गुजरात हमेशा से आंदोलनों की धरती रहा है महाराष्ट्र से गुजरात को अलग करने वाला आंदोलन, छात्र आंदोलन, आरक्षण आंदोलन 2015 में पाटीदार आंदोलन का आगाज हुआ इस आंदोलन का मकसद पाटीदारों को आरक्षण दिलाना था। आंदोलन के दौरान अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में एक सभा आयोजित हुई जिसमें 5 लाख लोग शामिल हुए जो अपने आप में एक रिकॉर्ड था। इसी आंदोलन से हार्दिक पटेल नाम के युवा नेता का उदय हुआ जिसने इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। और आज वही नेता खुब चर्चा में बना हुआ है। इस आंदोलन के दौरान 14 लोगों की मौत हुई थी और यहीं से हार्दिक को राजनीति में मजबूती मिली। जाति के लिए शुरू हुआ सामाजिक आंदोलन धीमे-धीमे राजनैतिक आंदोलन में बदल गया।इसी आंदोलन के चलते मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और विजय रूपानी को गुजरात की गद्दी पर बैठा दिया गया।
कांग्रेस के निशाने पर थे हार्दिक पटेल
जिसके बाद हार्दिक पटेल सरकार को घेरने के लिए विपक्ष का हथियार बन गए और कांग्रेस के करीब होते गए. कांग्रेस ने हार्दिक को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया इसके बाद 2017 के चुनाव परिणामों पर हार्दिक का साया नजर आया, राज्य में बीजेपी ने सरकार तो बनाई मगर सीटें कम हो गई। इसके बाद हार्दिक को कांग्रेस पार्टी में के हाशिए पर आते गए। इसकी सबसे बड़ी वजह थी की पार्टी के सीनियर नेताओं को हार्दिक रास नहीं आ रहे थे। तो दूसरी तरफ पाटीदार आंदोलन के दौरान राज्य में अलग-अलग हिस्सों में हार्दिक पर दर्ज हुए मामले हार्दिक के गले की फांस बनते जा रहे थे जिसके चलते हार्दिक पटेल सत्ताधारी भाजपा के करीब आने लगे और 2022 में जब राज्य में चुनाव की आहट सुनाई पड़ी तो हार्दिक भाजपा में शामिल हो गए लेकिन क्या हार्दिक बीजेपी में रहकर जीत हासिल कर पाएंगे ये अपने आप में बड़ी बात होगी।क्योंकि इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है इसलिए चुनाव जीतना पटेल के लिए मुश्किल हो सकता है।