तेलंगाना विधानसभा ने अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के संबंध में एक विधेयक पारित करके पांच साल पहले इसे केंद्र की मंजूरी के लिये भेजा और अब यह मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। तेलंगाना की सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच एसटी के लिये आरक्षण बढ़ाने में हुई देर अब एक-दूसरे पर दोषारोपण करने का जरिया बन गयी है।
पांच साल बाद अब सुर्खियों में आया
यह मसला पांच साल बाद अब सुर्खियों में आया, जब केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने 21 मार्च को लोकसभा में बताया कि उनके मंत्रालय को तेलंगाना सरकार से एसटी के लिये आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। वह तेलंगाना से कांग्रेस सांसद एन. उत्तम कुमार रेड्डी के एक सवाल का जवाब दे रहे थे। टीआरएस ने इस बयान के बाद तत्काल केंद्रीय मंत्री को पद से हटाने की मांग की थी। टीआरएस ने साथ ही लोकसभा को ‘गुमराह’ करने के लिये उनके खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश करने का नोटिस भी दिया।
टीआरएस ने भाजपा पर अपना हमला तेज कर दिया है
टीआरएस ने कहा कि राज्य सरकार ने न केवल एक प्रस्ताव बनाया बल्कि विधानसभा ने अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने का विधेयक पारित भी किया, जिसके बाद इसे जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेज दिया गया। टीआरएस सरकार, जो पहले से ही धान की खरीद को लेकर केंद्र के साथ तीखी नोकझोंक में लगी हुई है, उसने भाजपा पर अपना हमला तेज कर दिया है।
वर्ष 2017 में तेलंगाना विधानसभा ने सर्वसम्मति से पिछड़े मुसलमानों और एसटी के लिये आरक्षण कोटा को क्रमश: 12 और 10 प्रतिशत तक बढ़ाने का एक विधेयक पारित किया था। मुसलमानों के लिये कोटा बढ़ाने के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करने वाली भाजपा को छोड़कर, पूरे विपक्ष ने पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण विधेयक, 2017 का समर्थन किया था। यह विधेयक पिछड़ा वर्ग (ई) श्रेणी के तहत मुसलमानों के बीच सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिये कोटा को मौजूदा चार प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने से संबंधित है।
तेलंगाना में कुल आरक्षण को बढ़ाकर 62 प्रतिशत कर दिया है
राज्य सरकार ने इस विधेयक को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के अनुरोध के साथ राष्ट्रपति की सहमति के लिये केंद्र को भेजा गया था, जैसा तमिलनाडु के मामले में किया गया था। इस विधेयक ने तेलंगाना में कुल आरक्षण को बढ़ाकर 62 प्रतिशत कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों दोनों में सभी आरक्षणों पर 50 प्रतिशत की सीमा तय की है इसी कारण तेलंगाना संवैधानिक संशोधन के माध्यम से छूट चाहता है।
तमिलनाडु दो दशकों से 69 प्रतिशत आरक्षण लागू कर रहा है
तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने पूछा था, तमिलनाडु दो दशकों से 69 प्रतिशत आरक्षण लागू कर रहा है। पांच से छह राज्य 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण प्रदान कर रहे हैं। आप तेलंगाना को इससे कैसे इनकार कर सकते हैं? उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि अगर केंद्र तेलंगाना के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार करता है, तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायेगी।
केसीआर ने तर्क दिया था कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण प्रदान करने पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है। उन्होंने कहा था कि तेलंगाना की 90 प्रतिशत आबादी पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक है तो ऐसे में राज्य को निश्चित रूप से 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की आवश्यकता है।
स्रोत- आईएएनएस