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प्राचीन पद्धति से किया जाएगा राम मंदिर का निर्माण, पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे की पत्तियों का होगा इस्तेमाल

CBRI रुड़की और IIT मद्रास के साथ मिलकर निर्माणकर्ता कंपनी लर्सन एंड टूब्रो के इंजीनियर जन्मभूमि भूमि की मिट्टी के परीक्षण के कार्य में लगे हुए है।

अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य आरंभ हो गया है। मंदिर का निर्माण प्राचीन पद्धति से किया जा रहा है। ताकि मंदिर को किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा से कोई क्षति न पहुंचे। मंदिर के निर्माण में लोहे का प्रयोग नही किया जाएगा। श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने गुरुवार को इसकी जानकारी दी।
सीबीआरआई रुड़की और IIT मद्रास के साथ मिलकर निर्माणकर्ता कंपनी लर्सन एंड टूब्रो के इंजीनियर जन्मभूमि भूमि की मिट्टी के परीक्षण के कार्य में लगे हुए है। मन्दिर निर्माण के कार्य में लगभग 36-40 महीने का समय लगने का अनुमान है। मंदिर स्थल से मिले अवशेषों के श्रद्धालु दर्शन कर सके, ऐसी व्यवस्था भी की जा रही है। 
पत्थरों को जोड़ने के लिए होगा तांबे की पत्तियों का उपयोग 
जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने कहा कि मन्दिर निर्माण में लगने वाले पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे की पत्तियों का उपयोग किया जाएगा। निर्माण कार्य हेतु 18 इंच लम्बी, 3 एमएम गहरी और 30 एमएम चौड़ी 10,000 पत्तियों की आवश्यकता पड़ेगी। ऐसे में श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र श्रीरामभक्तों से तांबे की पत्तियां दान करने का आह्वान करता है।
जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के अनुसार इन तांबे की पत्तियों पर दानकर्ता अपने परिवार, क्षेत्र अथवा मंदिरों का नाम गुदवा सकते हैं। इस प्रकार से ये तांबे की पत्तियां न केवल देश की एकात्मता का अभूतपूर्व उदाहरण बनेंगी, अपितु मन्दिर निर्माण में सम्पूर्ण राष्ट्र के योगदान का प्रमाण भी देंगी।
मंदिर निर्माण में नहीं होगा लोहे का इस्तेमाल
राम मंदिर का क्षेत्रफल ढाई से तीन एकड़ में होगा। मंदिर की नींव के स्तम्भों में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। इन स्तम्भों को एक-एक मीटर व्यास के तीस मीटर गहरे गड्ढे में स्थापित किया जाएगा। स्तम्भों के ऊपर दो फिट से अधिक ऊंचाई का कांकरीट का प्लेटफार्म तैयार किया जाएगा। इसके ऊपर मंदिर का धरातल होगा। 
सीबीआरआई व आईआईटी मद्रास के विशेषज्ञों ने भूकंप रोधी तकनीक की दृष्टि से जांच करने के बाद अपनी राय एलएण्डटी को दी है। साठ मीटर अथवा दो सौ फिट गहराई में मिट्टी की ताकत जांचने के साथ यह भी जांच हुई कि पांच सौ सालों में मिट्टी एक सेमी. मिट्टी बैठने की स्थिति में मंदिर के ढांचे पर क्या असर होगा।

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