उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य में गैर कानूनी तरीके से चलने वाले सभी अस्पतालों और चिकित्सालयों को सील करने के आदेश दिए हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की युगल पीठ ने बाजपुर निवासी अख्तर मलिक की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद राज्य में ऐसे सभी चिकित्सालयों को सील करने के निर्देश जारी किए हैं।
युगल पीठ ने सरकार को कहा कि चिकित्सालयों के संचालन के लिए मौजूद प्रावधानों और कानून का सख्त पालन किया जाए। इसके अलावा न्यायालय ने सरकार को विभिन्न मेडिकल जांचों और परीक्षणों के दाम तय करने का भी आदेश दिया है। न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण निर्णय ऊधमसिंह नगर में गैर कानूनी ढंग से चल रहे दो निजी चिकित्सालयों की सुनवाई के बाद जारी किया है।
अस्पतालों के पास मौजूद नहीं थे विशेषज्ञ चिकित्सक
बाजपुर के दोराहा स्थित बीडी अस्पताल और केलाखेड़ स्थित पब्लिक हॉस्पिटल गैर कानूनी तरीके से संचालित हो रहे थे और इनके खिलाफ कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई। न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त किया कि इन दोनों अस्पतालों के पास न तो विशेषज्ञ चिकित्सक मौजूद थे और न ही चिकित्सालय संचालन के लिये उचित अनुमति या पंजीकरण उपलब्ध था।
इसके बावजूद बिना डिग्री और विशेषज्ञ चिकित्सकों के मरीजों के आपरेशन किये जा रहे थे। मौके पर जांच टीम को ऐसे दस मरीज भर्ती मिले जिनके आपरेशन किये जाने थे। यही नहीं चिकित्सकों के पास न तो एमबीबीएस और ना ही सर्जरी की डिग्री मौजूद थी। न्यायालय ने ऐसे चिकित्सालयों और अस्पतालों को सील करने को कहा है जिनका पंजीकरण और विनियम क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट (रजिस्ट्रेशन एंड रेज्ञूलेशन) एक्ट 2010 के तहत नहीं किया गया है।
न्यायालय ने सभी चिकित्सालयों को यह भी आदेश दिया कि वे नैदानिक परीक्षणों के नाम पर बेवजह जांचें न करायें। कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी सरकारी और गैर सरकारी चिकित्सालय मरीजों पर ब्रांडेड दवाईयां खरीदने का दबाव न बनायें और जेनरिक दवाईयां लिखें।
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि चिकित्सालयों में मौजूद आईसीयू की सामने की दीवार शीशे से निर्मित्त की जाए ताकि तीमारदार मरीज पर निगाह रख सकें। इसके साथ ही यह भी कहा कि चिकित्सालय हर 12 घंटे में तीमारदारों को मरीज की स्वास्थ संबंधी जानकारी उपलब्ध करायें और उसकी वीडियोग्राफी भी कराई जाए।