सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश शरद बोबडे ने मुकदमा दायर करने से पूर्व मध्यस्थता की जरूरत और लोगों को शीघ्र न्याय दिलाने के लिए कानूनी सहायता प्रणाली की भूमिका पर जोर दिया। वह यहां 17वें अखिल भारतीय राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में शनिवार को बोल रहे थे।
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि अप्रैल 2017 से मार्च 2018 के बीच मध्यस्थता के जरिए 1,07,587 मामले निपटाए गए। गुजरात में हाल ही में एक दिन में 24,000 मामले निपटाए गए। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मध्यस्थता करने पर हमारा जोर है। इसलिए हम ‘मुकदमे से पूर्व मध्यस्थता’ करने की अनिवार्यता पर विचार कर रहे हैं जो केवल वाणिज्यिक विवादों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए।’’
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उन्होंने कहा कि देश में विधि विश्वविद्यालयों में मध्यस्थता में डिग्री, डिप्लोमा पाठ्यक्रम होने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘समाज के कई वंचित वर्गों को यह तक नहीं पता है कि उनके पास कानून एवं कल्याणकारी योजनाओं के तहत कानूनी अधिकार हैं।’’
आंकड़ों का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि देश में करीब 80 फीसदी लोगों को कानूनी सहायता लेने का अधिकार है लेकिन यह आबादी के 0.05 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को उपलब्ध नहीं है। उन्होंने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों की उनके काम के लिए प्रशंसा की और कहा कि इसे देशभर में हाई कोर्ट का सहयोग मिल रहा है।