महिलाओं की सुरक्षा की तरफ एक और कदम बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला के लिए घर का मतलब पति के किसी भी रिश्तेदार का आवास भी हो सकता है। उसे उनके घर में रहने का अधिकार दिया जा सकता है।
3 जजों की पीठ ने टिप्पणी करते हुए घरेलू हिंसा कानून, 2005 की धारा 2 (एस) का दायरा बढ़ा दिया है। जिसके मुताबिक हिंसा के बाद घर से निकाली महिला को साझा घर में रहने का अधिकार है। अब तक ये साझा घर पति का घर, चाहे ये किराए पर हो या संयुक्त परिवार का घर, जिसका पति सदस्य हो, माना जाता था। इसमें ससुरालियों के घर शामिल नहीं थे। वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि साझा घर में ससुरालियों/रिश्तेदारों के घर शामिल नहीं होंगे।
अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2 जजों की पीठ के इस फैसले को पलट दिया और गुरुवार को दिए फैसले में कहा कि धारा 2(एस) में साझा घर की परिभाषा को पति की रिहायश और उसके संयुक्त परिवार की संपत्ति तक ही सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि इसमें पति के किसी भी रिश्तेदार का घर भी शामिल होगा।
महिला को वहां आवास के लिए भेजा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस कानून का मकसद महिलाओं को उच्चतर अधिकार देना है। इसका ये भी इरादा है कि परिवार में घरेलू हिंसा की पीड़ित महिला को अधिकारों का अधिक प्रभावी संरक्षण मुहैया करवाया जाए।