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उत्तर प्रदेश में वोटों के हस्तांतरण का टूटा ‘भ्रम’ !

सपा और बसपा दोनों ने दावा किया है कि गठबंधन से उन्हें सहयोगी पार्टी के वोटों का फायदा नहीं मिला है। इस मामले में बसपा ज्यादा मुखर है और उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि बसपा को यादवों का वोट नहीं मिला।

उत्तर प्रदेश ने हस्तांतरणीय वोट के भ्रम को तोड़ दिया है, जिसके बाद समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन के बीच दरार आ गई है। सपा और बसपा, दोनों ने दावा किया है कि गठबंधन से उन्हें सहयोगी पार्टी के वोटों का फायदा नहीं मिला है। इस मामले में बसपा ज्यादा मुखर है और उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि बसपा को यादवों का वोट नहीं मिला।
 
वहीं समाजवादी पार्टी के लोग दबी जुबान कह रहे हैं कि उनके उम्मीदवार को बसपा का एक भी वोट नहीं मिला, जिस कारण यादव परिवार के तीन सांसद (डिंपल यादव, धर्मेद्र यादव और अक्षय यादव) को हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले 90 के दशक के प्रारंभ में वोटों के स्थानांतरण की गिनती होती थी, जो बसपा की मुख्य विशेषता थी और पार्टियां इससे गठबंधन करने के लिए कोशिश करती थीं। 
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कांग्रेस ने साल 1996 में बसपा को 300 सीटें दीं और अपने पास सिर्फ 124 सीटें रखीं। तब उत्तराखंड के गठन से पहले उत्तर प्रदेश में 425 सीटें होती थीं। चुनाव में जहां बसपा को 67 सीटों पर जीत मिली, वहीं कांग्रेस सिर्फ 33 सीटों पर जीत हासिल कर पाई। कुछ महीनों बाद यह गठबंधन खत्म हो गया, जब बसपा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर सरकार बना ली। 
यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा, “साल 1996 में भी, बसपा कांग्रेस को वोट स्थानांतरित नहीं करा सकी थी, लेकिन मीडिया ने यह भ्रम कायम रखा और सबने आराम से उस पर विश्वास कर लिया।” 
एक समाजशास्त्री रति सिन्हा ने कहा, “वोट सिर्फ तभी हस्तांतरित होते हैं, जब मतदाता किसी नेता से भावुक होकर जुड़े हों। यादव लोग मुलायम सिंह यादव के साथ भावुकता से जुड़े हैं और मुश्किल समय में भी उनके साथ खड़े होंगे। इसी प्रकार बसपा का मतदाता कांशीराम के लिए अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहते थे, क्योंकि उनका उनसे भावनात्मक जुड़ाव था। यह बात मायावती के साथ नहीं है।” 
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बसपा नेता ने भी स्वीकार किया है कि मायावती पीढ़ीगत बदलाव को समझने में असफल रही हैं। बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पुरानी पीढ़ी ने कांशीराम का सम्मान किया और उनके प्रत्येक राजनीतिक निर्णय का सम्मान किया। अब हमारे पास नई पीढ़ी के दलित हैं, जो सवाल करते हैं, वे सिर्फ श्रद्धालु नहीं हैं। वे सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और बिना तर्क के निर्णय नहीं मानते। इस बदलाव ने वोटों का हस्तांतरण नहीं होने दिया।” 
सपा की स्थिति भी समान है। मुलायम सिंह को पार्टी नेतृत्व से हटाए जाने और शिवपाल सिंह यादव को पार्टी से निकाले जाने के बाद, यादव समुदाय के एक बड़े वर्ग ने अखिलेश यादव पर बड़ों का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाया। 
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “सपा के मामले में, वरिष्ठ सपा नेताओं ने बसपा का समर्थन नहीं किया, क्योंकि उन्हें यह गठबंधन सामाजिक रूप से असंगत लगा। वे यह भी जानते थे कि मुलायम सिंह इस गठबंधन के खिलाफ हैं। इसलिए, मायावती यह सही कहती हैं कि यादवों का वोट भाजपा को मिला, न कि बसपा को।” 

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