सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र के दिशा-निर्देशों पर गौर करते हुए बुधवार को कहा कि प्राधिकारियों को कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के घर के बाहर पोस्टर और ‘साइनेज’ (निर्देशक या चेतावनी संकेतक) नहीं लगाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि यदि योग्य प्राधिकारी आपदा प्रबंधन कानून के तहत विशेष निर्देश जारी करते हैं, तो इस प्रकार के पोस्टर विशेष मामलों में ही लगाए जा सकते हैं।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के घरों के बाहर पोस्टर नहीं चिपकाने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह कहा। न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी पीठ में शामिल थे। पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि केंद्र ने पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं और इसलिए राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को इस प्रकार के पोस्टर नहीं लगाने चाहिए।
केंद्र ने पहले सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि दिशा-निर्देशों में कोविड-19 मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने संबंधी कोई निर्देश नहीं दिया गया है और पोस्टर लगाने का मकसद किसी को ‘कलंकित करने की मंशा’ नहीं हो सकता। केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे का जिक्र करते हुए तीन दिसंबर को पीठ को बताया था कि दिशा-निर्देशों में पोस्टर चिपकाने की अनिवार्यता का जिक्र नहीं है।
याचिकाकर्ता कुश कालरा की ओर से पेश हुए वकील ने शीर्ष अदालत में कहा था कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने संबंधी कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया गया है, लेकिन ‘‘हकीकत इसके विपरीत’’ है। न्यायालय ने एक दिसंबर को मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर एक बार पोस्टर लग जाने पर उनके साथ ‘अछूतों’ जैसा व्यवहार होता है और यह जमीनी स्तर पर एक अलग हकीकत बयान करता है।
मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था, ‘‘उसके दिशा-निर्देशों में संक्रमित लोगों के घर के बाहर पोस्टर या साइनेज लगाने संबंधी कोई निर्देश नहीं दिया गया है।’’ मेहता ने कहा था कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पांच नवंबर को केन्द्र से कहा था कि वह कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर पोस्टर चिपकाना बंद करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करे। न्यायालय ने कुश कालरा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए केन्द्र को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था।
मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि सभी राज्यों को सूचित कर दिया गया है कि कोविड-19 मरीजों को चिह्नित करने के लिए इस प्रकार का कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया गया है। दिल्ली की ‘आप’ सरकार ने तीन नवंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था कि उसने अपने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि वे कोविड-19 मरीजों या गृह पृथक-वास में रह रहे लोगों के मकानों पर पास्टर ना लगाएं और पहले से लगे पोस्टरों को भी हटा लें।
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया था कि उसके अधिकारियों को कोविड-19 मरीजों से जुड़ी जानकारी उनके पड़ोसियों, आरडब्ल्यूए या व्हाट्सऐप ग्रुप पर साझा करने की भी अनुमति नहीं है। कालरा ने उच्च न्यायालय में दी गई अर्जी में कहा था कि कोविड-19 मरीज के नाम को आरडब्ल्यूए और व्हाट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से ‘‘ना सिर्फ वे कलंकित हो रहे हैं बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है।’’