आज पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। सबसे पहले महिला दिवस 1908 को मनाया गया था इस हिसाब से आज के दिन 109 वां महिला दिवस मनाया जा रहा है। यानी विश्व में 109 सालों से महिलाओं के अधिकारों को लेकर आवाज उठाई जा रही हैं और आज भी यह सिलसिला कायम है और हो भी क्यों ना वैसे तो महिलाएं सहनशीलता का पर्याय मानी जाती हैं। उनका दिल बहुत बड़ा होता है। वह अपनी जिम्मेदारियों को ढंग से समझती हैं साथ ही कभी किसी भी काम से पीछे नहीं भागतीं हैं। यदि बात शहीदों की पत्नियों या माओं की करें तो उनके आंसुओं में भी एक संदेश होता है कि कुर्बानी देश के लिए दी।
महिला दिवस के मौके पर बात की शहीद के परिवार वालो से…
बता दें कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शहीद फैमिली की महिलाओं से बात करते हुए उन्होंने बताया कि शहीद युगल किशोर वर्मा की पत्नी भारतीय एसआई बन गई हैं। उन्होंने इसके लिए ट्रेनिंग ली और घर की जिम्मेदारी भी उठाई। शहीद युगल किशोर वर्मा की पत्नी माधुरी का कहना है कि मेरे पति ने जो जिम्मेदारी मेरे लिए छोड़ी है मैं उसे बखूबी निभाने के लिए तैयार हूं। वहीं इस दौरान शहीद मेजर गोरे की पत्नी शकुंतला और शहीद सत्यप्रदीप दत्ता की मां ने भी अपने विचारो को सबके बीच साझा किया है।
जिंदगी में छा गया अंधेरा
6 अगस्त 2017 को वीर शहीद उपनिरीक्षक युगल किशोर वर्मा गातापार थाना के घोड़ा पाट के जंगल में माओवादी मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। वह टीम लीडर बनकर गए थे। उनका एक छोटा बेटा है जो 2एंड क्लास में पढ़ाई कर रहा है। उनकी पत्नी माधुरी के लिए यह ऐसी घटना थी कि मानों जैसे उनकी जिंदगी में कुछ बचा ही ना हो। वे कहती हैं कि मैं बिल्कुल टूट चुकी थी। जिंदगी में अघेाषित अंधेरा छा गया था। वे देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा चुके थे। माधुरी अब एसपी ऑफिस में एसआई के पद पर काम करती हैं।
माधुरी ने आगे बताया कि ससुराल वालों ने पूरा साथ दिया लेकिन जो चीज गई उसका तो कोई विकल्प नहीं था। परिवार वालों ने मुझे सहारा दिया और मुझे पुलिस की टे्रनिंग भी दिलाई। शुरू के दिनों में मुझे काफी ज्यादा परेशानी हुई क्योंकि जब भी हताश या निराश होती तो उन्हीं का चेहरा याद आता था। ऐसा लगता था कि वो मुझसे कह रहें हैं कि माधुरी बच्चे को देखना है। मेरे परिवार की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है। मुझे उनसे ताकत मिलती है। मैंने हिंदी साहित्य में एमए और बीएड किया है। ससुर नौकरी से रिटायर हो गए हैं जब मैं जॉब पर होती हूं तो वह पोते आदित्य को संभाल लेते हैं। मेरी सास को भी आदित्य में अपना बेटा दिखाई देता है।
बस यही बात सोच कर अच्छा लगता है कि बेटा देश काम आया
शंकर नगर में रहने वाले 75 साल की भारती दत्ता के बेटे सत्यप्रदीप दत्ता सन 1994 में सोमालिया में शहीद हुए थे। वे आर्मी के डॉक्टर थे। ग्रेनेड हमले के शिकार हुए। भारती दत्ता का कहना है कि हमने लास्ट बार भी अपने बेटे का चेहरा नहीं देखा था। क्योंकि हमें काफी देर से सूचना मिली थी। कहीं किसी सम्मान में बुला लिया जाता है या कभी किसी मीडिया पूछ लेती है लेकिन राज्य या केंद्र से हमें किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिली। बहू को पेंशन मिल रही है बस। बस किसी बात की तसल्ली है तो सिर्फ यहीकि बेटा देश के काम आया है।
युवा सबसे पहले सोचे देश के लिए
सन 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्घ के दौरान अपनी जान देने वाले शहीद मेजर गोरे की पतनी शकुंलता गोरे ने बताया कि आज पाकिस्तान की कायराना हरकत देखती हूं तो वह हदसा याद आ जाता है जब उन्होंने पाक सैनिकों को जम्मू-कश्मीर से 15 किमी दूर खदेड़ दिया था। मुझे ही नहीं बल्कि पूरे देश को उनके अदम्य साहस पर नाज है। मैं यही कहना चाहती हूं कि जीते जी उन्होंने देश के प्रति अपना कव्र्तय निभाया लेकिन आज की पीढ़ी को भी ये जिम्मेदारी निभानी चाहिए।