रायपुर : छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र राजनीतिक नजरिए से अहम माना जा रहा है। कार्यकाल का अंतिम सत्र होने की वजह से भी सत्तापक्ष और विपक्ष की गतिविधियों पर नजरें टिकी हुई है। वहीं दूसरी ओर राजनीतिक तौर पर प्रदेश में संदेश देने की भी कोशिशें होगी। सदन में परफार्मेंस के बाद विधायकों को मुकाबले के लिए चुनावी मैदान में उतरना होगा। यही वजह है कि सदन में मुद्दों को उठाने के बाद क्षेत्रों में इसे भुनाने में भी कोई कसर बाकी नहीं छोडऩे पर जोर दिया जा रहा है।
इसके बाद नए कार्यकाल का ही पहला सत्र होगा। सत्र में विपक्ष की ओर से मुद्दों पर धारदार हमले होंगे वहीं दूसरी ओर सरकार की कोशिशें ठोस जवाब देकर बैकफुट पर धकेलने की कोशिशें होगी। सरकार की ओर से लाए जाने वाले अनुपूरक बजट को भी निर्णायक माना जा सकता है। मुख्य बजट पारित होने के बाद चार माह बाद ही अनुपूरक बजट को चुनावी वादों और घोषणाओं को पूरा करने की कोशिशें होगी। सरकार की ओर से चुनावी घोषणाओं को आचार संहिता प्रभावी होने से पहले ही अमलीजामा पहनाने की कोशिशें हैं।
आम तौर पर कार्यकाल के अंतिम वर्ष में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता रहा है। प्रदेश में ज्वलंत मुद्दों और घटनाओं के चलते विपक्ष ने इस बार साल भर पहले अविश्वास जताकर संदेश दिया था। एक बार फिर प्रस्ताव के जरिए हमले की तैयारी है। अंतिम सत्र में दोनों ही दलों के विधायकों की कोशिशें एक दूसरे पर हावी होने की रहेगी। इसके बाद सीधे विधायकों को चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करना होगा।
बीते विधानसभा चुनाव के बाद सदन में बड़ी तादाद में नए विधायक चुनकर आए थे। वहीं दिग्गजों को मात झेलनी पड़ी थी। चुनावी दांव में इस बार भी राजनीतिक दलों की कोशिश नए चेहरों को सामने लाने है। मानसून सत्र की अवधि केवल पांच दिनों की है। इसमें विपक्ष पहले ही दिन सरकार को चौतरफा घेरने के मूड में है।