कर्नाटक सरकार ने राज्य के उच्च न्यायालय को आश्वासन दिया है कि, राज्य में सक्रिय ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी, जबकि राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून के अनुसार अधिकारियों को कार्रवाई शुरू करने की अनुमति है।सरकार ने वकील के माध्यम से गुरुवार को इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को मौखिक प्रतिबद्धता दी।दरअसल इंडिया गेमिंग फेडरेशन और अन्य ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों ने ऑनलाइन गेमिंग को एक आपराधिक और दंडनीय अपराध बनाने के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा बनाए गए कानून का विरोध करते हुए एक याचिका प्रस्तुत की थी।
ऑनलाइन गेम दो प्रकार के होते हैं : महाधिवक्ता
सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवादगी ने कहा कि अदालत को इस मुद्दे के संबंध में एकल पीठ के समक्ष दायर आपत्तियों पर विचार करना है। उन्होंने यह भी कहा कि, याचिकाकर्ताओं के सभी सवालों का जवाब दिया जाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने डेढ़ घंटे से अधिक समय तक अदालत के समक्ष अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने समझाया कि ‘कौशल के खेल (गेम ऑफ स्किल्स) और संयोग के खेल (गेम ऑफ चांस) के रूप में जाने जाने वाले ऑनलाइन गेम दो प्रकार के होते हैं। कौशल के खेल को कानून द्वारा नियंत्रित या रोका नहीं जा सकता। उन्होंने तर्क दिया, इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, कर्नाटक सरकार ने कौशल के खेल को नए अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में लाया है।
18 नवंबर को होगी मामले की सुनवाई
इस मामले में हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई 18 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है। आपको बतादे कि, कर्नाटक पुलिस (संशोधन) विधेयक 2021 को सत्तारूढ़ भाजपा ने मानसून सत्र में कर्नाटक पुलिस अधिनियम 1963 में संशोधन करने के लिए पेश किया था। भाजपा नेताओं ने दावा किया कि, वे लोगों के हित में ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने के लिए विधेयक पेश कर रहे हैं। हालांकि, ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों द्वारा नए कानून का विरोध किया गया था और कहा गया था कि नीति शहर को प्रभावित करेगी जो ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के केंद्र के रूप में उभर रहा है।