सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बीमा का अनुबंध अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है और जो जीवन बीमा लेना चाहते हैं, उनका यह दायित्व है कि वह बीमा लेते समय सभी तथ्यों का खुलासा करें। सुप्रीम कोर्ट में पीठ ने कहा कि बीमा का अनुबंध अत्यधिक विश्वास पर आधारित होता है। प्रस्तावक जो जीवन बीमा लेना चाहते हैं उनका यह दायित्व है कि वह सभी तथ्यों का खुलासा करें, ताकि बीमाकर्ता उचित जोखिम पर विचार कर सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्ताव फार्म में पहले से ही मौजूद बीमारी के बारे में बताने का कॉलम होता है, जिससे बीमाकर्ता अमुक व्यक्ति के बारे में वास्तविक जोखिम का अंदाजा लगाता है। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने इस वर्ष मार्च में बीमाकर्ता को मृतक की मां के डेथ क्लेम की पूरी राशि ब्याज के साथ देने का आदेश सुनाया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। बीमाकर्ता कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि कार्यवाही लंबित रहने के दौरान क्लेम की पूरी राशि का भुगतान कर दिया गया।
हालांकि पीठ ने पाया कि मृतक की मां की उम्र 70 वर्ष है और वह मृतक पर आश्रित थी, इसलिए आदेश दिया कि बीमाकर्ता द्वारा दी गई किसी भी राशि की रिकवरी नहीं की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी की आलोचना करते हुए कहा, जांच के दौरान प्राप्त मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से पाया गया कि मृतक पहले से ही गंभीर बीमारी से जूझ रही थी, जिसके बारे में बीमाकर्ता को नहीं बताया गया।
जांच के दौरान पता चला था कि बीमांकित व्यक्ति हेपेटाइटिस सी से ग्रसित थी। बीमा कंपनी ने मई 2015 में इस तथ्य को छुपाने के आधार पर क्लेम रद्द कर दिया था। वहीं नॉमिनी ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम में इस बात पर शिकायत कर दी। फोरम ने बीमाकर्ता को ब्याज के साथ बीमा की राशि चुकाने का आदेश दिया।