रायपुर : छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों को अयोग्य ठहराने के मामले में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है। इस मामले में विपक्ष के राजभवन पर लगाए गए आरोपों को लेकर सियासी उफान नजर आने लगा है। माना जा रहा है कि इस मामले में अब नया मोड़ आ सकता है। विपक्ष ने राज्यपाल पर संवैधानिक दायित्वों को निर्वहन नहीं करने और भेदभाव पूर्ण कार्रवाई के आरोप लगा दिए हैं।
वहीं पांच राज्यों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर कार्रवाई का दबाव बनाया है। इधर सत्तापक्ष ने भी कांग्रेस पर पलटवार करते हुए संवैधानिक पद के खिलाफ बयानबाजी पर मोर्चा खोल दिया है। दरअसल, संसदीय सचिव मामले में राज्यपाल की ओर से याचिका सीधे भारत निर्वाचन आयोग को प्रेषित किए जाने पर ही कार्रवाई के वैधानिक प्रावधान हैं। निर्वाचन आयोग ने संबंधित याचिकाकर्ता कांग्रेस नेता को पत्र के जरिए इसकी जानकारी दी है।
मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित है। सत्तापक्ष ने सवाल उठाए कि आखिर विपक्ष को किस बात की जल्दबाजी है। हालांकि हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पहले ही राज्य में संसदीय सचिवों के स्वेच्छानुदान समेत मंत्रियों की तरह काम करने पर रोक लगा दी है। वहीं विधानसभा में भी संसदीय सचिव जवाब नहीं दे सकते। अब एक बार फिर विपक्ष ने राज्यपाल से मिलकर प्रकरण सीधे निर्वाचन आयोग को प्रेषित करने चर्चा का निर्णय लिया है।
वहीं इसके बाद सीधे राज्यपाल की शिकायत राष्ट्रपति से करने और संवैधानिक प्रक्रियाओं के तहत कार्रवाई करने की मांग करने की भी तैयारी है। छत्तीसगढ़ में पहले ही संसदीय सचिवों के मामले में वर्ष 2006 में सरकार की ओर से संशोधन विधेयक लाया गया था। विपक्ष और सत्तापक्ष के इस मामले में अलग-अलग तर्क हैं। यही वजह है कि दिल्ली के फैसले के बाद छत्तीसगढ़ में भी संसदीय सचिवों को लेकर घमासान शुरू हो गया है। इस मामले में कोई निर्णय हुआ तो यह राज्य की राजनीति में टर्निंग पाइंट हो सकता है।
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