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CAA पर तुरंत रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इंकार, केंद्र को दिया चार हफ्ते का वक्त

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाने और एनपीआर की कवायद फिलहाल टाल देने का अनुरोध किया।

नागरिकता संशोधित कानून (सीएए) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर तुरंत रोक लगाने से इनकार कर दिया है। साथ ही अगली सुनवाई में कोर्ट सीएए की संवैधानिक वैधता तय करने के लिए वह अपीलों को संविधान पीठ के पास भेज सकता है। मामले की सुनवाई शुरू होते ही केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 143 याचिकाओं में से करीब 60 की प्रतियां सरकार को दी गई हैं।
केंद्र सरकार ने कहा कि सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली उन याचिकाओं पर जवाब देने के लिए उसे समय चाहिए जो उसे अभी नहीं मिल पाई हैं। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाने और एनपीआर की कवायद फिलहाल टाल देने का अनुरोध किया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र का पक्ष सुने बिना सीएए पर कोई स्थगन आदेश जारी नहीं करेगा। 
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कोर्ट ने केंद्र को सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब देने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया है। साथ ही सीएए का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं को किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने संबंधी आदेश कोर्ट चार हफ्ते बाद ही जारी करेगा। सुप्रीम कोर्ट सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन करेगा। सुप्रीम कोर्ट  ने याचिकाओं पर फैसला सुनाने तक सभी हाई कोर्ट के सीएए संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करने पर रोक लगाई।
सीएए में 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी जिससे उसने कानून की शक्ल ले ली। 

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आईयूएमएल ने अपनी याचिका में कहा कि सीएए बराबरी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर लोगों को बाहर कर अवैध शरणार्थियों के एक वर्ग को नागरिकता देना है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह कानून संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों पर ‘‘कठोर हमला’’ है।
 राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की हैं। कई अन्य याचिकाकर्ताओं में मुस्लिम संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, भाकपा, एनजीओ ‘रिहाई मंच’ और सिटिजंस एगेंस्ट हेट, वकील एम एल शर्मा और कानून के छात्र शामिल हैं। 

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