लोकसभा और विधानसभाओं में अन्य पिछड़ वर्ग के समुदाय के सदस्यों के प्रतिनिधित्व को बेहद कम बताते हुए इस वर्ग के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तर्ज पर चुनावों में सीट आरक्षित करने की मांग आज राज्यसभा में की गयी।
वाई एस आर कांग्रेस के श्री विजयसाई रेड्डी ने शुक्रवार को सदन में निजि विधेयक, संविधान (संशोधन) विधेयक, 2018 (नये अनुच्छेद 330 क और 332 क शामिल करना) पेश करते हुए कहा कि अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) समुदाय की देश की आबादी में आधे से अधिक की हिस्सेदारी है लेकिन उसका संसद और विधानसभाओं में इस अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं है।
ओबीसी समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि उसे अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय की तर्ज पर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों में आरक्षण दिया जाता है तो उसे अगड़ जातियों के समकक्ष आने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ वर्ग के कल्याण के लिए समय-समय पर गठित विभिन्न आयोगों और समितियों की अनेक सिफारिशों को सरकारों ने स्वीकार नहीं किया है जिससे इस समुदाय के साथ सामाजिक न्याय नहीं हो सका है।
श्री रेड्डी ने कहा कि वर्ष 2021 की जनगणना में ओबीसी समुदाय के संबंध में विशेष प्रश्नावली के जरिये आंकड़ जुटाये जाने चाहिए जिससे कि उनके लिए कल्याणकारी योजना बनायी जा सके। अल्पसंख्यक मंत्रालय की तरह अलग से मंत्रालय के गठन की मांग करते हुए उन्होंने इस समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव तथा अत्याचार के मामलों पर रोक लगाने के लिए विशेष कानून की भी वकालत की।
श्री रेड्डी ने कहा कि 1984 में लोकसभा में ओबीसी समुदाय के सदस्यों का 1984 में 11 और 2009 में 18 प्रतिशत प्रतिनिधित्व था जो मौजूदा लोकसभा में भी 20 प्रतिशत को पार नहीं कर पाया। यह देश भर में ओबीसी की 2200 जातियों की आबादी के अनुपात में कुछ नहीं है।
कांग्रेस के बी के हरिप्रसाद ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि ओबीसी समुदाय शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़ है और उसे अब तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि यह धारणा गलत है कि आरक्षण से देश का विकास प्रभावित होता है। कुछ दक्षिणी राज्यों में नौकरियों में सीमा से अधिक आरक्षण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ये राज्य देश के उत्तरी राज्यों से आगे हैं और तरक्की कर रहे हैं। इस मामले में उन्होंने तमिलनाडु का उदाहरण दिया।