सुप्रीम कोर्ट आज ने कर्नाटक के कांग्रेस-जद(एस) के 15 बागी विधायकों की उनका इस्तीफा स्वीकार किए जाने की मांग करने वाली अर्जी पर सुनवाई की है। सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी से इस्तीफे की तारीख पूछी। इसका जवाब देते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा, “10 जुलाई को सभी दस विधायकों ने इस्तीफा दिया है। अध्यक्ष यदि चाहें तो फैसला ले सकते हैं, क्योंकि इस्तीफे को स्वीकार और अयोग्यता दो अलग-अलग फैसले हैं।”
मुकुल ने कहा कि अगर व्यक्ति विधायक नहीं रहना चाहता है, तो कोई उनके साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता है। विधायकों ने इस्तीफा देने का फैसला किया और वापस जनता के बीच जाने की ठानी है। अयोग्य करार दिया जाना इस इच्छा के खिलाफ होगा।
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बागी विधायकों का प्रतिनिधित्व करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा, “यह उनके इस्तीफे की जांच करने का प्रयास है। अध्यक्ष एक ही समय में इस्तीफे और अयोग्यता दोनों मुद्दों पर निर्णय लेने की कोशिश कर रहे हैं।” कांग्रेस और जेडीएस के नेता 15 विधायकों को खुले तौर पर धमकी दे रहे हैं कि सरकार के पक्ष में वोट करो या फिर अयोग्यता का सामना करो।
इसपर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने रोहतगी से कहा, ‘यह बताएं कि विधायकों को किन परिस्थितियों और कारणों से दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराया जा सकता है।’ रोहतगी ने कहा, ‘एक बार इस्तीफा देने के बाद उसका निर्णय योग्यता के आधार पर लिया जाना चाहिए। स्पीकर को इस्तीफा स्वीकर कर लेना चाहिए क्योंकि इससे निपटने का कोई और तरीका नहीं है।
इसपर चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि अगर हम आपकी बात मानें, तो क्या हम स्पीकर को कोई ऑर्डर दे सकते हैं? आप ही बताएं कि ऐसे में क्या हम ऑर्डर दे सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार को कांग्रेस और जद (एस) के बागी विधायकों के इस्तीफे और उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिये दायर याचिका पर 16 जुलाई तक कोई भी निर्णय लेने से रोक दिया था।
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इन दस बागी विधायकों में प्रताप गौडा पाटिल, रमेश जारकिहोली, बी बसवाराज, बी सी पाटिल, एस टी सोमशेखर, ए शिवराम हब्बर, महेश कुमाथल्ली, के गोपालैया, ए एच विश्वनाथ और नारायण गौडा शामिल हैं। इन विधायकों के इस्तीफे की वजह से कर्नाटक में एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के सामने विधानसभा में बहुमत गंवाने का संकट पैदा हो गया था।
इस्तीफा देने वाले विधायकों की संख्या कम करने के बाद सरकार की अस्थिरता का उल्लेख करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘‘इस कोर्ट के समक्ष याचिका दायर करने वाले विधायकों की संख्या कम कर दी जाए तो सरकार गिर जाना तय है। इसलिए अध्यक्ष जान-बूझकर इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रहे हैं।’’
मुख्य न्यायाधीश ने रोहतगी से पूछा कि अयोज्ञ ठहराये जाने की प्रक्रिया का आधार क्या है? इस पर पूर्व एटर्नी जनरल ने कहा, ‘‘क्योंकि याचिकाकर्ता पार्टी के साथ तालमेल करके नहीं चल रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस्तीफे के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन जब यह स्वेच्छा से दिया जाये तो अध्यक्ष इसे लंबित नहीं रख सकते।
विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि अयोज्ञ ठहराये जाने की कार्रवाई पहले ही शुरू हो चुकी है और अध्यक्ष पहले उस पर निर्णय करेंगे। उन्होंने दलील दी कि इस्तीफा देकर अयोज्ञता की कार्रवाई से बचा नहीं जा सकता।
इस पर न्यायमूर्ति गोगोई ने सिंघवी से पूछा कि यदि विधायकों ने इस्तीफा स्वेच्छा से दिया है और वे 11 जुलाई को अध्यक्ष के समक्ष पेश भी हुए, ऐसी स्थिति में अब इस्तीफा स्वीकार करने से अध्यक्ष को कौन रोक रहा है। इसके बाद सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह अपने 12 जुलाई के आदेश में सुधार करे, ताकि अध्यक्ष कल तक इस्तीफे और अयोज्ञता प्रक्रिया पर निर्णय ले सकें। उन्होंने कोर्ट से यह भी अनुरोध किया कि वह अध्यक्ष को कोई विशेष दिशानिर्देश वाला आदेश जारी करने से परहेज करे।
कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष के आर रमेश कुमार ने कोर्ट से कहा कि बागी विधायकों की अयोग्यता और उनके त्याग पत्र के मामले में वह बुधवार तक निर्णय ले लेंगे। साथ ही अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में यथास्थिति बनाये रखने के पहले के आदेश में उचित सुधार करने का अनुरोध किया।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ के समक्ष अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोई यह नहीं कह सकता कि अध्यक्ष से गलती नहीं होती लेकिन उन्हें समय सीमा के भीतर मामले का फैसला लेने के लिए नहीं कहा जा सकता।
सिंघवी ने पीठ से सवाल किया, ‘‘अध्यक्ष को यह निर्देश कैसे दिया जा सकता है कि मामले पर एक विशेष तरह से फैलसा लिया जाए? इस तरह का आदेश तो निचली अदालत में भी पारित नहीं किया जाता है।’’ उन्होंने कहा कि वैध त्यागपत्र व्यक्तिगत रूप से अध्यक्ष को सौंपना होता है और ये विधायक अध्यक्ष के कार्यालय में इस्तीफे देने के पांच दिन बाद 11 जुलाई को उनके समक्ष पेश हुए।