सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी उच्च न्यायालयों को चाहिए कि वे निचली अदालतों के नजरिए से सहमत नहीं होने की स्थिति में उनके आदेशों और उनके द्वारा सीमाओं को पार करते हुए दिए गए फैसलों पर कोई तीखी टिप्पणी न करें।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की एक पीठ न्यायिक अधिकारी द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रहा था, जिसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न केवल तीखी टिप्पणी की थी, बल्कि 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
निचली अदालत के न्यायाधीश ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद शीर्ष अदालत का रुख किया।
निचली अदालत के न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह प्रासंगिक समय में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का पद संभाल रहे थे।
दावा याचिका उनके द्वारा दो काउंसल डी.के. सक्सेना और आर.एम. सिंह द्वारा दायर की गई थी। बाद में दावेदार और बीमा कंपनी के बीच मामला सुलझ गया था, लेकिन फीस के भुगतान से संबंधित विवाद हुआ।
उन्होंने सिंह के पक्ष में एक आदेश पारित किया।
यह कहते हुए कि यह आम तौर पर बार काउंसिल है और अदालत नहीं, जो दो वकीलों के बीच विवाद का निपटारा करेगी।
उच्च न्यायालय ने मामले को लेकर निचली अदालत के न्यायाधीश के खिलाफ कुछ टिप्पणियां कीं, उनकी ईमानदारी पर आशंका जताई और उन पर एक वकील को लेकर पक्षपात करने का आरोप भी लगाया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी उच्च न्यायालयों को चाहिए कि वे निचली अदालतों के नजरिए से सहमत नहीं होने की स्थिति में उनके आदेशों और उनके द्वारा दिए फैसलों पर कोई तीखी टिप्पणी न करें।