द्रमुक और वाम दलों सहित उसके सहयोगियों की बुधवार को हुई एक बैठक में केंद्र से संशोधित नागरिकता अधिनियम को तुरंत निरस्त करने की मांग की गयी तथा देश भर में प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक पंजी को संविधान के विरूद्ध करार दिया गया।
इस बैठक में पारित एक प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि कानून में किए गये संशोधन में धर्म और जाति का पहलू भी है और इसमें ‘ऐलम तमिलों’ को नजरअंदाज किया गया है। बैठक में शामिल सभी दलों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि देश में अमन और शांति बनाए रखने के लिए इस संशोधन को वापस ले लेना चाहिए।
द्रमुक मुख्यालय ‘अन्ना अरिवायलम’ में आयोजित इस बैठक की अध्यक्षता द्रमुक अध्यक्ष एम के स्टालिन ने की। इस बैठक में एमडीएमके प्रमुख वाइको, तमिलनाडु कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के एस अलागिरी,माकपा के राज्यसचिव के बालकृष्णन और भाकपा के राज्य सचिव आर मुथरासन सहित गठबंधन दलों के नेताओं की उपस्थिति रही।
बैठक में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि असम में एनआरसी लागू होने से सिर्फ मुसलमान ही नहीं लाखों हिंदू भी अपने भविष्य को लेकर जूझ रहे हैं।
स्टालिन ने बैठक के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए कहा, “हम सभी ने चेन्नई में 23 दिसंबर को नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में एक विशाल रैली निकालने का फैसला किया है।” उन्होंने कहा कि द्रमुक और सहयोगी दल श्रीलंका से आने वाले तमिल शरणार्थियों और मुसलमानों को नागरिकता नहीं प्रदान करने के कारण सीएए का विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अन्नाद्रमुक के 11 और पीएमके के एक सांसद ने राज्यसभा में नागरिकता संशोधन अधिनियम के पक्ष में अपना मत देकर इसे लागू करने में सहयोग किया। केंद्र का समर्थन कर उन्होंनें तमिलों से विश्वासघात किया है। उन्हें तमिल जनता कभी माफ नहीं करेगी।