलता।
बीजेपी ने प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ भी हार के मंथन में खूब गुस्सा निकाला जबकि किसी अधिकारी ने भी चुनाव में किसी का पक्षपात नहीं किया और किया है तो वह नीचे ही नीचे किया है जिसका ज्यादा असर नहीं पडता। अब तो लोग भीरतधात करने वालों को भी ज्यादा महत्व नहीं देते और वोट अपनी अंतरात्मा की आवाज पर देते हैं। फिर बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता अपनी हार पर प्रशासनिक अधिकारियों पर ही गुस्सा निकाल रहे हैं जबकि वे इस बात पर भी मंथन करें कि पार्टी में दूसरे दलों से आएं नेताओं ने टिकट न लिने पर कितने उम्मीदवारों का सहयोग किया।
जिस प्रांत में हर साल हजारों पढेलिखे बेरोजगार युवको की कंपनी खड़ी हो जाती हो उस प्रदेश में बीजेपी केवल 18 हजार नौकरी देकर अपनी पीठ थपथपाने पर राजी हो रही है जबकि उन पदों पर कोई इंजीनियर तो कोई एमबीए व बीएसई और एमएसई तक के बच्चे नौकरी लगे जो बेरोजगारी के अभाव में ही उन पदों पर काम कर रहे हैं। इस बार बीजेपी ने जाटों की नाराजगी को देखते हुए ही जेजेपी से समझौता कर डिपटी सीएम का पद दिया है मगर क्या जाट बीजेपी से खुश हो गया है यह तो सरकार के चलने और गठबंधन के उपर निर्भर करता है।