नैनीताल : हाईकोर्ट ने एनआईटी को श्रीनगर गढ़वाल से जयपुर राजस्थान सिफ्ट करने सम्बंधित जनहित याचिका में सुनवाई करते सरकार के रवैये पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि एक राष्ट्रीय स्तर का संस्थान राज्य से बाहर जा रहा है और उत्तराखंड सरकार को जरा भी दुख नहीं हो रहा है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार, राज्य सरकार व एनआईटी प्रबन्धन द्वारा अपना जवाब पेश किया गया। केंद्र सरकार ने अपने जवाब में आरोप लगाया है कि राज्य सरकार संस्थान बनाने के लिए जगह उपलब्ध नहीं करा रही है।
याचिकाकर्ता से दो सप्ताह के भीतर तीनों शपथ पत्रों का प्रति शपथपत्र पेश करने को कहा है। मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन व नन्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ में मामले की सुनवाई हुई। पूर्व में सुमाड़ी, नियाल गांव सहित अन्य दो गावों द्वारा कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर उनको पक्षकार बनाने की मांग की थी, जिसमें खण्डपीठ ने उनको पक्षकार बनाने को कहा था ग्रामीणों का अपने प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि उन्होंने श्रीनगर में एनआईटी बनाने के लिए 120 हेक्टेयर जमीन दान में इसलिए दी है कि यहां का विकास हो, लोगों को रोजगार मिले, पलायन पर रोक लग सके।
सरकार ने 2009 में वन विभाग से भूमि हस्तांतरण के लिए 9 करोड़ रुपये दे दिए थे। इसके अलावा सरकार ने कैम्पस की चाहरदीवारी बनाने के लिए 4 करोड़ रुपये भी खर्च कर दिए, उसके बाद भी सरकार एनआईटी को मैदानी क्षेत्र में स्थापित करना चाहती है। पूर्व में आइआइटी रुड़की द्वारा भी इस भूमि का भूगर्भीय सर्वेक्षण किया गया था, जिसकी अभी अंतिम रिपोर्ट नही आई है।
कालेज के पूर्व छात्र जसवीर सिह ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि कालेज को बने 9 साल हो गए है, लेकिन अब तक स्थाई कैम्पस नहीं मिला। इसको लेकर छात्र काफी लंबे समय से मांग कर रहे हैं। पर सरकार मांगों की अनदेखी कर रही है। साथ ही वो अभी जिस जगह पढ़ रहे हैं वो भवन भी जर्जरहाल में है, जहां पर कभी भी कोई हादसा हो सकता है।