कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है। पाकिस्तान की सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की।
पाकिस्तान ने दावा किया कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी। लगभग 30,000 भारतीय सैनिक और करीब 5,000 घुसपैठिए इस युद्ध में शामिल थे।
भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। यह युद्ध ऊँचाई वाले इलाके पर हुआ और दोनों देशों की सेनाओं को लड़ने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था।
तो चलिए जानते है भारतीयों सैनिकों की वीर कथा !
कारगिल युद्ध में राष्ष्ट्रपति द्वारा वीर चक्र से सम्मानित 13 जम्मू और कश्मीर राईफल्स के नायब सूबेदार(तत्कालीन राईफलमैन) मेहर सिंह ने बताया कि प्वाइंट 5140 पर कब्जा करते समय गुत्थम-गुत्था की लड़ाई में भी पाकिस्तानी आर्मी के छह सैनिकों को मार गिराया गया था।
नायब सूबेदार(तत्कालीन राईफलमैन) मेहर सिंह ने बुधवार को यहां कारगिल युद्ध जिसे ‘आपरेशन विजय’ के नाम से भी जाना जाता है के अपने अनुभवों को सांझा करते हुये बताया कि 1999 में उनकी यूनिट सोपोर (कश्मीर घाटी)में कार्यरत थी।
अचानक कारगिल में हालात खराब होने के कारण ब्रिगेड कंमाडर ने यूनिट को ऑपरेशन विजय में भाग लेने का हुक्म दिया। इस ऑपरेशन के लिए वे छह जून 1999 को सोपोर से सुबह चलना आरम्भ किया और शाम को गुमरी नामक जगह पर पहुच गये।
उन्होंने बताया कि यहाँ पर बहुत ही कम समय में हमारी यूनिट ने अक्लाईमैटाईजेशन किया और 12 जून 1999 को कमांडिग आफिसर का सैनिक सम्मेलन हुआ। उसमें कहा गया कि हमारी यूनिट को तोलोलिंग के आगे हम्प नम्बर आठ, नौ, दस और रॉकी नॉब तथा प्वाइंट 5140 के उपर कब्जा करना है।
12 जून 1999 को हमारी यूनिट ने वहाँ से चलना शुरु किया और शाम को को ही बटालियन टैक हैडक्वाटर (द्रास)में पहुँच गई। यहाँ पर हमारे कैंम्प के ऊपर पाकिस्तान की आर्मी का भारी आर्टी फायर आना शुरू हो गया जहाँ जवानों ने पत्थरों की आड़ लेते हुये पूरी रात काटी।
नायब सूबेदार ने बताया कि हमने 13 जून 1999 को सुबह सूर्य उदय होने से पहले तोलोलिंग पहाड़ की ओर चलना आरम्भ कर दिया। रास्ते में पाकिस्तान की आर्मी का भारी आर्टी फायर व समाल आर्मस फायर आने लगा लेकिन हम दृण निश्चय के साथ आगे बढ़ रहे। हम उसी शाम को तोलोलिंग पहाड़ के उपर पहुँच गये।
उन्होंने बताया कि यहाँ कम्पनी और ब कम्पनी को हम्प नम्बर आठ, नौ, दस तथा रॉकी नॅब के उपर कब्जा करने का टास्क मिला था। जब कम्पनी और ब कम्पनी ने अपना टास्क पूरा कर दिया तो हमारे कंमाडिग आफिसर लेफिटनेंट कर्नल योगेश कुमार जोशी ने हमारे कम्पनी कंमाडर कैप्टन विक्रम बत्रा को बताया कि आपकी कंपनी प्वाइंट 5140 पर कब्जा करेगी।
वीर चक्र से सम्मानित मेहर सिंह ने बताया कि हमारे कम्पनी कंमाडर कैप्टन विक्रम बत्रा ने पूरी कम्पनी को संगड़ के बीच इकटठा किया और कहा कि ’’डेल्टा कम्पनी के बहादुर जवानों आज यह मौका आ गया है जिसका हमें इंतजार था। अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिये हमें खून भी बहाना पड़ तो भी हमारी डेल्टा कम्पनी प्वाइंट 5140 के उपर कब्जा करेगी।’’
19 जून 1999 सुबह चार बजे हमने तोलोलिंग पहाड़ से चढ़ना शुरू किया और तकरीबन सुबह सात बजे हम्प नम्बर आठ के उपर पहुंच गये। यहाँ पर ब कम्पनी पहले से ही कब्जा करके बैठी थी। इसमें 11 प्लाटून, लीडिंग प्लाटून का काम कर रही थी और इसकी नम्बर एक सेक्शन लिडिंग सेक्शन का काम कर रहा था।
नायब सूबेदार ने बताया कि इसकी लीडिंग सेक्शन का नम्वर एक स्काउट का काम मैं कर रहा था। हमने हम्प नम्बर आठ पर पूरा दिन निकाला और अंघेरा होते ही प्वाइंट 5140 के लिए मार्च किया। अनजानी जगह और जगह-जगह बर्फीली और पथरीली जमीन थी तथा ऑक्सीजन की भी कमी थी। पाकिस्तान की आर्मी का आर्टी फायर और स्माल आर्मस फायर हमारे उपर कहर बरफा रहा था। लेकिन हम पूरे जोश और निडर होकर उपर चढ़ते रहे।
उन्होंने बताया कि पूरी रात चलने के पश्चात सुबह चार बजे पूर्व दिशा की ओर से मैंने क्रोलिंग करते हुए दुश्मन के बंकर में ग्रेनेड फेंका और कारगर फायर किया। हमारी कम्पनी ने दुर्गे माँ की जयकार पुकारते हुये दुश्मन के साथ गुत्थम-गुत्था की लड़ाई की तथा पाकिस्तानी आर्मी के छह सैनिकों को मार गिराया।
इस प्रकार हमने प्वाइंट 5140 को अपने कब्जे में लिया तथा कैप्टन विक्रम बत्रा साहब ने लेफिटनेंट कर्नल वाई। के। जोशी को सक्सैस सिगनल दिया कि ‘‘ये दिल माँगे मोर’’।
ऑपरेशन विजय के दौरान इस बहादुरी एवं वीरतापूर्ण कारनामों के लिए राष्ट्पति द्वारा मुझे वीर चक्र से अलंकृत किया गया।