रायपुर : छत्तीसगढ़ के चुनावी मिशन में रमन सरकार ने आंदोलनरत सरकारी महकमें को साधने बड़ा दांव खेला है। शिक्षा कर्मियों के संविलियन के फैसले पर मुहर लगाकर बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कोशिशें की है। हालांकि इससे सत्ताधारी दल को कितना चुनावी फायदा होगा इस पर कई तरह की चर्चाएं हैं। इसके बावजूद प्रदेश में संविलियन के निर्णय से करीब डेढ़ दशक से आंदोलन कर रहे शिक्षा कर्मी लाभान्वित होंगे।
राज्य सरकार की ओर से गठित कमेटी ने भले ही संविलियन की सिफारिश कर इसमें कई क्लाज भी लगा दिए हैं। वहीं सौ फीसदी कर्मचारियों को फायदा नहीं मिल पाएगा। इसके बावजूद बड़ी तादाद में कर्मचारी कवर हो जाएंगे। आंगनबाड़ी और मितानीनों के बाद शिक्षा कर्मियों पर डोरे डालते हुए सरकार ने कवायदें की है। हालांकि अभी भी सरकार महकमें में लंबित मांगों को लेकर विरोध का रोड़ा हटा नहीं है।
अब राज्य कर्मचारी भी घोषणा पत्र के वादों को लेकर दबाव बना रहे हैं। चार स्तरीय वेतनमान समेत अर्हताधारी सेवा की अवधि घटाने को लेकर दबाव बढ़ा है। इधर प्रदेश में शिक्षा कर्मियों की बड़ी तादाद होने से ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले असर को लेकर चर्चाएं हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी तादाद में शिक्षा कर्मियों की भर्ती हुई थी। शिक्षा कर्मियों को पंचायत विभाग से अब शिक्षा विभाग का कर्मचारी माना जाएगा।
सूत्र दावा करते हैं कि ग्रामीण इलाकों में स्थानीय स्तर पर सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधियों ने भी शिक्षा कर्मियों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। वहीं सरकार के फैसले का हवाला देकर एक बार फिर समर्थन की गुहार लगानी भी शुरू हो गई है। फौरी तौर पर शिक्षा कर्मी संगठन भी स्वागत जरूर कर रहे हैं। इसके बावजूद चुनाव के दौरान बहने वाली हवा तसवीर साफ होने के बाद शिक्षा कर्मियों के रूख पर चुनावी समीकरण भी काफी हद तक निर्भर करेगा।
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