सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लॉकडाउन के कारण मुसीबतों का सामना कर रहे प्रवासी मजदूरों से सम्बंधित मामले पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से अनेक तीखे सवाल किए। इसके साथ ही कोर्ट ने ट्रेन या बसों में चढ़ने से लेकर घर पहुंचने तक सभी फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को खाना केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा मुहैया कराए जाने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इन कामगारों की वेदनाओं का स्वत: संज्ञान लिए गए मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से विभिन्न जगहों पर फंसे हुए इन श्रमिकों की यात्रा के किराए के भुगतान को लेकर व्याप्त भ्रम के बारे में जानकारी चाही।
पीठ ने कहा कि इन श्रमिकों को अपनी घर वापसी की यात्रा के लिए किराए का भुगतान करने के लिए नहीं कहना चाहिए। पीठ ने मेहता से सवाल किया, ‘‘सामान्य समय क्या है? यदि एक प्रवासी की पहचान होती है तो यह तो निश्चित होना चाहिए कि उसे एक सप्ताह के भीतर या दस दिन के अंदर पहुंचा दिया जाएगा? वह समय क्या है? ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक राज्य प्रवासियों को भेजती है लेकिन दूसरे राज्य की सीमा पर उनसे कहा जाता है कि हम प्रवासियों को नहीं लेंगे, हमें इस बारे में एक नीति की आवश्यकता है।’’
पीठ ने इन कामगारों की यात्रा के किराए के बारे में सवाल किए और कहा, ‘‘हमारे देश में बिचौलिया हमेशा ही रहता है। लेकिन हम नहीं चाहते कि जब किराए के भुगतान का सवाल हो तो इसमें बिचौलिया हो। इस बारे में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि उनकी यात्रा का खर्च कौन वहन करेगा।’’
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल ने केन्द्र की प्रारंभिक रिपोर्ट पेश की और कहा कि एक से 27 मई के दौरान इन कामगारों को ले जाने के लिए कुल 3,700 विशेष ट्रेन चलायी गयी और सीमावर्ती राज्यों में अनेक कामगारों को सड़क मार्ग से पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि बुधवार तक करीब 91 लाख प्रवासी कामगारों को उनके पैतृक घरों तक पहुंचाया गया है।
कोविड-19 महामारी की वजह से चार घंटे की नोटिस पर 25 मार्च से देश में लागू लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों भूखे प्यासे श्रमिक विभिन्न जगहों पर फंस गए। उनके पास ठहरने की भी सुविधा नहीं थी। इन श्रमिकों ने आवागमन का कोई साधन उपलब्ध नहीं होने की वजह से पैदल ही अपने अपने घर की ओर कूच कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 मई को इन कामगारों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लिया था अैर उसने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि केंद्र और राज्यों ने राहत के लिए कदम उठाए हैं लेकिन वे अपर्याप्त हैं और इनमें कमियां हैं। साथ ही उसने केन्द्र और राज्यों से कहा था कि वे श्रमिकों को तत्काल नि:शुल्क भोजन, ठहरने की सुविधा उपलब्ध करायें तथा उनके अपने-अपने घर जाने के लिए परिवहन सुविधा की व्यवस्था करें।