सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों से 30 मई तक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान करने वालों का विवरण, उनसे प्राप्त राशि, प्रत्येक बॉन्ड पर प्राप्त भुगतान आदि का विवरण चुनाव आयोग को देने को कहा है। कोर्ट ने कहा, अगले आदेश तक चुनाव आयोग भी चुनावी बांड्स से एकत्रित की गई धनराशि का ब्यौरा सील बंद लिफाफे में ही रखे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कानून में किए गए बदलावों का विस्तार से परीक्षण करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि संतुलन किसी दल के पक्ष में न झुका हो। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर पारदर्शी राजनीतिक चंदा के लिए शुरू किए गए चुनावी बॉन्ड के क्रेताओं की पहचान नहीं है तो चुनावों में कालाधन पर अंकुश लगाने का सरकार का प्रयास ‘निरर्थक’ होगा।
सुप्रीम कोर्ट आज 10:30 बजे इस पर अपना फैसला सुनाएगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को नीतिगत फैसला बताते हुए कहा है कि इसमें कुछ गलत नहीं है। इस कदम को काले धन पर अंकुश लगाने वाला और पारदर्शिता को बेहतर करने वाला बताया।
केंद्र सरकार की इस स्कीम के खिलाफ असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नाम के एनजीओ ने जनहित याचिका दाखिल की है। एनजीओ ने अपनी याचिका में इस स्कीम की वैधता को चुनौती देते हुए कहा था कि इस स्कीम पर रोक लगाई जानी चाहिए या फिर इसके तहत डोनर्स के नामों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
हालांकि एडीआर की इस दलील का विरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि इस स्कीम का उद्देश्य चुनावों के दौरान ब्लैक मनी के इस्तेमाल को रोकना है। हालांकि इस स्कीम को लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की राय भी अलग-अलग है। सरकार चुनावी बॉन्ड देने वालों की गोपनीयता को बनाए रखना चाहती है, वहीं चुनाव आयोग का पक्ष है कि पारदर्शिता के लिए दानदाताओं के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए।
केंद्र सरकार ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ से कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत राजनीति में काले धन को समाप्त करने के लिए की गई थी। दानदाताओं की गोपनीयता अनेक कारणों से बनाए रखी जानी चाहिए जैसे दूसरी राजनीतिक पार्टी अथवा संगठन के जीतने की सूरत में किसी कंपनी पर प्रतिघात का भय होना।
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ के समक्ष कहा,‘चुनावों में राज्य की ओर से धन मिलने की हमारे पास कोई नीति नहीं है। समर्थकों, प्रभावशाली लोगों अैर कंपनियों से धन मिलता है। वे चाहते हैं कि उनकी राजनीतिक पार्टी जीते। अगर उनकी पार्टी नहीं जीतती तो उन्हें किसी प्रतिघात की आशंका होती है और इसलिए गोपनीयता अथवा गुमनामी की जरूरत है।’