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बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होलिका दहन

आराध्य विष्णु का नाम जपते हुए आग से बाहर आ गए। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं।

होलिका दहन का बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। होली में जितना महत्व रंगों का है उतना ही होलिका दहन का भी है क्योंकि इस दिन किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर खाक किया जा सकता है। होलिका दहन, रंगों वाली होली के एक दिन पहले यानी फाल्गुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी नामों से भी जाना जाता है।

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होलिका की पवित्र आग में लोग जौ की बालें और शरीर पर लगाया हुआ उबटन डालते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में खुशहाली आती है और बुरी नजर का प्रभाव दूर होता है। शास्त्रों के अनुसार होली उत्सव मनाने से एक दिन पहले आग जलाते हैं और पूजा करते हैं। इस अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन का एक और महत्व है, माना जाता है कि भुना हुआ धान्य या अनाज से हवन किया जाता है, फिर इसकी राख को लोग अपने माथे पर लगाते हैं ताकि उन पर कोई बुरा साया ना पड़। इस राख को भूमि हरि के रूप से भी जाना जाता है।

होलिका दहन की तैयारी त्योहार से काफी पहले शुरू हो जाती हैं, जिसमें लोग सूखी टहनियां, सूखे पत्ते इकट्ठा करते हैं और फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और रक्षोगण के मंत्रो का उच्चारण किया जाता है। होलिका दहन से जुड़ अलग-अलग परंपरा है। कहीं-कहीं होलिका की आग घर ले जाई जाती है। होलिका दहन को लेकर एक कथा प्रचलित है।

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विष्णु पुराण के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। हिरण्यकश्यप अपने बेटे से बहुत घृणा करता था।

उसने प्रह्लाद पर हजारों हमले करवाये फिर भी प्रह्लाद सकुशल रहा। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को भेजा। होलिका को वरदान था कि वह आग से नहीं जलेगी।

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हिरण्यकश्यप ने होलिका को बोला कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए और उसने ऐसा ही किया। लेकिन, हुआ इसका उल्टा। होलिका प्रह्लाद को लेकर जैसे ही आग में गई वह जल गई और प्रह्लाद बच गए। प्रह्लाद अपने आराध्य विष्णु का नाम जपते हुए आग से बाहर आ गए। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं। बाद में भगवान विष्णु ने लोगों को अत्याचार से निजात दिलाने के लिए नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया।

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