उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण व्यवस्था में कहा कि अपने ससुराल से निकाली गई महिला अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ क्रूरता से संबंधित आपराधिक मामले सहित वैवाहिक विवाद का मामला अपने मौजूदा निवास स्थान पर दायर कर सकती हैं।
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ रूपाली देवी की अपील पर यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने रूपाली देवी द्वारा अपने पिता के घर से दहेज की खातिर उत्पीड़न का मामला दर्ज करने की उसकी याचिका खारिज कर दी थी।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दण्डनीय क्रूरता एक सतत् अपराध नहीं है और इसलिए इसकी उस क्षेत्र से बाहर जाकर जांच नहीं की जा सकती और न ही दंड दिया जा सकता है जहां शिकायतकर्ता का वैवाहिक गृह हो।
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प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए में ‘क्रूरता’ का अर्थ समझते समय पति या उसके रिश्तेदारों के प्रत्यक्ष कृत्यों की वजह से ससुराल से बाहर निकलने वाली पत्नी के मानसिक स्वास्थ, मानसिक तनाव और अवसाद के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि पति या उसके रिश्तेदारों के कृत्यों की वजह से वैवाहिक घर छोड़ने या वहां से बाहर निकाले जाने के बाद पत्नी के रहने वाले स्थान की अदालतें भी धारा 498ए के तहत कथित अपराध के बारे में शिकायत विचार करने में सक्षम होंगी।
पीठ ने अधिकार क्षेत्र के संबंध में महत्वपूर्ण फैसला दिया जहां एक विवाहित महिला दहेज उत्पीड़न तथा प्रताड़ना के मामले में अलग रह रहे अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकती है। पीठ ने कहा कि इसके अलावा जहां महिला शादी के पहले और बाद में रह रही थी, जिस जगह पर उसने शरण ले रखी है वहां से भी वह विवाह संबंधी मामले दर्ज करा सकती है।
पीठ ने कहा कि इसमे कोई संदेह नहीं कि धारा 498ए के दायरे में पत्नी की मानसिक और शारीरिक भलाई दोनो ही आते हैं।