उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने रविवार को कहा कि सभी धर्मों का सम्मान करना “भारतीयों के खून” में है और धर्मनिरपेक्षता का मतलब किसी एक खास धर्म का ‘अपमान’ करना या तुष्टीकरण करना नहीं है। श्री रामकृष्ण मठ की तमिल मासिक पत्रिका श्री रामकृष्ण विजयम के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में नायडू ने कहा कि लंबे समय तक, भारत ने कई प्रताड़ित लोगों को आश्रय दिया है और कई को शरण दी है।
स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन ही आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि लोगों को उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए और उनकी शिक्षा एवं उपदेशों को आगे बढ़ाना चाहिए “जो मानवता की बेहतरी के लिए शाश्वत हैं।” गुरु की “महान संत, शिक्षक और समाज सुधारक” के तौर पर प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद की पश्चिम में हिंदुत्व को ले जाने में बड़ी भूमिका थी।’’
नायडू ने कहा कि वह एक समाज सुधारक थे और धार्मिक रूढ़ियों के खिलाफ थे तथा जाति या संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता के उत्थान में यकीन करते थे। उन्होंने कहा, “स्वामी विवेकानंद ने अध्यात्म के महत्व पर जोर दिया। भारत, एक तरह से पूरी दुनिया के लिए अध्यात्मिक गुरु है। लोग धैर्य, मार्गदर्शन और अध्यात्म के लिए भारत की तरफ देखते हैं।”
विवेकानंद को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी जी को इस बात का गर्व था कि वह ऐसे धर्म से ताल्लुक रखते हैं, ‘‘जिसने दुनिया को सहनशीलता एवं सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाया था।” उन्होंने कहा, ‘‘एकमात्र धर्म जो कहता है कि सभी धर्म सही हैं। यह इस धर्म (हिंदू) की महानता, इसकी खूबसूरती है।”
नायडू ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने यह भी कहा था कि वह ऐसे राष्ट्र से ताल्लुक रखते हैं जिसने धरती के सभी देशों के प्रताड़ित एवं शरणार्थियों को शरण दी है। उपराष्ट्रपति ने विवादित नागरिकता कानून के विरोध का स्पष्ट तौर पर संदर्भ देते हुए कहा, “अब भी हम प्रताड़ित लोगों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं भले ही कुछ लोग इसे विवादित बनाने की कोशिश कर रहे हों।” उन्होंने कहा, “यह हमारी संस्कृति, हमारी धरोहर है। हमारे पूर्वजों ने हमें यही बताया है।”