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केंद्र का SC से अनुरोध, राज्यों को SEBC निर्धारण के अधिकार से वंचित करने संबंधी फैसले पर हो पुनर्विचार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों के पास नौकरियों तथा दाखिलों में आरक्षण प्रदान करने के लिए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की घोषणा करने का अधिकार नहीं है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह पांच मई के बहुमत से लिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों के पास नौकरियों तथा दाखिलों में आरक्षण प्रदान करने के लिए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने का अधिकार नहीं है।
मामले में केंद्र ने उल्लेख किया है कि संशोधन ने एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने संबंधी राज्यों की शक्तियां नहीं छीनी हैं और शामिल किए गए दो प्रावधानों ने संघीय ढांचे का उल्लंघन नहीं किया है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठाओं को दिए गए आरक्षण को खारिज कर दिया था और आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित रखने के 1992 के मंडल संबंधी निर्णय को वृहद पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था। 
पीठ ने 3:2 के बहुमत से किए गए अपने निर्णय में व्यवस्था दी थी कि 102वां संविधान संशोधन, जिसके चलते राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की स्थापना हुई, केंद्र को एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने की विशेष शक्ति देता है क्योंकि केवल राष्ट्रपति ही सूची को अधिसूचित कर सकते हैं। 
वर्ष 2018 में किए गए 102वें संविधान संशोधन में दो अनुच्छेद लाए गए थे जिनमें 338 बी एनसीबीसी के ढांचे, दायित्व और शक्तियों से संबंधित है तथा अनुच्छेद 342 ए किसी खास जाति को एसईबीसी के रूप में अधिसूचित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से संबंधित है। 
केंद्र ने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए गुरुवार को याचिका दायर की जिसमें मामले में ओपन कोर्ट में सुनवाई करने और संशोधन के सीमित पहलू पर बहुमत से लिए गए निर्णय को याचिका पर फैसला होने तक स्थगित रखने का आग्रह किया गया है।

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