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बद्रीनाथ मंदिर के प्रमुख पुजारी ने जोशीमठ में परियोजनाओं पर रोक को लेकर सरकार से अपील की

उत्तराखंड के जोशीमठ में भूमि धंसने पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर के रावल या प्रमुख पुजारी ईश्वरप्रसाद नंबूदरी ने जोशीमठ में प्रकृति और वहां के लोगों को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं को रोकने को लेकर सरकार से अनुरोध किया है।

उत्तराखंड के जोशीमठ में भूमि धंसने पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर के रावल या प्रमुख पुजारी ईश्वरप्रसाद नंबूदरी ने जोशीमठ में प्रकृति और वहां के लोगों को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं को रोकने को लेकर सरकार से अनुरोध किया है।
आखिलकार इस ताबाही का कौन जिम्मेदार?
करीब 1,830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 17,000 की आबादी वाले जोशीमठ में सैकड़ों घरों और इमारतों में दरारें आने के लिए साफ तौर पर जमीन धंसने को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। जोशीमठ हिंदू और सिख तीर्थस्थलों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है और हिमालय के हिस्सों में पर्वतारोहियों को भी आकर्षित करता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी उपग्रह तस्वीरों से जोशीमठ में भूमि धंसने की चिंता शुक्रवार को और बढ़ गई, जिसमें दिखाया गया कि जोशीमठ 12 दिनों में 5.4 सेंटीमीटर धंस गया। सिमटती धरती की तस्वीरों के कारण हंगामा खड़ा हो गया।
सरकार ने क्या आदेश किया जारी? 
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और उत्तराखंड सरकार ने अंतरिक्ष एजेंसी और कई सरकारी संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे जोशीमठ की स्थिति पर मीडिया के साथ बातचीत न करें या सोशल मीडिया पर जानकारी साझा न करें।
रावल का जोशीमठ में हो रहे विकास पर क्या कहना है?
रावल ने कहा, हम धरती माता की पूजा करते हैं। जोशीमठ में विकास चिंता का विषय है। पृथ्वी की दृष्टि से हानिकारक विकास परियोजनाओं को रोका जाना चाहिए। ऐसी किसी परियोजना का कोई मतलब नहीं है कि जो पारिस्थितिक रूप से नाजुक धरती और यहां के लोगों के लिए समस्या पैदा करे। बद्रीनाथ के रावल उत्तरी केरल के नंबूदरी हैं। दीक्षा की इस परंपरा की शुरुआत सदियों पहले स्वयं ऋषि श्री शंकराचार्य ने शुरू की थी। रावल ने मीडिया से कहा कि लोगों के जीवन की रक्षा करते हुए विकास कार्यों को लागू किया जाना चाहिए। गत वर्ष 19 नवंबर को सर्दियों के मौसम से पहले बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद रावल अपने गृह राज्य लौटे हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्यदेशम में से एक है और वैष्णवों के लिए एक पवित्र मंदिर है जहां भगवान बद्रीनाथ के रूप में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हिमालय क्षेत्र में प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण मंदिर हर साल केवल छह महीने के लिए खुलता है। मंदिर के कपाट अप्रैल के अंत में खुलते हैं और नवंबर की शुरुआत तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं। रावल ने कहा, धर्म की मूल अवधारणा यह है कि किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए।
जोशीमठ परियोजनाओं पर हुए सवाल खड़े 
नंबूदरी ने कहा, ‘‘इन दिनों पर्यावरण के अनुकूल विकास योजनाओं के लिए विकल्प हैं। हम अन्य देशों की तरह ही ऐसा कर सकते हैं। अगर लोग अपने गांवों और आजीविका को खो देते हैं तो ऐसी परियोजनाओं को लाने का क्या मतलब है।जोशीमठ में जमीन धंसने की समीक्षा करने के लिए 10 जनवरी को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) के अधिकारियों को तलब किया, जो इस क्षेत्र में तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना का निर्माण कर रहे हैं। भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी ने एक दिन बाद मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा कि इस क्षेत्र की जमीन धंसने में उसकी परियोजना की कोई भूमिका नहीं है।उन्होंने कहा, ‘‘हमें आम लोगों की रक्षा करते हुए विकास करने की जरूरत है। इस तरह की परियोजनाओं की तुलना में लोगों का जीवन और कल्याण अधिक महत्वपूर्ण है। बत्तीस-वर्षीय नंबूदरी मई 2014 में बंद्रीनाथ मंदिर के रावल बने थे। इससे पहले वह मंदिर में ‘नायब रावल’ के रूप में सेवा दे रहे थे।

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