नये कृषि कानून के विरोध में सड़कों पर उतरे किसान संगठनों का प्रदर्शन रविवार को लगातार चौथे दिन जारी है। देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ उत्तर प्रदेश व अन्य प्रांतों के किसान भी जुड़ गए हैं। उधर, केंद्र सरकार अपने रुख पर कायम है। सरकार ने किसानों से आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत के जरिए मसले का समाधान करने की अपील की है।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) समेत कई अन्य संगठनों से जुड़े किसान नेता दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमाए हुए हैं। उनके साथ हजारों की तादाद में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि प्रदर्शन तो रामलीला मैदान में होता है, तो हमें निरंकारी मैदान क्यों भेजा जा रहा है, जो कि एक निजी संस्था है। उन्होंने कहा कि हमलोग आज भी यहीं रहेंगे।
नए कृषि कानूनों के खिलाफ टिकरी बॉर्डर पर किसान प्रदर्शनकारियों का विरोध प्रदर्शन अभी भी जारी है। एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “पंजाब से सात लाख आदमी आए हैं। हम यहीं रहेंगे, सारी सड़कें ब्लॉक कर देंगे। हम 6 महीने का राशन लेकर आए हैं।” वहीं सिंघु बॉर्डर(दिल्ली-हरियाणा) पर किसानों के विरोध प्रदर्शन की वजह से यात्रियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, यात्रियों को कई किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ रहा है।
कृषि कानूनों के विरोध में गाज़ीपुर बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे एक प्रदर्शनकारी किसान ने कहा, “हम आज दिल्ली कूच करेंगे और जंतर-मंतर या संसद भवन जाएंगे।” पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत की अगुवाई में किसानों का एक दल शनिवार को दिल्ली सीमा पर पहुंचा। इस प्रकार, किसानों के आंदोलन का दायरा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।
इससे पहले भाकियू के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि अब यह सिर्फ पंजाब के किसानों का आंदोलन नहीं है, बल्कि इसमें पूरे देश के किसान शामिल हैं, लेकिन आंदोलन की रणनीति वही होगी जो पंजाब के किसान संगठनों के नेता तय करेंगे। नये कृषि कानून को लेकर सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में हो रहा है, इसलिए इस प्रदर्शन की अगुवाई भी पंजाब के ही किसान नेता कर रहे हैं। पंजाब के करीब 30 किसान संगठनों के लोग विरोध-प्रदर्शन में जुटे हैं।
उधर, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शनिवार को फिर किसानों से विरोध-प्रदर्शन का रास्ता छोड़कर बातचीत के लिए आने की अपील की। उन्होंने कहा कि तीन दिसंबर को किसान नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया है और उन्हें आंदोलन बंद कर किसानों के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए आना चाहिए। किसान नेता सरकार से नये कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि नये कृषि कानून से किसानों के बजाय कॉरपोरेट को फायदा होगा।
उन्हें नये कानून के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद बंद होने की आशंका है। हालांकि, सरकार ने उनकी इस आशंका को निराधार बताया है, क्योंकि एमएसपी पर फसलों की खरीद अब पहले से ज्यादा की जा रही है। किसान नेता सरकार से एमएसपी की गारंटी देने के लिए नये कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।
भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान एमएसपी की गारंटी चाहते हैं, साथ ही नये कानून में कांट्रैक्ट फार्मिग के मसले को लेकर स्पष्टता नहीं है, इसलिए किसान उसका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नये कृषि कानूनों से किसानों को कोई लाभ नहीं है, बल्कि इन कानूनों का लाभ कॉरपारेट को मिलेगा। इसलिए वे इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं।